** बाबा देवी साहब जब अपने स्वांस को पुर्णतः बंद कर लिए तो पण्डितजी डर के मारे भागने लगे ! पढ़े दुर्लभ संस्मरण को ** बाबा साहब योगबल से अपने शरीर की गति को रोकने में भी समर्थ थे, जो प्रायः देखने में आया। एक बार ऐसा हुआ कि महामहोपदेशक (Honourary Magistrate) ऑनरेरी मजिस्ट्रेट राय साहब पण्डित दुर्गादत्त काशीपुर-निवासी बाबा साहब के दर्शन को आये और योग के विषय में कुछ देर बातचीत करके कहने लगे कि यह जो कहा जाता है कि योगी अपनी चेतन-शक्ति को ब्रह्माण्ड में चढ़ा लेते हैं। और उनका शरीर मृतक शरीर के समान हो जाता है, नाड़ी की क्रिया रुक जाती है, क्या आपके विचार से सत्य है ? बाबा साहब ने कहा कि हाँ, सत्य है। वे कहने लगे कि मैं तो अभी तक इसको नहीं समझ सका हूँ, इसलिये योग की ऐसी बातों पर मुझको विश्वास भी नहीं है। यदि आप दिखलाने की कृपा करें तो मेरे हृदय में भी उसके लिये उत्साह हो जावे और मैं भी उसके साधन में लग जाऊँ। बाबा साहब ने कहा कि जो लोग इस प्रकार का आदर्श लेकर भजन करना चाहते हैं, वे मजदूर हैं। जो अपने परिश्रम के बदले में सिद्धि-शक्ति की अभिलाषा रखते हैं, उनको प्रभु का सच्चा भक्त नहीं कहा जा सकता, न वे उसके धाम में पहुँचने के योग्य हैं। हमलोग तो भक्तियोग को जानते हैं। आपको भी प्रेमभक्ति के साथ प्रभु के भजन में लगना चाहिये। ऐसे विचारों से क्या लाभ है ? जिसने प्रभु को अपना लिया, सिद्धि-शक्ति तो उसके पीछे आप ही लगी फिरती है। वे कहने लगे कि कृपा करके मेरा सन्देह तो दूर कर दीजिए, मैं भक्तिभाव से ही भजन करूँगा। बाबा साहब ने कहा कि यदि यही बात है तो तुम हमारी नाड़ी देखना आरम्भ करो। उन्होंने नाड़ी पर हाथ रखा तो वह शीघ्रता से चल रही थी। बाबा साहब ने सुरत को फेर दिया, शरीर सुन्न होने लगा, नाड़ी धीमी पड़ती गई, यहाँ तक कि कुछ देर पश्चात् सर्वथा बन्द हो गई। यह अवस्था देखकर तो पण्डितजी घबरा गये, तत्काल उठे और जूते पहनने लगे। तब पूज्य श्री नन्दन बाबा ने उनको रोका कि आप कहाँ जाते हैं ? घबराइये नहीं, बैठिये, समझाने से वे बैठ गये। लगभग आधे घंटे के बाद बाबा साहब समाधि से फिर शारीरिक चेतना में आ गये। पण्डितजी ने प्रणाम किया और कहा कि महाराज, मैं तो यह समझकर कि आप गुप्त हो गये हैं, घबरा गया था, भागना ही चाहता था कि नन्दनजी ने रोक लिया। आज यह तो मैंने विचित्र बात देखी. वास्तव में योग में बड़ी शक्ति है, परन्तु उसके जाननेवाले नहीं हैं, इसीलिए लोगों को इधर से अविश्वास हो गया है, अब मुझको भी कुछ बतला दीजिये । बाबा साहब ने कहा कि अभी जो कुछ जप इत्यादि करते हो, सो ही करते रहो। मन की गति को रोकने का - प्रयत्न करो, सत्सङ्ग करते रहो, धीरे-धीरे दूसरा साधन भी बतला - दिया जायेगा। वे बराबर बाबा साहब की सेवा में आते रहे !!!
** बाबा देवी साहब जब अपने स्वांस को पुर्णतः बंद कर लिए तो पण्डितजी डर के मारे भागने लगे ! पढ़े दुर्लभ संस्मरण को ** बाबा साहब योगबल से अपने शरीर की गति को रोकने में भी समर्थ थे, जो प्रायः देखने में आया। एक बार ऐसा हुआ कि महामहोपदेशक (Honourary Magistrate) ऑनरेरी मजिस्ट्रेट राय साहब पण्डित दुर्गादत्त काशीपुर-निवासी बाबा साहब के दर्शन को आये और योग के विषय में कुछ देर बातचीत करके कहने लगे कि यह जो कहा जाता है कि योगी अपनी चेतन-शक्ति को ब्रह्माण्ड में चढ़ा लेते हैं। और उनका शरीर मृतक शरीर के समान हो जाता है, नाड़ी की क्रिया रुक जाती है, क्या आपके विचार से सत्य है ? बाबा साहब ने कहा कि हाँ, सत्य है। वे कहने लगे कि मैं तो अभी तक इसको नहीं समझ सका हूँ, इसलिये योग की ऐसी बातों पर मुझको विश्वास भी नहीं है। यदि आप दिखलाने की कृपा करें तो मेरे हृदय में भी उसके लिये उत्साह हो जावे और मैं भी उसके साधन में लग जाऊँ। बाबा साहब ने कहा कि जो लोग इस प्रकार का आदर्श लेकर भजन करना चाहते हैं, वे मजदूर हैं। जो अपने परिश्रम के बदले में सिद्धि-शक्ति की अभिलाषा रखते हैं, उनको प्रभु का सच्चा भक्त नहीं कहा जा सकता, न वे उसके धाम में पहुँचने के योग्य हैं। हमलोग तो भक्तियोग को जानते हैं। आपको भी प्रेमभक्ति के साथ प्रभु के भजन में लगना चाहिये। ऐसे विचारों से क्या लाभ है ? जिसने प्रभु को अपना लिया, सिद्धि-शक्ति तो उसके पीछे आप ही लगी फिरती है। वे कहने लगे कि कृपा करके मेरा सन्देह तो दूर कर दीजिए, मैं भक्तिभाव से ही भजन करूँगा। बाबा साहब ने कहा कि यदि यही बात है तो तुम हमारी नाड़ी देखना आरम्भ करो। उन्होंने नाड़ी पर हाथ रखा तो वह शीघ्रता से चल रही थी। बाबा साहब ने सुरत को फेर दिया, शरीर सुन्न होने लगा, नाड़ी धीमी पड़ती गई, यहाँ तक कि कुछ देर पश्चात् सर्वथा बन्द हो गई। यह अवस्था देखकर तो पण्डितजी घबरा गये, तत्काल उठे और जूते पहनने लगे। तब पूज्य श्री नन्दन बाबा ने उनको रोका कि आप कहाँ जाते हैं ? घबराइये नहीं, बैठिये, समझाने से वे बैठ गये। लगभग आधे घंटे के बाद बाबा साहब समाधि से फिर शारीरिक चेतना में आ गये। पण्डितजी ने प्रणाम किया और कहा कि महाराज, मैं तो यह समझकर कि आप गुप्त हो गये हैं, घबरा गया था, भागना ही चाहता था कि नन्दनजी ने रोक लिया। आज यह तो मैंने विचित्र बात देखी. वास्तव में योग में बड़ी शक्ति है, परन्तु उसके जाननेवाले नहीं हैं, इसीलिए लोगों को इधर से अविश्वास हो गया है, अब मुझको भी कुछ बतला दीजिये । बाबा साहब ने कहा कि अभी जो कुछ जप इत्यादि करते हो, सो ही करते रहो। मन की गति को रोकने का - प्रयत्न करो, सत्सङ्ग करते रहो, धीरे-धीरे दूसरा साधन भी बतला - दिया जायेगा। वे बराबर बाबा साहब की सेवा में आते रहे !!!
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