बैजनाथ धाम देवघर के बारे में ये बातें जानकर रह जाएंगे हैरान झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में स् थापित श िवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है। यह देश का पहला ऐसा स् थान है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है। लेक िन शिवपुराण में इसकी विस् तारपूर्वक जानकारी म िलती है। इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक् तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स् थापित श िवलिंग कोकामना लिंग भी कहते हैं। इसके अलावा इस धाम को अन् य कई नामों से भी जानते हैं। आइए जानते हैं क ि इन नामों का कैसा है नाता?बैजनाथ धाम देवघर को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया। यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही। श िवजी ने कहा क ि ब िना न िमंत्रण कहीं भी जाना उच ित नहीं। लेक िन सतीजी ने कहा क ि प िता के घर जाने के लिए किसी भी न िमंत्रण की आवश् यकता नहीं। श िवजी ने उन् हें कई बार समझाया लेक िन वह नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गईं। लेक िन जब वहां उन् होंने अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं। सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत् यंत क्रोध ित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहर ि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स् थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान् यता है इस स् थान पर देवी सती का हृदय गिरा था। यही वजह है क ि इस स् थान को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह यह देश का पहला ऐसा स् थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस वजह से इस स् थान की महिमा और भी बढ़ जाती है।बैजनाथ धाम में स् थापित में श िवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है।यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिवजी रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा? इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच-समझकर वरदान देने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी। भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगाइस बात पर रावण सहमत हो गया। भगवान ने एक शिवलिंग का रूप धारण कर लिया। इसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर जा रहा था। इसी दौरान भगवान शिव ने रावण को लघुशंका की इच्छा जगा दी। काफी समय तक बर्दाश्त करने के बाद रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने लगा। इसी समय भगवान ने अपना वजन बढ़ा दिया और इससे चरवाहे ने रावण को आवाज लगाकर कहा कि वह अब इस शिवलिंग को उठाए नहीं रह सकता है। रावण लघुशंका करने में व्यस्त होने के कारण सुन नहीं पाया। इधर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब रावण को भगवान की लीला समझ में आई वह अत् यंत क्रोधित हुआ। कथा के अनुसार उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और अन् य देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की और शिवजी के दर्शन होते ही शिवलिंग को उसी जगह पर स्थापित कर दिया। तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।भोले सबकी सारी ही मुरादें पूरी करतें हैं बस जातक श्रद्धा से उनका स् मरण कर ले। कामना लिंग की भी ऐसी ही मान् यता है। कहते हैं ज िनके व िवाह में कोई द िक् कत हो वह अगर यहां आकर दर्शन करके श िवजी का जलाभ िषेक कर दे तो भोले की कृपा से एक वर्ष के अंदर ही उनका व िवाह संपन् न हो जाता है। वहीं संतान प्राप्ति के लिए भी श्रद्धालु कामना लिंग के दर्शनों के लिए आते हैं। बता दें क ि संतान प्राप्ति के लिए भक् तजन अपने स् थान से दंडवत प्रणाम करते हुए कामना लिंग तक पहुंचते हैं। इसके बाद श िवजी का जलाभिषेक करते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। कहते हैं भोलेनाथ की कृपा से उनकी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। कहानी पसंद आया है तो लाइक और सब्सक्राइब जरूर करें। और कमेंट में हर हर महादेव लिखें
बैजनाथ धाम देवघर के बारे में ये बातें जानकर रह जाएंगे हैरान झारखंड के देवघर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में स् थापित श िवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है। यह देश का पहला ऐसा स् थान है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है। लेक िन शिवपुराण में इसकी विस् तारपूर्वक जानकारी म िलती है। इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक् तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स् थापित श िवलिंग कोकामना लिंग भी कहते हैं। इसके अलावा इस धाम को अन् य कई नामों से भी जानते हैं। आइए जानते हैं क ि इन नामों का कैसा है नाता?बैजनाथ धाम देवघर को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया। यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही। श िवजी ने कहा क ि ब िना न िमंत्रण कहीं भी जाना उच ित नहीं। लेक िन सतीजी ने कहा क ि प िता के घर जाने के लिए किसी भी न िमंत्रण की आवश् यकता नहीं। श िवजी ने उन् हें कई बार समझाया लेक िन वह नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गईं। लेक िन जब वहां उन् होंने अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं। सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत् यंत क्रोध ित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहर ि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स् थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान् यता है इस स् थान पर देवी सती का हृदय गिरा था। यही वजह है क ि इस स् थान को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह यह देश का पहला ऐसा स् थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस वजह से इस स् थान की महिमा और भी बढ़ जाती है।बैजनाथ धाम में स् थापित में श िवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है।यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिवजी रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा? इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच-समझकर वरदान देने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी। भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगाइस बात पर रावण सहमत हो गया। भगवान ने एक शिवलिंग का रूप धारण कर लिया। इसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर जा रहा था। इसी दौरान भगवान शिव ने रावण को लघुशंका की इच्छा जगा दी। काफी समय तक बर्दाश्त करने के बाद रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका करने लगा। इसी समय भगवान ने अपना वजन बढ़ा दिया और इससे चरवाहे ने रावण को आवाज लगाकर कहा कि वह अब इस शिवलिंग को उठाए नहीं रह सकता है। रावण लघुशंका करने में व्यस्त होने के कारण सुन नहीं पाया। इधर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब रावण को भगवान की लीला समझ में आई वह अत् यंत क्रोधित हुआ। कथा के अनुसार उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और अन् य देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की और शिवजी के दर्शन होते ही शिवलिंग को उसी जगह पर स्थापित कर दिया। तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।भोले सबकी सारी ही मुरादें पूरी करतें हैं बस जातक श्रद्धा से उनका स् मरण कर ले। कामना लिंग की भी ऐसी ही मान् यता है। कहते हैं ज िनके व िवाह में कोई द िक् कत हो वह अगर यहां आकर दर्शन करके श िवजी का जलाभ िषेक कर दे तो भोले की कृपा से एक वर्ष के अंदर ही उनका व िवाह संपन् न हो जाता है। वहीं संतान प्राप्ति के लिए भी श्रद्धालु कामना लिंग के दर्शनों के लिए आते हैं। बता दें क ि संतान प्राप्ति के लिए भक् तजन अपने स् थान से दंडवत प्रणाम करते हुए कामना लिंग तक पहुंचते हैं। इसके बाद श िवजी का जलाभिषेक करते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। कहते हैं भोलेनाथ की कृपा से उनकी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। कहानी पसंद आया है तो लाइक और सब्सक्राइब जरूर करें। और कमेंट में हर हर महादेव लिखें
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