भाईचारा, समरसता तथा सौहार्द शांति का रास्ता है, हिंसा कोई मार्ग नहीं : ठाकुर संजीव कुमार सिंह "अगर बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर सकता तो, उनके लिए एक नया स्वतंत्र देश बनाकर दे देना चाहिए" नई दिल्ली,संजय साग़र सिंह। विशेष रूप से वहां के अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ते असुरक्षा और धार्मिक कट्टरपंथ के असर पर एवं बांग्लादेश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए ठाकुर संजीव कुमार सिंह (राष्ट्रीय नेता कांग्रेस एआइसीसी एवं एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया) ने कहा,"बांग्लादेश, जो रबींद्रनाथ टैगोर और काजी नजरुल इस्लाम जैसे कवियों की धरती है। भाईचारा, सामाजिक सौहार्द और समरसता का चेहरा, जो स्वतंत्रता से लेकर अब तक बांग्लादेश ने बनाये रखा था और एक लोकतांत्रिक और समावेशी समाज बनाने का सपना था। उनका उद्देश्य एक समान और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था, लेकिन हालिया घटनाओं ने इस सपने को धुंधला कर दिया है। पूरा विश्व आज देख रहा हैं कि वह संविधानिक विरासत इस समय पूरी तरह बिखर गयी है। आज वहां अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से बांग्लादेश में कभी भी ऐसा माहौल नहीं रहा जहां अल्पसंख्यक अपने आपको इतना असुरक्षित महसूस करते हों। इसलिए अगर बांग्लादेश देश की सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो, उनके लिए एक नया स्वतंत्र देश बनाकर दे देना चाहिए। एक नया स्वतंत्र देश देना एक बहुत बड़ा और अल्पसंख्यकों के हित में सराहनीय कदम होगा, जो न केवल बांग्लादेश बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी सराहनीय मुद्दा बनेगा। बांग्लादेश की सरकार को जल्द से जल्द इस समस्या को हल करना ही वहां के हिन्दू बौद्ध ईसाई अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर होगा, अन्यथा बहुत देर हो जायेगी। उन्होंने कहा, "समरसता तथा सौहार्द जिंदगी का रास्ता है, हिंसा कोई मार्ग नहीं है। बांग्लादेश में शांति, समरसता और भाईचारे को बढ़ावा देने की आवश्यकता हैं। यदि बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यको की संविधानिक और सामाजिक मूल्यों की रक्षा नहीं कर सकता, तो यह न केवल उनके व्यापार, तरक्की, आंतरिक विकास को प्रभावित करेगा, बल्कि उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि और सुरक्षा को भी खतरे में डाल देगा। इसलिए यह जरूरी है कि बांग्लादेश सरकार जल्द ही इस स्थिति को संभाले और सभी नागरिकों, विशेषकर हिन्दू बौद्ध ईसाई अल्पसंख्यकों, की सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी दे। अंत में, श्री सिंह ने कहा, आज बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर सवाल उठाना और इसे वहां की सरकार की जिम्मेदारी मानना उचित है, क्योंकि यदि बांग्लादेश अपनी नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों, की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो बांग्लादेश के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों के सिद्धांतों पर सवाल खड़ा होगा। मंदिरों पर हमले, हिंदू व्यापारियों और उनके प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना, मासूम बच्चों और महिलाओं को मरना, यह सब बांग्लादेश की सामूहिक और सांस्कृतिक धरोहर को ध्वस्त करने की दिशा में बढ़ते कदम हैं। जहां एक समय इस देश की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता एकता की प्रतीक थी, वहीं आज की खतरनाक स्थिति बांग्लादेश के लिए न केवल एक आंतरिक संकट है, बल्कि व्यापार, उसकी विदेश नीति और वैश्विक छवि पर भी बहुत असर डाल रही है, खासकर यह कट्टरपंथी रुझान और मानवाधिकारों का उल्लंघन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के खुलकर सामने आ गया हैं, और वो इसका विरोध भी कर रहे हैं, इससे कारण बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ संबंध इस समय बहुत खराब हो रहे हैं, जिसका असर आने वाले समय में बांग्लादेश के विकास और व्यापार पर पड़ेगा। अगर जल्द ही बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो यह बांग्लादेश के आर्थिक विकास एवं व्यापार के लिए खतरे की घंटी है।
भाईचारा, समरसता तथा सौहार्द शांति का रास्ता है, हिंसा कोई मार्ग नहीं : ठाकुर संजीव कुमार सिंह "अगर बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर सकता तो, उनके लिए एक नया स्वतंत्र देश बनाकर दे देना चाहिए" नई दिल्ली,संजय साग़र सिंह। विशेष रूप से वहां के अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ते असुरक्षा और धार्मिक कट्टरपंथ के असर पर एवं बांग्लादेश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए ठाकुर संजीव कुमार सिंह (राष्ट्रीय नेता कांग्रेस एआइसीसी एवं एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया) ने कहा,"बांग्लादेश, जो रबींद्रनाथ टैगोर और काजी नजरुल इस्लाम जैसे कवियों की धरती है। भाईचारा, सामाजिक सौहार्द और समरसता का चेहरा, जो स्वतंत्रता से लेकर अब तक बांग्लादेश ने बनाये रखा था और एक लोकतांत्रिक और समावेशी समाज बनाने का सपना था। उनका उद्देश्य एक समान और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था, लेकिन हालिया घटनाओं ने इस सपने को धुंधला कर दिया है। पूरा विश्व आज देख रहा हैं कि वह संविधानिक विरासत इस समय पूरी तरह बिखर गयी है। आज वहां अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से बांग्लादेश में कभी भी ऐसा माहौल नहीं रहा जहां अल्पसंख्यक अपने आपको इतना असुरक्षित महसूस करते हों। इसलिए अगर बांग्लादेश देश की सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो, उनके लिए एक नया स्वतंत्र देश बनाकर दे देना चाहिए। एक नया स्वतंत्र देश देना एक बहुत बड़ा और अल्पसंख्यकों के हित में सराहनीय कदम होगा, जो न केवल बांग्लादेश बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी सराहनीय मुद्दा बनेगा। बांग्लादेश की सरकार को जल्द से जल्द इस समस्या को हल करना ही वहां के हिन्दू बौद्ध ईसाई अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर होगा, अन्यथा बहुत देर हो जायेगी। उन्होंने कहा, "समरसता तथा सौहार्द जिंदगी का रास्ता है, हिंसा कोई मार्ग नहीं है। बांग्लादेश में शांति, समरसता और भाईचारे को बढ़ावा देने की आवश्यकता हैं। यदि बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यको की संविधानिक और सामाजिक मूल्यों की रक्षा नहीं कर सकता, तो यह न केवल उनके व्यापार, तरक्की, आंतरिक विकास को प्रभावित करेगा, बल्कि उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि और सुरक्षा को भी खतरे में डाल देगा। इसलिए यह जरूरी है कि बांग्लादेश सरकार जल्द ही इस स्थिति को संभाले और सभी नागरिकों, विशेषकर हिन्दू बौद्ध ईसाई अल्पसंख्यकों, की सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी दे। अंत में, श्री सिंह ने कहा, आज बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर सवाल उठाना और इसे वहां की सरकार की जिम्मेदारी मानना उचित है, क्योंकि यदि बांग्लादेश अपनी नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों, की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो बांग्लादेश के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों के सिद्धांतों पर सवाल खड़ा होगा। मंदिरों पर हमले, हिंदू व्यापारियों और उनके प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना, मासूम बच्चों और महिलाओं को मरना, यह सब बांग्लादेश की सामूहिक और सांस्कृतिक धरोहर को ध्वस्त करने की दिशा में बढ़ते कदम हैं। जहां एक समय इस देश की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता एकता की प्रतीक थी, वहीं आज की खतरनाक स्थिति बांग्लादेश के लिए न केवल एक आंतरिक संकट है, बल्कि व्यापार, उसकी विदेश नीति और वैश्विक छवि पर भी बहुत असर डाल रही है, खासकर यह कट्टरपंथी रुझान और मानवाधिकारों का उल्लंघन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के खुलकर सामने आ गया हैं, और वो इसका विरोध भी कर रहे हैं, इससे कारण बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ संबंध इस समय बहुत खराब हो रहे हैं, जिसका असर आने वाले समय में बांग्लादेश के विकास और व्यापार पर पड़ेगा। अगर जल्द ही बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो यह बांग्लादेश के आर्थिक विकास एवं व्यापार के लिए खतरे की घंटी है।
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