राजद को जंगल राज का पोषक बताकर बिहार की जनता को दिगभ्रमित करके विकास के नाम पर सता में आए भारतीय जनता पार्टी और जदयू के मुखिया क्रमश: पीएम मोदी जी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी, को क्या यह स्पष्टीकरण नहीं देनी चाहिए कि यदि बीस वर्षों में बिहार में सिर्फ और सिर्फ विकास का ही कार्य हुआ है तो बिहार देश के सर्वाधिक पिछड़ा ,गरीबी एवं कुपोषित राज्यों में क्यों शुमार है ?(यह कोई और नहीं भारत सरकार की संस्था नीति आयोग कह रही) यदि आप बिहार के ग्रामीण अंचलों में सबेर के समय में निकल जाए तो गांव के गांव सूनी नजर आएंगी। सिर्फ और सिर्फ वैसी बुजुर्ग से आपकी मुलाकात होगी जो अपनी दिनचर्या खुद करने में सक्षम है। आखिर बीस वर्षों के विकास का यह परिणाम क्यों है कि गांव भूत बंगला सा दिखती है। सारे के सारे लोग मात्र दो वक्त की रोटी के लिए अन्य राज्यों की ओर पलायन कर गए हैं। क्या हाल है सच नहीं है? क्या पीएम मोदी, नीतीश कुमार जी को इसका कारण नहीं बताना चाहिए? एक समय था जब पटना यूनिवर्सिटी को ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहा जाता था । चिकित्सा संस्थान पीएमसीएच और डीएमसीएच की धाक पूरे एशिया में थी। आज क्या हो गया कि लोगों को उचित इलाज के लिए दिल्ली और मुंबई पर निर्भर रहना पड़ रहा है? क्या यह सच नहीं है? साधारण सी स्कूली शिक्षा के लिए लोग अन्य राज्यों की ओर रुख क्यों कर रहे हैं ? क्या इस समस्या का स्पष्टीकरण जनता को नहीं मिलनी चाहिए? एक समय ढेर सारे सरकारी उपक्रम बिहार में चल रहे थे । आज एक एक करके सरकारी उपक्रम खंडहर क्यों बन गया है? क्या यह सच नहीं । आखिर बीस वर्षों के शासनकाल में इनकी दशा क्यों नहीं सुधरी? क्या इसका जवाब राज्य की जनता को नहीं मिलना चाहिए? बिहार की जनता जितनी ही गरीब होती जा रही है यहां के जनप्रतिनिधि विधायक या सांसद या मंत्री उतनी ही अमीर होते जा रहे हैं । आखिर क्यों ? सार्वजनिक चिकित्सा संस्थानों को बर्बाद करके निजी संस्थानों की महल को खड़ा किया गया है । क्या इससे बिहार जैसे गरीब राज्यों के आम लोग निजी सुविधा उपलब्ध करवाने की हैसियत रखते हैं? और यदि नहीं तो सार्वजनिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य शिक्षा संस्थानों को क्यों बर्बाद किया जा रहा है? शिक्षा ,स्वास्थ्य, रोजगार के लिए पलायन क्या बिहार का सच नहीं ? क्या यह सच नहीं है कि बिहार के लोगों की औसत आमदनी ₹3650 मात्र है? क्या यह सच नहीं है एपीएमसी मंडी को खत्म करके भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के किसानों को दरिद्र बना दिया। 10 से ₹12 धान, ₹8_10 मक्का , 12 से ₹14 गेहूं बेचने को किसान अभिशप्त है। सीमांत किसान की तो बात छोड़ दीजिए बड़े किसान के बेटा भी छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए पलायन कर गए हैं। यदि उपरोक्त बातें सच है तो फिर बिहार के विकास का डंका किस आधार पर पीटी जा रही है? जो कुछ भी हो बिहार की इस बदहाली का जवाब इन दोनों पार्टी के मुखिया को आज ना कल देना ही पड़ेगा। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। सुशील सम्राट । पालीगंज विधानसभा ।
राजद को जंगल राज का पोषक बताकर बिहार की जनता को दिगभ्रमित करके विकास के नाम पर सता में आए भारतीय जनता पार्टी और जदयू के मुखिया क्रमश: पीएम मोदी जी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी, को क्या यह स्पष्टीकरण नहीं देनी चाहिए कि यदि बीस वर्षों में बिहार में सिर्फ और सिर्फ विकास का ही कार्य हुआ है तो बिहार देश के सर्वाधिक पिछड़ा ,गरीबी एवं कुपोषित राज्यों में क्यों शुमार है ?(यह कोई और नहीं भारत सरकार की संस्था नीति आयोग कह रही) यदि आप बिहार के ग्रामीण अंचलों में सबेर के समय में निकल जाए तो गांव के गांव सूनी नजर आएंगी। सिर्फ और सिर्फ वैसी बुजुर्ग से आपकी मुलाकात होगी जो अपनी दिनचर्या खुद करने में सक्षम है। आखिर बीस वर्षों के विकास का यह परिणाम क्यों है कि गांव भूत बंगला सा दिखती है। सारे के सारे लोग मात्र दो वक्त की रोटी के लिए अन्य राज्यों की ओर पलायन कर गए हैं। क्या हाल है सच नहीं है? क्या पीएम मोदी, नीतीश कुमार जी को इसका कारण नहीं बताना चाहिए? एक समय था जब पटना यूनिवर्सिटी को ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहा जाता था । चिकित्सा संस्थान पीएमसीएच और डीएमसीएच की धाक पूरे एशिया में थी। आज क्या हो गया कि लोगों को उचित इलाज के लिए दिल्ली और मुंबई पर निर्भर रहना पड़ रहा है? क्या यह सच नहीं है? साधारण सी स्कूली शिक्षा के लिए लोग अन्य राज्यों की ओर रुख क्यों कर रहे हैं ? क्या इस समस्या का स्पष्टीकरण जनता को नहीं मिलनी चाहिए? एक समय ढेर सारे सरकारी उपक्रम बिहार में चल रहे थे । आज एक एक करके सरकारी उपक्रम खंडहर क्यों बन गया है? क्या यह सच नहीं । आखिर बीस वर्षों के शासनकाल में इनकी दशा क्यों नहीं सुधरी? क्या इसका जवाब राज्य की जनता को नहीं मिलना चाहिए? बिहार की जनता जितनी ही गरीब होती जा रही है यहां के जनप्रतिनिधि विधायक या सांसद या मंत्री उतनी ही अमीर होते जा रहे हैं । आखिर क्यों ? सार्वजनिक चिकित्सा संस्थानों को बर्बाद करके निजी संस्थानों की महल को खड़ा किया गया है । क्या इससे बिहार जैसे गरीब राज्यों के आम लोग निजी सुविधा उपलब्ध करवाने की हैसियत रखते हैं? और यदि नहीं तो सार्वजनिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य शिक्षा संस्थानों को क्यों बर्बाद किया जा रहा है? शिक्षा ,स्वास्थ्य, रोजगार के लिए पलायन क्या बिहार का सच नहीं ? क्या यह सच नहीं है कि बिहार के लोगों की औसत आमदनी ₹3650 मात्र है? क्या यह सच नहीं है एपीएमसी मंडी को खत्म करके भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के किसानों को दरिद्र बना दिया। 10 से ₹12 धान, ₹8_10 मक्का , 12 से ₹14 गेहूं बेचने को किसान अभिशप्त है। सीमांत किसान की तो बात छोड़ दीजिए बड़े किसान के बेटा भी छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए पलायन कर गए हैं। यदि उपरोक्त बातें सच है तो फिर बिहार के विकास का डंका किस आधार पर पीटी जा रही है? जो कुछ भी हो बिहार की इस बदहाली का जवाब इन दोनों पार्टी के मुखिया को आज ना कल देना ही पड़ेगा। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। सुशील सम्राट । पालीगंज विधानसभा ।
- #arwal बहुत कुछ देख लिया बहुत कुछ सहे लिया "ए खुदा अब तो नया साल अब तो कोई बात नहीं है भाई1
- ❤️आपका स्वागत है 🫴 अरवल के पावन धरती पर ❤️ जय हो अमित भईया❤️1
- अरवल को अगर चाहिए विकास, तो अमित राय दीजिए साथ।।1
- Post by Sunil Kumar1
- आज एक और लव मैरेज शादी सम्पन्न हुआ 🙏#मधुश्रवा मंदिर अरवल बिहार1
- #disneyland डिजनी लैण्ड , अरवल1