लक्ष्मणगढ़ के इमली वाले हनुमान मंदिर पर मनाया पौष बड़ा महोत्सव।बावड़ी मोहल्ला स्थित इमली वाले हनुमान मंदिर में पौष बड़ा महोत्सव शनिवार को इमली वाले हनुमानजी महाराज ओर बावड़ी वाले हनुमान जी महाराज के साथ शिव परिवार के हलुआ और पकौड़े का भोग लगा कर प्रारम्भ हुआ। पोष बड़ा कार्यक्रम का आयोजन सुबह 9 बजे से 1 बजे तक चला। इमली वाले हनुमान मन्दिर सेवा समिति मुकेश सैनी बताया कि पौष बड़ा कार्यक्रम में राजेंद्र शर्मा (मास्टर जी),पप्पू वैध,संदीप जैन,अजय सतोष खंडेलवाल खंडेलवाल,भगवान सैनी सुरेश लखेरा, गिर्राज मीणा, रघुनंदन इंदौरिया,परमा अरोड़ा, सुभाष चौधरी,लालाराम टाँक,हेमंत तिवारी,मिश्री चौधरी आदि लोगों के सहयोग से पोष-बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ। धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष मास दान करने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. आचार्य रेवती शर्मा(भोलू शर्मा) ने बताया कि पौषबड़ा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का ग्रहों से संबंध माना जाता है जैसे तेल का शनि ग्रह, मिर्च का मंगल ग्रह, जीरा और धनिया का बुध ग्रह, गेहूँ का चंद्रमा और पृथ्वी तथा शुक्र ग्रह का शक्कर से संबंध है.इसलिए लोग दान पुण्य करने के लिए और ग्रह दोष को दूर करने के लिए अपने आराध्य देव को पौषबड़ा का भोग लगाया जाता है. इसी पौषबड़ा को लोगों को वितरण भी किया जाता है. यही कारण कि लोग अपने ग्रहों की स्थिति ठीक करने व दान पुण्य करने के लिए पौषबड़ा महोत्सव का आयोजन करते हैं. पंडित अंशुल अवस्थी ने बताया कि पौष बड़ा भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर में हिंदू पंचांग महिना पौष के दौरान मनाया जाने वाला त्यौहार है। पौष बड़ा नाम का मतलब है! पौष हिंदू पंचांग माह और बड़ा अर्थात दाल की नमकीन पकोड़ी। राजस्थान में सबसे पहले जयपुर में पौष बड़ा सबसे पहले घाट के बालाजी में श्री बद्रिकाश्रम के महंत श्री बद्री दास जी के सानिध्य में लखी पौषबड़ा महोत्सव सन् 1960 से मनाया गया था। जिसमे बड़ी संख्या में आम आदमी पंगत प्रसादी पाते थे। आज लोग इस त्यौहार को मानने के लिए दिन का चुनाव अपनी आसानी के अनुसार करते हैं। आज राजस्थान में पौष माह के अंतर्गत कोई भी ऐसा दिन नहीं होता, कि राज्य के किसी कोने में ये पौष बड़ा त्यौहार नहीं मनाया जा रहा हो। इस उत्सव को शीतकालीन मौसम के भव्य तरीके से स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। मान्यतानुसार, सर्दी के मौसम में चोला की दाल व गेहू के दलिये का हलवा खाने से शरीर को ताकत मिलती है। अतः इस त्यौहार में सर्दी को ध्यान में रखते हुए पकोडे, दाल-बाटी-चूरमा, मल्टीग्रेन खिचड़ी आदि का भोग प्रसाद बनाकर बाँटा जाता है। इस उत्सव को शीतकालीन मौसम के भव्य तरीके से स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। मान्यतानुसार, सर्दी के मौसम में चोला की दाल व गेहू के दलिये का हलवा खाने से शरीर को ताकत मिलती है। अतः इस त्यौहार में सर्दी को ध्यान में रखते हुए पकोडे, दाल-बाटी-चूरमा, मल्टीग्रेन खिचड़ी आदि का भोग प्रसाद बनाकर बाँटा जाता है।
लक्ष्मणगढ़ के इमली वाले हनुमान मंदिर पर मनाया पौष बड़ा महोत्सव।बावड़ी मोहल्ला स्थित इमली वाले हनुमान मंदिर में पौष बड़ा महोत्सव शनिवार को इमली वाले हनुमानजी महाराज ओर बावड़ी वाले हनुमान जी महाराज के साथ शिव परिवार के हलुआ और पकौड़े का भोग लगा कर प्रारम्भ हुआ। पोष बड़ा कार्यक्रम का आयोजन सुबह 9 बजे से 1 बजे तक चला। इमली वाले हनुमान मन्दिर सेवा समिति मुकेश सैनी बताया कि पौष बड़ा कार्यक्रम में राजेंद्र शर्मा (मास्टर जी),पप्पू वैध,संदीप जैन,अजय सतोष खंडेलवाल खंडेलवाल,भगवान सैनी सुरेश लखेरा, गिर्राज मीणा, रघुनंदन इंदौरिया,परमा अरोड़ा, सुभाष चौधरी,लालाराम टाँक,हेमंत तिवारी,मिश्री चौधरी आदि लोगों के सहयोग से पोष-बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ। धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष मास दान करने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. आचार्य रेवती शर्मा(भोलू शर्मा) ने बताया कि पौषबड़ा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का ग्रहों से संबंध माना जाता है जैसे तेल का शनि ग्रह, मिर्च का मंगल ग्रह, जीरा और धनिया का बुध ग्रह, गेहूँ का चंद्रमा और पृथ्वी तथा शुक्र ग्रह का शक्कर से संबंध है.इसलिए लोग दान पुण्य करने के लिए और ग्रह दोष को दूर करने के लिए अपने आराध्य देव को पौषबड़ा का भोग लगाया जाता है. इसी पौषबड़ा को लोगों को वितरण भी किया जाता है. यही कारण कि लोग अपने ग्रहों की स्थिति ठीक करने व दान पुण्य करने के लिए पौषबड़ा महोत्सव का आयोजन करते हैं. पंडित अंशुल अवस्थी ने बताया कि पौष बड़ा भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर
शहर में हिंदू पंचांग महिना पौष के दौरान मनाया जाने वाला त्यौहार है। पौष बड़ा नाम का मतलब है! पौष हिंदू पंचांग माह और बड़ा अर्थात दाल की नमकीन पकोड़ी। राजस्थान में सबसे पहले जयपुर में पौष बड़ा सबसे पहले घाट के बालाजी में श्री बद्रिकाश्रम के महंत श्री बद्री दास जी के सानिध्य में लखी पौषबड़ा महोत्सव सन् 1960 से मनाया गया था। जिसमे बड़ी संख्या में आम आदमी पंगत प्रसादी पाते थे। आज लोग इस त्यौहार को मानने के लिए दिन का चुनाव अपनी आसानी के अनुसार करते हैं। आज राजस्थान में पौष माह के अंतर्गत कोई भी ऐसा दिन नहीं होता, कि राज्य के किसी कोने में ये पौष बड़ा त्यौहार नहीं मनाया जा रहा हो। इस उत्सव को शीतकालीन मौसम के भव्य तरीके से स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। मान्यतानुसार, सर्दी के मौसम में चोला की दाल व गेहू के दलिये का हलवा खाने से शरीर को ताकत मिलती है। अतः इस त्यौहार में सर्दी को ध्यान में रखते हुए पकोडे, दाल-बाटी-चूरमा, मल्टीग्रेन खिचड़ी आदि का भोग प्रसाद बनाकर बाँटा जाता है। इस उत्सव को शीतकालीन मौसम के भव्य तरीके से स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। मान्यतानुसार, सर्दी के मौसम में चोला की दाल व गेहू के दलिये का हलवा खाने से शरीर को ताकत मिलती है। अतः इस त्यौहार में सर्दी को ध्यान में रखते हुए पकोडे, दाल-बाटी-चूरमा, मल्टीग्रेन खिचड़ी आदि का भोग प्रसाद बनाकर बाँटा जाता है।