समस्त जनपद वासियों को #मऊ_जिला_स्थापना_दिवस की हार्दिक बधाई। आज़मगढ़ जिले का एक कस्बा मऊनाथ भंजन जो कभी मुहम्मदाबाद तहसील का हिस्सा था कल्पनाथ राय के प्रयासों से मऊ पहले आज़मगढ़ जिले की एक तहसील बना फिर #19_नवंबर_1988 को अलग जिला बना। साड़ियों केलिये प्रसिद्ध पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिला मऊ की सभ्यता काफी पुरानी है। मऊ का पुरातत्व इतिहास लगभग 1500 साल पुराना है। जिला मुख्यालय मऊनाथ भंजन में टौंस नदी के किनारे #नट आबाद थे जो इतिहास के अनुसार यहां के प्राचीनतम निवासी थे। 1028 ई में सैयद सालार मसूद गाज़ी अपनी सेना के साथ मऊ आये थे वह तो वापस अफगानिस्तान चले गये लेकिन उनके कुछ साथी यही बस गये जिनमें दो सूफी बुज़ुर्ग मलिक ताहिर व उनके भाई मीर कासिम मुख्य हैं। मऊ के इतिहास में मलिक ताहिर व मीर कासिम की मुख्य भूमिका रही। उन्ही के नाम पर मलिक ताहिर पूरा व कासिम पूरा दो मुहल्ले हैं जो नगर की रीढ़ हैं। जिले व आसपास के साड़ी उद्योग का केंद्र यही दो मुहल्ले हैं। 1540 - 1545 के बीच शेर शाह सूरी भी मऊ के मधुबन (तात्कालिक कोल्हुवावन) सूफी सैयद अहमद वादवा से मिलने आया था। इतिहासकार जयउद्दीन बर्नी के अनुसार मुगल सम्राट अकबर इलाहाबाद जाते हुये मऊ होकर गुज़रा था। मान्यताओं के अनुसार सम्राट अकबर की पुत्री जहां आरा बेगम भी यहां रही है उसने यहां अपनी सेना केलिये बैरेक व एक मस्जिद का निर्माण कराया बैरक के अवशेष आज भी हैं, जहां आरा द्वारा निर्मित मस्जिद तो अब नहीं है परंतु उसके स्थान पर एक शानदार और शहर की सबसे बड़ी मस्जिद है जो शाही कटरा के नाम से प्रसिद्ध है। मऊ का लम्बा इतिहास है जिसकी एक झलक मात्र ही प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
समस्त जनपद वासियों को #मऊ_जिला_स्थापना_दिवस की हार्दिक बधाई। आज़मगढ़ जिले का एक कस्बा मऊनाथ भंजन जो कभी मुहम्मदाबाद तहसील का हिस्सा था कल्पनाथ राय के प्रयासों से मऊ पहले आज़मगढ़ जिले की एक तहसील बना फिर #19_नवंबर_1988 को अलग जिला बना। साड़ियों केलिये प्रसिद्ध पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिला मऊ की सभ्यता काफी पुरानी है। मऊ का पुरातत्व इतिहास लगभग 1500 साल पुराना है। जिला मुख्यालय मऊनाथ भंजन में टौंस नदी के किनारे #नट आबाद थे जो इतिहास के अनुसार यहां के प्राचीनतम निवासी थे। 1028 ई में सैयद सालार मसूद गाज़ी अपनी सेना के साथ मऊ आये थे वह तो वापस अफगानिस्तान चले गये लेकिन उनके कुछ साथी यही बस गये जिनमें दो सूफी बुज़ुर्ग मलिक ताहिर व उनके भाई मीर कासिम मुख्य हैं। मऊ के इतिहास में मलिक ताहिर व मीर कासिम की मुख्य भूमिका रही। उन्ही के नाम पर मलिक ताहिर पूरा व कासिम पूरा दो मुहल्ले हैं जो नगर की रीढ़ हैं। जिले व आसपास के साड़ी उद्योग का केंद्र यही दो मुहल्ले हैं। 1540 - 1545 के बीच शेर शाह सूरी भी मऊ के मधुबन (तात्कालिक कोल्हुवावन) सूफी सैयद अहमद वादवा से मिलने आया था। इतिहासकार जयउद्दीन बर्नी के अनुसार मुगल सम्राट अकबर इलाहाबाद जाते हुये मऊ होकर गुज़रा था। मान्यताओं के अनुसार सम्राट अकबर की पुत्री जहां आरा बेगम भी यहां रही है उसने यहां अपनी सेना केलिये बैरेक व एक मस्जिद का निर्माण कराया बैरक के अवशेष आज भी हैं, जहां आरा द्वारा निर्मित मस्जिद तो अब नहीं है परंतु उसके स्थान पर एक शानदार और शहर की सबसे बड़ी मस्जिद है जो शाही कटरा के नाम से प्रसिद्ध है। मऊ का लम्बा इतिहास है जिसकी एक झलक मात्र ही प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
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