पिता को जब पता चला कि दोनों बेटे अयोध्या जा रहे हैं तो उन्होंने रोका, "कुछ ही दिन बाद बहन की शादी है, रुक जाओ! उसके बाद चले जाना।" पर उन्होंने शादी विवाह से अधिक महत्वपूर्ण कार्य करने का निर्णय लिया था। वे नहीं रुके, निकल ही गए। रामकुमार 22 वर्ष के थे, और शरद 18 के। बस यूं समझिये कि दुनिया को देखना शुरू ही किया था। कलकत्ते में अपना घर था और पिता का स्थापित व्यवसाय था। जीवन आनन्द से भरा था। पर उन्होंने व्यक्तिगत आनन्द का नहीं, राष्ट्र और धर्म के लिए संघर्ष का मार्ग चुना था। वे निकले। कलकत्ता से ट्रेन पकड़ कर काशी पहुँचे। तब देश की हर सड़क अयोध्या जा रही थी, और हर सड़क को रोकने के लिए सत्ता के सैनिक हथियार ताने खड़े थे। दोनों ने काशी से एक टैक्सी ली और चल पड़े। पर उनकी यात्रा सामान्य नहीं थी न दोस्त! जैसे पाँच भाई पांडव निकले थे स्वर्ग के लिए... यह राह इतनी आसान भी तो नहीं होती। फूलपुर में उनकी टैक्सी रोक ली गयी। पर उन्हें रुकना ही तो नहीं था। मिट्टी की दीवार खड़ी कर के हवाएं नहीं रोकी जा सकतीं, वे भी नहीं रुके। उन्होंने पदयात्रा शुरू की। फूलपुर से अयोध्या की 200 किलोमीटर की यात्रा... अयोध्या पहुँचे। उनके जैसे लाखों युवक जुटे थे अयोध्या में... अपनी भुजाओं में धर्म का बल लेकर, हृदय में साहस और अपनी मुट्ठी में प्राण लेकर... सभी अपना जीवन रामजी को समर्पित कर चुके थे। सामने एक विद्रूप ढांचा था। इस परम पुनीत धर्मभूमि पर मुगलिया आतंक का कुरूप प्रतीक... माटी के स्वाभिमान पर लगा धब्बा... वे मातृभूमि के मुख पर लगी हर कालिख को पोंछने ही तो आये थे। दोनों आगे बढ़े और चढ़ कर भगवा लहरा दिया। मुस्कुराए, जैसे कभी धर्मक्षेत्र में कुरुसेना के मध्य खड़े होकर मुस्कुराया था वीर अभिमन्यु... अयोध्या की गली गली में हथियारबंद जवान खड़े थे। सरकार किसी पक्षी के पंख फड़फड़ाने पर भी पाबंदी लगा चुकी थी। पर सरकारी प्रयासों से समय की योजना विफल नहीं होती मित्र! दो दिन के बाद भीड़ बढ़ने लगी अयोध्या में.... दो नवम्बर का दिन था। हवाएं थोड़ी सी ठंडक लिए बह रही थीं। उसी समय एक छोटा सा जत्था हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहा था। अचानक पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। लोग भाग कर छिपे इधर उधर के मकानों में... लेकिन पुलिस केवल उन्हें भगाने तो नहीं आई थी न! लोगों को घरों से ढूंढ कर निकाला जाने लगा। इसी समय रामकुमार को पुलिस ने एक घर से खींच कर निकाला और सड़क पर गोली मार दी... बड़े भाई को तड़पते देख कर अनुज भी छिपा न रह सका। वे समझ गए थे कि आज बलिदान का ही दिन है। वे यह भी जानते थे कि उनका बलिदान ही बदलाव का प्रारम्भ बिन्दु होने वाला था। शरद भी निकल आये घर से... और फिर पुलिस की गोली उनकी देह भी भेद गयी। उस यात्रा के साक्षी बताते हैं, एक और पुलिस की बंदूकें गरज रही थीं और दूसरी ओर हजारों मुक्त कण्ठ जय जय श्रीराम का उद्घोष कर रहे थे। उस शौर्यपूर्ण वातावरण में रक्त से भीगी वह अयोध्या की सड़क उसदिन सीधी स्वर्ग को जा रही थी। यह जो थोड़ा बदला हुआ देश देख रहे हैं न आप! उसकी शुरुआत उसी दिन हुई थी। तात्कालिक सरकार का गिरना, नई सरकार, विध्वंस और फिर निवनिर्माण... सबकी शुरुआत उन्ही अभिमन्युओं के बलिदान से हुई थी। #शतशतनमन #जयश्रीराम
पिता को जब पता चला कि दोनों बेटे अयोध्या जा रहे हैं तो उन्होंने रोका, "कुछ ही दिन बाद बहन की शादी है, रुक जाओ! उसके बाद चले जाना।" पर उन्होंने शादी विवाह से अधिक महत्वपूर्ण कार्य करने का निर्णय लिया था। वे नहीं रुके, निकल ही गए। रामकुमार 22 वर्ष के थे, और शरद 18 के। बस यूं समझिये कि दुनिया को देखना शुरू ही किया था। कलकत्ते में अपना घर था और पिता का स्थापित व्यवसाय था। जीवन आनन्द से भरा था। पर उन्होंने व्यक्तिगत आनन्द का नहीं, राष्ट्र और धर्म के लिए संघर्ष का मार्ग चुना था। वे निकले। कलकत्ता से ट्रेन पकड़ कर काशी पहुँचे। तब देश की हर सड़क अयोध्या जा रही थी, और हर सड़क को रोकने के लिए सत्ता के सैनिक हथियार ताने खड़े थे। दोनों ने काशी से एक टैक्सी ली और चल पड़े। पर उनकी यात्रा सामान्य नहीं थी न दोस्त! जैसे पाँच भाई पांडव निकले थे स्वर्ग के लिए... यह राह इतनी आसान भी तो नहीं होती। फूलपुर में उनकी टैक्सी रोक ली गयी। पर उन्हें रुकना ही तो नहीं था। मिट्टी की दीवार खड़ी कर के हवाएं नहीं रोकी जा सकतीं, वे भी नहीं रुके। उन्होंने पदयात्रा शुरू की। फूलपुर से अयोध्या की 200 किलोमीटर की यात्रा... अयोध्या पहुँचे। उनके जैसे लाखों युवक जुटे थे अयोध्या में... अपनी भुजाओं में धर्म का बल लेकर, हृदय में साहस और अपनी मुट्ठी में प्राण लेकर... सभी अपना जीवन रामजी को समर्पित कर चुके थे। सामने एक विद्रूप ढांचा था। इस परम पुनीत धर्मभूमि पर मुगलिया आतंक का कुरूप प्रतीक... माटी के स्वाभिमान पर लगा धब्बा... वे मातृभूमि के मुख पर लगी हर कालिख को पोंछने ही तो आये थे। दोनों आगे बढ़े और चढ़ कर भगवा लहरा दिया। मुस्कुराए, जैसे कभी धर्मक्षेत्र में कुरुसेना के मध्य खड़े होकर मुस्कुराया था वीर अभिमन्यु... अयोध्या की गली गली में हथियारबंद जवान खड़े थे। सरकार किसी पक्षी के पंख फड़फड़ाने पर भी पाबंदी लगा चुकी थी। पर सरकारी प्रयासों से समय की योजना विफल नहीं होती मित्र! दो दिन के बाद भीड़ बढ़ने लगी अयोध्या में.... दो नवम्बर का दिन था। हवाएं थोड़ी सी ठंडक लिए बह रही थीं। उसी समय एक छोटा सा जत्था हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहा था। अचानक पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। लोग भाग कर छिपे इधर उधर के मकानों में... लेकिन पुलिस केवल उन्हें भगाने तो नहीं आई थी न! लोगों को घरों से ढूंढ कर निकाला जाने लगा। इसी समय रामकुमार को पुलिस ने एक घर से खींच कर निकाला और सड़क पर गोली मार दी... बड़े भाई को तड़पते देख कर अनुज भी छिपा न रह सका। वे समझ गए थे कि आज बलिदान का ही दिन है। वे यह भी जानते थे कि उनका बलिदान ही बदलाव का प्रारम्भ बिन्दु होने वाला था। शरद भी निकल आये घर से... और फिर पुलिस की गोली उनकी देह भी भेद गयी। उस यात्रा के साक्षी बताते हैं, एक और पुलिस की बंदूकें गरज रही थीं और दूसरी ओर हजारों मुक्त कण्ठ जय जय श्रीराम का उद्घोष कर रहे थे। उस शौर्यपूर्ण वातावरण में रक्त से भीगी वह अयोध्या की सड़क उसदिन सीधी स्वर्ग को जा रही थी। यह जो थोड़ा बदला हुआ देश देख रहे हैं न आप! उसकी शुरुआत उसी दिन हुई थी। तात्कालिक सरकार का गिरना, नई सरकार, विध्वंस और फिर निवनिर्माण... सबकी शुरुआत उन्ही अभिमन्युओं के बलिदान से हुई थी। #शतशतनमन #जयश्रीराम
- समाजवादी पार्टी प्रदेश कार्यालय पर हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस!! समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल और मोहनलालगंज से सपा सांसद आरके चौधरी की प्रेस वार्ता!!1
- गोंडा जनपद के विकासखंड पंडरी कृपाल अंतर्गत महादेव ग्राम पंचायत के मुजरे विसंवा दामोदर में सरयू नहर के माइनर में मोटरसाइकिल से जा रहे व्यक्ति की गिरकर हुई मौत । परिजनों में मचा कोहराम ।2
- maa anandi news updet 👍2
- इस बहन का बचा लापता हो गया है आप सभी भाई लोग इस वीडियो को इतना शेयर करे ताकि वो बच्चा अपनी मां से मिल सके धन्यवाद 🙏🙏🙏1
- यह जानकारी कश्यप समाज पिछड़ा एकीकरण मंच द्वारा आयोजित सातवें सामूहिक विवाह समारोह के निमंत्रण या सूचना से संबंधित है, जो 5 दिसंबर 2025 को बाराबंकी के राजकीय इंटर कॉलेज के ऑडिटोरियम में आयोजित हुआ था, जिसमें "आपकी बेटी-हमारी बेटी" और "सर्व-समाज" के नारों के साथ सामाजिक एकता और विवाह के माध्यम से बेटियों का सम्मान सुनिश्चित करने का उद्देश्य था, जिसके आयोजक राजेश कश्यप (संस्थापक अध्यक्ष) और टीम के अन्य सदस्य थे। मुख्य बिंदु: आयोजक: कश्यप समाज पिछड़ा एकीकरण मंच, संस्थापक अध्यक्ष राजेश कश्यप। कार्यक्रम: सातवां सामूहिक विवाह समारोह। थीम/नारे: "आपकी बेटी-हमारी बेटी", "सर्व-समाज"। तिथि: 5 दिसंबर 2025, शुक्रवार। स्थान: ऑडिटोरियम, राजकीय इण्टर कालेज, बाराबंकी। उद्देश्य: समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट कर सामूहिक विवाह के माध्यम से बेटियों का सम्मान और सामाजिक समरसता बढ़ाना। यह आयोजन कश्यप समुदाय और अन्य संबंधित समाजों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यक्रम था, जिसका उद्देश्य विवाह के बंधन को एक सामूहिक और सामाजिक पहल के रूप में मनाना था।4
- बाराबंकी में पुरानी रंजिश को लेकर मारी गोली गुरसेल गांव की घटना जिला अस्पताल किया गया रेफर क्षेत्र में मचा हड़कंप1
- Post by Anoopshukla1
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