Suresh Chandra Agrawal: *Bhagavad Gita App* *Chapter:* 2 *श्लोक:* 49 *श्लोक:* दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय । बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥ ४९ ॥ *अनुवाद:* हे धनंजय! भक्ति के द्वारा समस्त गर्हित कर्मों से दूर रहो और उसी भाव से भगवान् की शरण ग्रहण करो। जो व्यक्ति अपने सकाम कर्म-फलों को भोगना चाहते हैं, वे कृपण हैं। *तात्पर्य:* जो व्यक्ति भगवान् के दास रूप में अपने स्वरूप को समझ लेता है वह कृष्णभावनामृत में स्थित रहने के अतिरिक्त सारे कर्मों को छोड़ देता है। जीव के लिए ऐसी भक्ति कर्म का सही मार्ग है। केवल कृपण ही अपने सकाम कर्मों का फल भोगना चाहते हैं, किन्तु इससे वे भवबन्धन में और अधिक फँसते जाते हैं। कृष्णभावनामृत के अतिरिक्त जितने भी कर्म सम्पन्न किये जाते हैं वे गर्हित हैं क्योंकि इससे कर्ता जन्म-मृत्यु के चक्र में लगातार फँसा रहता है। अत: कभी इसकी आकांक्षा नहीं करनी चाहिए कि मैं कर्म का कारण बनूँ। कृष्णभावनामृत में हर कार्य कृष्ण की तुष्टि के लिए किया जाना चाहिए। कृपणों को यह ज्ञात नहीं है कि दैववश या कठोर श्रम से अर्जित सम्पत्ति का किस तरह सदुपयोग करें। मनुष्य को अपनी सारी शक्ति कृष्णभावनामृत अर्जित करने में लगानी चाहिए। इससे उसका जीवन सफल हो सकेगा। कृपणों की भाँति अभागे व्यक्ति अपनी मानवी शक्ति को भगवान् की सेवा में नहीं लगाते। *Download Bhagavad Gita App* _*https://play.google.com/store/apps/details?id=com.bhagavad.gita.hindi.app*_ खुद से बोलिये मैं खुश हूँ, मैं स्वस्थ्य हूँ । मेरा जीवन ख़ुशियों से भरा हुआ है और मैं उसे पूरे आनंद के साथ जी रहा हूँ ! सफर बदलाव की ओर *समस्त श्री कृष्ण भक्त रसिक जनों के श्री चरणों में दण्डवत् प्रणाम*🙏🏻 *सदैव जपिए एवँ प्रसन्न रहिए 🐚* *!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!* *"वान्छा कल्पतरुभ्यश्चय कृपासिन्धुभ्य एव च।* *पतितानाम् पावनेभ्यो वैष्णेवेभ्यो नमो नमः॥"* *मै भगवान के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूं! वे कल्पवृक्ष के समान सबो की इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ हैं तथा पतित जीवात्मा के प्रति अत्यंत दयालु हैं !!* *मुझसे पतीत और ना कोई आप मुझे अपने चरणों का आश्रय दे.* Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता): हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल हमने ही भोगना पड़ता है। इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण और कुम्हार की कहानी यह कहानी भगवान कृष्ण के बाल्य काल की है. बचपन में कृष्ण बडे ही शरारती थे. आये दिन कृष्ण भगवान के नए-नए उलाहने रोज यशोदा मैया के पास आते रहते थे. इन्हीं उलाहनो से तंग आकार एक दिन यशोदा मैया छड़ी लेकर कृष्ण भगवान के पीछे दौड़ी थी. और मैया से भगाते-भगाते गोविंदा एक कुम्हार के घर घुस गए. उस वक्त कुम्हार अपने काम में व्यस्त था. पर जब कुम्हार की दृष्टि भगवान पर पडी. तब वह बडाही प्रसन्न हो उठा. कृष्ण बोले कुम्हारजी-कुम्हारजी मेरी मैया बहुत क्रोधित है और छड़ी लेकर मुझे ढूंड रही है. कुछ समय के लिए. मुझे कही छुपा लीजिये. कुम्हार भगवान श्री कृष्ण के अवतार स्वरुप से ज्ञात था. उसने तुरंत कृष्णजी को एक बडेसे मिटटी के घड़े के निचे छुपा दिया कुछ समय पश्चात जब यशोदा मैयाने वहां आकार पूछा. क्यों रे कुम्हार! क्या तूने मेरे कान्हा को देखा है? . तो कुम्हार ने जवाब दिया नहीं मैया मैंने नहीं देखा. कुम्हार और यशोदा मैया के बिच हो रहा सवांद भगवान श्री कृष्ण गौर से सुन रहे थे. फिर जब माता यशोदा वहां से चली गई. तब कान्हा बोले कुम्हारजी मेरी माता यदि चली गई हो. तो मुझे इस घडे से बाहर निकालिए. कुम्हार बोला एसे नहीं भगवान पहले आपको मुझे वचन देना होगा. की आप मुझे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त कर देंगे. कुम्हार की बात सुनकर कान्हाजी मुस्कुराये और बोले ठीक कुम्हार मैं वचन देता हूं. की मैं तुम्हे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्ति दे दूंगा. अब तो मुझे बाहर निकालो. कुम्हार बोला मुझे अकेले को नहीं महाप्रभु मेरे पूरे परिवार को भी. चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दीजिये. तो ही मैं आपको घडे से बाहर निकालूंगा. इसपर कृष्ण बोले ठीक भैया. मैं उन्हें भी चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन देता हूं. अब तो बाहर निकाल दो. अब कुम्हार बोला बस प्रभुजी एक विनती और है. उसे पूरा करने का वचन देते है. तो मैं आपको घडे से बाहर निकाल लूंगा . कृष्ण बोले अब वह भी बता दो. कुम्हार ने कहा हे प्रभुजी जिस घडे के निचे आप छुपे है. उस घडे को बनाने के लिए. लाई गई मिटटी मेरे बैलों पर लाद कर लाई है. आप मेरे उन बैलो को भी चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दीजिये. कृष्ण भगवान ने कुम्हार का प्राणी प्रेम देखकर उन बैलों को भी मोक्ष देने का वचन दिया. कान्हा बोले लो तुम्हारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई है. अब तो इस घडे से मुझे बाहर निकल लो. इसबार कुम्हार बोला अभी नहीं भगवान. बस एक अंतिम इच्छा शेष रह गई है और वह यह है कि जो भी जीव हम दोनों के बिच हुए इस सवांद को सुनेगा. उसे भी आप इस जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देंगे. बस यह वचन भी दे दीजिये. तभी मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूंगा. कुम्हार की सच्ची प्रेमभावना देखकर कृष्ण भगवान अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कुम्हार को तथास्तु कह दिया . फिर जाकर कुम्हार ने बाल कृष्ण को घडे से बाहर निकाला. उनको साष्टांग प्रणाम करके. उनके चरण धोये और वह चरण अमृत प्राशन करके. अपने पूरे घर में उसका छिडकाव किया. अंतमें कुम्हार प्रभु कृष्ण के गले लगकर इतना रोया इतना रोया की उनमे ही विलीन हो गया. जय श्री राम जय श्री कृष्ण If you light a lamp for somebody, it will also brighten your path. अगर आप किसी और के लिए दीपक जलाएंगे, तो वो आपका भी मार्ग प्रकाशित करेगा. जो मनुष्य मान-प्रतिष्ठा और मोह से मुक्त है तथा जिसने सांसारिक विषयों में लिप्त मनुष्यों की संगति को त्याग दिया है, जो निरन्तर परमात्म स्वरूप में स्थित रहता है, जिसकी सांसारिक कामनाएँ पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है और जिसका सुख-दुःख नाम का भेद समाप्त हो गया है ऎसा मोह से मुक्त हुआ मनुष्य उस अविनाशी परम-पद (परम-धाम) को प्राप्त करता हैं। ईश्वर से कुछ मागने पर न मिले तो नाराज न होना। क्योकि, ईश्वर वह नहीं देता जो आपको अच्छा लगता है, बल्कि वह देता जो आपके लिए अच्छा होता है!! मनुष्य का जीवन सरल व सहज होना चाहिए. जिस तरह भगवान् श्री कृष्ण शक्ति सम्पन्न होने के बावजूद भी अर्जुन के सारथी बने और युधिष्ठिर के दूत बने. एक बार तो भगवान् श्री कृष्ण ने दुर्योधन के छप्पन व्यंजन को छोड़कर विदुर के धर सादा भोजन करना पसंद किया. भगवान से विमुख पुरूष को उनकी माया घेर लेती है और उसी माया के कारण उसे भगवान में जगत की मिथ्या प्रतीति होकर भगवान की विस्मृति हो जाती है | श्री हरि: शरणम् All wrong-doing arises because of mind. If mind is transformed can wrong-doing remain? सारे गलत काम मन की वजह से होते हैं. यदि मन को बदल दिया जाए तो क्या गलत काम रह सकते हैं? पीड़ाओं का कभी पूर्णतया अंत नहीं होता वो बस कुछ पल के लिए कम होती है,हमें छलने के लिए ताकि हम भूल सके पिड़ाओ का स्वरूप और हो सके क्षण भर के लिए छल से प्रसन्न, अंत होता है.. केवल जीवन का, सुख का, हमारी पसंद का, हमारी इच्छाओं का,हमारी घुटन का और अंत में हमारी सांसों का...! प्रेरणास्पद कथायें: मृदु व्यवहार संत के पास एक व्यक्ति आया और बोला, 'गुरुदेव, आप प्रवचन करते समय कहते हैं कि कटु से कटु वचन बोलने वाले के अंदर भी नरम हृदय हो सकता है। मुझे विश्वास नहीं होता।' संत यह सुनकर गंभीर हो गए। उन्होंने कहा, 'मैं इसका जवाब कुछ समय बाद ही दे पाऊंगा।' व्यक्ति लौट गया। एक महीने बाद वह फिर संत के पास पहुंचा। उस समय संत प्रवचन दे रहे थे। वह लोगों के बीच जाकर बैठ गया। प्रवचन समाप्त होने के बाद संत ने एक नारियल उस व्यक्ति को दिया और कहा, 'वत्स, इसे तोड़कर इसकी गिरी निकाल कर लोगों में बांट दो।' व्यक्ति उसे तोड़ने लगा। नारियल बेहद सख्त था। बहुत कोशिश करने के बाद भी वह नहीं टूटा। उसने कहा, 'गुरुदेव, यह बहुत कड़ा है। कोई औजार हो तो उससे इसे तोड़ दूं।' संत बोले, 'औजार लेकर क्या करोगे? कोशिश करो, टूट जाएगा। वह फिर उसे तोड़ने लगा। इस बार वह टूट गया। उसने गिरी निकाल कर भक्तों में बांट दी। और एक कोने में बैठ गया। एक एक करके सभी भक्त चले गए। संत भी उठकर जाने लगे, तो उसने कहा, 'गुरुदेव, अभी तक मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।' संत मुस्कराकर बोले, 'तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है। पर तुमने समझा नहीं। व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा, 'मैं समझा नहीं पाया।' संत ने समझाया, 'देख जिस तरह कठोर गोले में नरम गिरी होती है। उसी प्रकार कठोर से कठोर व्यक्ति में भी नरम हृदय हो है। उसे भी एक विशेष औजार से निकालना पड़ता है। वह औजार है, प्रेमपूर्ण व्यवहार। यदि किसी के कठोर आचरण या वचन का जवाब स्नेह से दिया जाए तो उसके भीतर का नरम हृदय बाहर आ जाता है। वह खुद भी मृदु व्यवहार करने लगता है।' सीख - मृदु व्यवहार कठोर हृद को भी कोमल बना सकता है। दान या सौदा एक बार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे, तभी बातों बातों में अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि क्यों कर्ण को दानवीर कहा जाता है और उन्हें नहीं। जबकि दान हम भी बहुत करते हैं। यह सुन कर कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया, और अर्जुन से कहा कि वे उनका सारा सोना गाँव वालो के बीच बाट दें । तब अर्जुन गाँव गए और सारे लोगों से कहा कि वे पर्वत के पास जमा हो जाएं क्योंकि वे सोना बांटने जा रहे हैं, यह सुन गाँव वालो ने अर्जुन की जय जयकार करनी शुरू कर दी और अर्जुन छाती चौड़ी कर पर्वत की तरफ चल दिए। दो दिन और दो रातों तक अर्जुन ने सोने के पर्वतों को खोदा और सोना गाँव वालो में बांटा। पर पर्वत पर कोई असर नहीं हुआ। इसी बीच बहुत से गाँव वाले फिर से कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतज़ार करने लगे। अर्जुन अब थक चुके थे लेकिन अपने अहंकार को नहीं छोड़ रहे थे। उन्होंने कृष्ण से कहा कि अब वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं और इसके बिना वे खुदाई नहीं कर सकेंगे । तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और कहा कि सोने के पर्वतों को इन गाँव वालों के बीच में बाट दें। कर्ण ने सारे गाँव वालों को बुलाया और कहा कि ये दोनों सोने के पर्वत उनके ही हैं और वे आ कर सोना प्राप्त कर लें। आैर एेसा कहकर वह वहां से चले गए। अर्जुन भौंचक्के रह गए और सोचने लगे कि यह ख्याल उनके दिमाग में क्यों नहीं आया। तब कृष्ण मुस्कुराये और अर्जुन से बोले कि तुम्हें सोने से मोह हो गया था और तुम गाँव वालो को उतना ही सोना दे रहे थे जितना तुम्हें लगता था कि उन्हें जरुरत है। इसलिए सोने को दान में कितना देना है इसका आकार तुम तय कर रहे थे। लेकिन कर्ण ने इस तरह से नहीं सोचा और दान देने के बाद कर्ण वहां से दूर चले गए। वे नहीं चाहते थे कि कोई उनकी प्रशंसा करे और ना ही उन्हें इस बात से कोई फर्क पड़ता था कि कोई उनके पीछे उनके बारे में क्या बोलता है। यह उस व्यक्ति की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हासिल हो चुका है। दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना उपहार नहीं सौदा कहलाता है। अत: यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमें ऐसा बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ताकि यह हमारा सत्कर्म हो ना कि हमारा अहंकार..!! मंगलमय प्रभात प्रणाम *बालों का झड़ना कम करें* नए बालों को उगाने में बादाम का तेल बहुत असरदार रूप से काम करता है। इस तेल में विटामिन ई, डी, मिनरल, कैल्शियम और मैग्नेशियम होता है जो रूखे और टूटे-फूटे बालों में जान लाने के साथ-साथ बालों का झड़ना भी कम करता है। बादाम का तेल नैचुरल कंडिशनर भी कहा जाता हे *घी में छुपे हैं, सेहत और ब्यूटी के फायदे* 1 एक चम्मच शुद्ध घी, एक चम्मच पिसी शकर, चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाटकर गर्म मीठा दूध पीने से आंखों की ज्योति बढ़ती है। 2 एक बड़े कटोरे में 100 ग्राम शुद्ध घी लेकर इसमें पानी डालकर हलके हाथ से फेंटकर पानी फेंक दें। यह एक बार घी धोना हुआ। ऐसे 10 बार पानी से घी को धोकर कटोरे को थोड़ी देर के लिए झुकाकर रख दें, ताकि थोड़ा बहुत पानी बच गया हो तो वह भी निकल जाए। अब इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें और चौड़े मुुंह की शीशी में भर दें। यह घी, खुजली, फोड़े फुंसी आदि चर्म रोगों की उत्तम दवा है। 3 रात को सोते समय एक गिलास मीठे दूध में एक चम्मच घी डालकर पीने से शरीर की खुश्की और दुर्बलता दूर होती है, नींद गहरी आती है, हड्डी बलवान होती है और सुबह शौच साफ आता है। ठंड आने के पहले से ठंड खत्म होने तक यह प्रयोग करने से शरीर में बलवीर्य बढ़ता है और दुबलापन दूर होता है। 4 घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शकर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बांध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूंट-घूंट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।
Suresh Chandra Agrawal: *Bhagavad Gita App* *Chapter:* 2 *श्लोक:* 49 *श्लोक:* दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय । बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥ ४९ ॥ *अनुवाद:* हे धनंजय! भक्ति के द्वारा समस्त गर्हित कर्मों से दूर रहो और उसी भाव से भगवान् की शरण ग्रहण करो। जो व्यक्ति अपने सकाम कर्म-फलों को भोगना चाहते हैं, वे कृपण हैं। *तात्पर्य:* जो व्यक्ति भगवान् के दास रूप में अपने स्वरूप को समझ लेता है वह कृष्णभावनामृत में स्थित रहने के अतिरिक्त सारे कर्मों को छोड़ देता है। जीव के लिए ऐसी भक्ति कर्म का सही मार्ग है। केवल कृपण ही अपने सकाम कर्मों का फल भोगना चाहते हैं, किन्तु इससे वे भवबन्धन में और अधिक फँसते जाते हैं। कृष्णभावनामृत के अतिरिक्त जितने भी कर्म सम्पन्न किये जाते हैं वे गर्हित हैं क्योंकि इससे कर्ता जन्म-मृत्यु के चक्र में लगातार फँसा रहता है। अत: कभी इसकी आकांक्षा नहीं करनी चाहिए कि मैं कर्म का कारण बनूँ। कृष्णभावनामृत में हर कार्य कृष्ण की तुष्टि के लिए किया जाना चाहिए। कृपणों को यह ज्ञात नहीं है कि दैववश या कठोर श्रम से अर्जित सम्पत्ति का किस तरह सदुपयोग करें। मनुष्य को अपनी सारी शक्ति कृष्णभावनामृत अर्जित करने में लगानी चाहिए। इससे उसका जीवन सफल हो सकेगा। कृपणों की भाँति अभागे व्यक्ति अपनी मानवी शक्ति को भगवान् की सेवा में नहीं लगाते। *Download Bhagavad Gita App* _*https://play.google.com/store/apps/details?id=com.bhagavad.gita.hindi.app*_ खुद से बोलिये मैं खुश हूँ, मैं स्वस्थ्य हूँ । मेरा जीवन ख़ुशियों से भरा हुआ है और मैं उसे पूरे आनंद के साथ जी रहा हूँ ! सफर बदलाव की ओर *समस्त श्री कृष्ण भक्त रसिक जनों के श्री चरणों में दण्डवत् प्रणाम*🙏🏻 *सदैव जपिए एवँ प्रसन्न रहिए 🐚* *!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!* *"वान्छा कल्पतरुभ्यश्चय कृपासिन्धुभ्य एव च।* *पतितानाम् पावनेभ्यो वैष्णेवेभ्यो नमो नमः॥"* *मै भगवान के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूं! वे कल्पवृक्ष के समान सबो की इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ हैं तथा पतित जीवात्मा के प्रति अत्यंत दयालु हैं !!* *मुझसे पतीत और ना कोई आप मुझे अपने चरणों का आश्रय दे.* Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता): हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल हमने ही भोगना पड़ता है। इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण और कुम्हार की कहानी यह कहानी भगवान कृष्ण के बाल्य काल की है. बचपन में कृष्ण बडे ही शरारती थे. आये दिन कृष्ण भगवान के नए-नए उलाहने रोज यशोदा मैया के पास आते रहते थे. इन्हीं उलाहनो से तंग आकार एक दिन यशोदा मैया छड़ी लेकर कृष्ण भगवान के पीछे दौड़ी थी. और मैया से भगाते-भगाते गोविंदा एक कुम्हार के घर घुस गए. उस वक्त कुम्हार अपने काम में व्यस्त था. पर जब कुम्हार की दृष्टि भगवान पर पडी. तब वह बडाही प्रसन्न हो उठा. कृष्ण बोले कुम्हारजी-कुम्हारजी मेरी मैया बहुत क्रोधित है और छड़ी लेकर मुझे ढूंड रही है. कुछ समय के लिए. मुझे कही छुपा लीजिये. कुम्हार भगवान श्री कृष्ण के अवतार स्वरुप से ज्ञात था. उसने तुरंत कृष्णजी को एक बडेसे मिटटी के घड़े के निचे छुपा दिया कुछ समय पश्चात जब यशोदा मैयाने वहां आकार पूछा. क्यों रे कुम्हार! क्या तूने मेरे कान्हा को देखा है? . तो कुम्हार ने जवाब दिया नहीं मैया मैंने नहीं देखा. कुम्हार और यशोदा मैया के बिच हो रहा सवांद भगवान श्री कृष्ण गौर से सुन रहे थे. फिर जब माता यशोदा वहां से चली गई. तब कान्हा बोले कुम्हारजी मेरी माता यदि चली गई हो. तो मुझे इस घडे से बाहर निकालिए. कुम्हार बोला एसे नहीं भगवान पहले आपको मुझे वचन देना होगा. की आप मुझे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त कर देंगे. कुम्हार की बात सुनकर कान्हाजी मुस्कुराये और बोले ठीक कुम्हार मैं वचन देता हूं. की मैं तुम्हे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्ति दे दूंगा. अब तो मुझे बाहर निकालो. कुम्हार बोला मुझे अकेले को नहीं महाप्रभु मेरे पूरे परिवार को भी. चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दीजिये. तो ही मैं आपको घडे से बाहर निकालूंगा. इसपर कृष्ण बोले ठीक भैया. मैं उन्हें भी चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन देता हूं. अब तो बाहर निकाल दो. अब कुम्हार बोला बस प्रभुजी एक विनती और है. उसे पूरा करने का वचन देते है. तो मैं आपको घडे से बाहर निकाल लूंगा . कृष्ण बोले अब वह भी बता दो. कुम्हार ने कहा हे प्रभुजी जिस घडे के निचे आप छुपे है. उस घडे को बनाने के लिए. लाई गई मिटटी मेरे बैलों पर लाद कर लाई है. आप मेरे उन बैलो को भी चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दीजिये. कृष्ण भगवान ने कुम्हार का प्राणी प्रेम देखकर उन बैलों को भी मोक्ष देने का वचन दिया. कान्हा बोले लो तुम्हारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई है. अब तो इस घडे से मुझे बाहर निकल लो. इसबार कुम्हार बोला अभी नहीं भगवान. बस एक अंतिम इच्छा शेष रह गई है और वह यह है कि जो भी जीव हम दोनों के बिच हुए इस सवांद को सुनेगा. उसे भी आप इस जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देंगे. बस यह वचन भी दे दीजिये. तभी मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूंगा. कुम्हार की सच्ची प्रेमभावना देखकर कृष्ण भगवान अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कुम्हार को तथास्तु कह दिया . फिर जाकर कुम्हार ने बाल कृष्ण को घडे से बाहर निकाला. उनको साष्टांग प्रणाम करके. उनके चरण धोये और वह चरण अमृत प्राशन करके. अपने पूरे घर में उसका छिडकाव किया. अंतमें कुम्हार प्रभु कृष्ण के गले लगकर इतना रोया इतना रोया की उनमे ही विलीन हो गया. जय श्री राम जय श्री कृष्ण If you light a lamp for somebody, it will also brighten your path. अगर आप किसी और के लिए दीपक जलाएंगे, तो वो आपका भी मार्ग प्रकाशित करेगा. जो मनुष्य मान-प्रतिष्ठा और मोह से मुक्त है तथा जिसने सांसारिक विषयों में लिप्त मनुष्यों की संगति को त्याग दिया है, जो निरन्तर परमात्म स्वरूप में स्थित रहता है, जिसकी सांसारिक कामनाएँ पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है और जिसका सुख-दुःख नाम का भेद समाप्त हो गया है ऎसा मोह से मुक्त हुआ मनुष्य उस अविनाशी परम-पद (परम-धाम) को प्राप्त करता हैं। ईश्वर से कुछ मागने पर न मिले तो नाराज न होना। क्योकि, ईश्वर वह नहीं देता जो आपको अच्छा लगता है, बल्कि वह देता जो आपके लिए अच्छा होता है!! मनुष्य का जीवन सरल व सहज होना चाहिए. जिस तरह भगवान् श्री कृष्ण शक्ति सम्पन्न होने के बावजूद भी अर्जुन के सारथी बने और युधिष्ठिर के दूत बने. एक बार तो भगवान् श्री कृष्ण ने दुर्योधन के छप्पन व्यंजन को छोड़कर विदुर के धर सादा भोजन करना पसंद किया. भगवान से विमुख पुरूष को उनकी माया घेर लेती है और उसी माया के कारण उसे भगवान में जगत की मिथ्या प्रतीति होकर भगवान की विस्मृति हो जाती है | श्री हरि: शरणम् All wrong-doing arises because of mind. If mind is transformed can wrong-doing remain? सारे गलत काम मन की वजह से होते हैं. यदि मन को बदल दिया जाए तो क्या गलत काम रह सकते हैं? पीड़ाओं का कभी पूर्णतया अंत नहीं होता वो बस कुछ पल के लिए कम होती है,हमें छलने के लिए ताकि हम भूल सके पिड़ाओ का स्वरूप और हो सके क्षण भर के लिए छल से प्रसन्न, अंत होता है.. केवल जीवन का, सुख का, हमारी पसंद का, हमारी इच्छाओं का,हमारी घुटन का और अंत में हमारी सांसों का...! प्रेरणास्पद कथायें: मृदु व्यवहार संत के पास एक व्यक्ति आया और बोला, 'गुरुदेव, आप प्रवचन करते समय कहते हैं कि कटु से कटु वचन बोलने वाले के अंदर भी नरम हृदय हो सकता है। मुझे विश्वास नहीं होता।' संत यह सुनकर गंभीर हो गए। उन्होंने कहा, 'मैं इसका जवाब कुछ समय बाद ही दे पाऊंगा।' व्यक्ति लौट गया। एक महीने बाद वह फिर संत के पास पहुंचा। उस समय संत प्रवचन दे रहे थे। वह लोगों के बीच जाकर बैठ गया। प्रवचन समाप्त होने के बाद संत ने एक नारियल उस व्यक्ति को दिया और कहा, 'वत्स, इसे तोड़कर इसकी गिरी निकाल कर लोगों में बांट दो।' व्यक्ति उसे तोड़ने लगा। नारियल बेहद सख्त था। बहुत कोशिश करने के बाद भी वह नहीं टूटा। उसने कहा, 'गुरुदेव, यह बहुत कड़ा है। कोई औजार हो तो उससे इसे तोड़ दूं।' संत बोले, 'औजार लेकर क्या करोगे? कोशिश करो, टूट जाएगा। वह फिर उसे तोड़ने लगा। इस बार वह टूट गया। उसने गिरी निकाल कर भक्तों में बांट दी। और एक कोने में बैठ गया। एक एक करके सभी भक्त चले गए। संत भी उठकर जाने लगे, तो उसने कहा, 'गुरुदेव, अभी तक मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।' संत मुस्कराकर बोले, 'तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है। पर तुमने समझा नहीं। व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा, 'मैं समझा नहीं पाया।' संत ने समझाया, 'देख जिस तरह कठोर गोले में नरम गिरी होती है। उसी प्रकार कठोर से कठोर व्यक्ति में भी नरम हृदय हो है। उसे भी एक विशेष औजार से निकालना पड़ता है। वह औजार है, प्रेमपूर्ण व्यवहार। यदि किसी के कठोर आचरण या वचन का जवाब स्नेह से दिया जाए तो उसके भीतर का नरम हृदय बाहर आ जाता है। वह खुद भी मृदु व्यवहार करने लगता है।' सीख - मृदु व्यवहार कठोर हृद को भी कोमल बना सकता है। दान या सौदा एक बार भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे, तभी बातों बातों में अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि क्यों कर्ण को दानवीर कहा जाता है और उन्हें नहीं। जबकि दान हम भी बहुत करते हैं। यह सुन कर कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया, और अर्जुन से कहा कि वे उनका सारा सोना गाँव वालो के बीच बाट दें । तब अर्जुन गाँव गए और सारे लोगों से कहा कि वे पर्वत के पास जमा हो जाएं क्योंकि वे सोना बांटने जा रहे हैं, यह सुन गाँव वालो ने अर्जुन की जय जयकार करनी शुरू कर दी और अर्जुन छाती चौड़ी कर पर्वत की तरफ चल दिए। दो दिन और दो रातों तक अर्जुन ने सोने के पर्वतों को खोदा और सोना गाँव वालो में बांटा। पर पर्वत पर कोई असर नहीं हुआ। इसी बीच बहुत से गाँव वाले फिर से कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतज़ार करने लगे। अर्जुन अब थक चुके थे लेकिन अपने अहंकार को नहीं छोड़ रहे थे। उन्होंने कृष्ण से कहा कि अब वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं और इसके बिना वे खुदाई नहीं कर सकेंगे । तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और कहा कि सोने के पर्वतों को इन गाँव वालों के बीच में बाट दें। कर्ण ने सारे गाँव वालों को बुलाया और कहा कि ये दोनों सोने के पर्वत उनके ही हैं और वे आ कर सोना प्राप्त कर लें। आैर एेसा कहकर वह वहां से चले गए। अर्जुन भौंचक्के रह गए और सोचने लगे कि यह ख्याल उनके दिमाग में क्यों नहीं आया। तब कृष्ण मुस्कुराये और अर्जुन से बोले कि तुम्हें सोने से मोह हो गया था और तुम गाँव वालो को उतना ही सोना दे रहे थे जितना तुम्हें लगता था कि उन्हें जरुरत है। इसलिए सोने को दान में कितना देना है इसका आकार तुम तय कर रहे थे। लेकिन कर्ण ने इस तरह से नहीं सोचा और दान देने के बाद कर्ण वहां से दूर चले गए। वे नहीं चाहते थे कि कोई उनकी प्रशंसा करे और ना ही उन्हें इस बात से कोई फर्क पड़ता था कि कोई उनके पीछे उनके बारे में क्या बोलता है। यह उस व्यक्ति की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हासिल हो चुका है। दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना उपहार नहीं सौदा कहलाता है। अत: यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमें ऐसा बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ताकि यह हमारा सत्कर्म हो ना कि हमारा अहंकार..!! मंगलमय प्रभात प्रणाम *बालों का झड़ना कम करें* नए बालों को उगाने में बादाम का तेल बहुत असरदार रूप से काम करता है। इस तेल में विटामिन ई, डी, मिनरल, कैल्शियम और मैग्नेशियम होता है जो रूखे और टूटे-फूटे बालों में जान लाने के साथ-साथ बालों का झड़ना भी कम करता है। बादाम का तेल नैचुरल कंडिशनर भी कहा जाता हे *घी में छुपे हैं, सेहत और ब्यूटी के फायदे* 1 एक चम्मच शुद्ध घी, एक चम्मच पिसी शकर, चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाटकर गर्म मीठा दूध पीने से आंखों की ज्योति बढ़ती है। 2 एक बड़े कटोरे में 100 ग्राम शुद्ध घी लेकर इसमें पानी डालकर हलके हाथ से फेंटकर पानी फेंक दें। यह एक बार घी धोना हुआ। ऐसे 10 बार पानी से घी को धोकर कटोरे को थोड़ी देर के लिए झुकाकर रख दें, ताकि थोड़ा बहुत पानी बच गया हो तो वह भी निकल जाए। अब इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें और चौड़े मुुंह की शीशी में भर दें। यह घी, खुजली, फोड़े फुंसी आदि चर्म रोगों की उत्तम दवा है। 3 रात को सोते समय एक गिलास मीठे दूध में एक चम्मच घी डालकर पीने से शरीर की खुश्की और दुर्बलता दूर होती है, नींद गहरी आती है, हड्डी बलवान होती है और सुबह शौच साफ आता है। ठंड आने के पहले से ठंड खत्म होने तक यह प्रयोग करने से शरीर में बलवीर्य बढ़ता है और दुबलापन दूर होता है। 4 घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शकर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बांध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूंट-घूंट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।
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