logo
Shuru
Apke Nagar Ki App…
  • Latest News
  • News
  • Politics
  • Elections
  • Viral
  • Astrology
  • Horoscope in Hindi
  • Horoscope in English
  • Latest Political News
logo
Shuru
Apke Nagar Ki App…

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल जय श्री राम। वर्तमान में संघ रूपी वट वृक्ष आज हम जो देख रहे है यह अचानक एक दिन में नहीं बन गया है। इसे यहाँ तक पहुंचने में 100 वर्ष लगे हैं। लगभग 5 पीढ़ी के कार्यकर्ताओं ने इसे अपने खून-पसीने से सींचा है। ऐसे ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं का एक बार पुनः स्मरण करने के लिये आज से हम एक श्रृंखला शुरू कर रहे हैं। इसे अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाकर राष्ट्र कार्य में सहभागी बने ऐसी अपेक्षा है। श्रृंखला बनाते समय सामान्यतः कार्यकर्ताओं के जन्म माह एवं जन्म दिनांक के हिसाब से क्रमबद्ध किया गया है, जिन कार्यकताओं का जन्म माह एवं दिनांक नहीं मिल पाई है उनकी पुण्यतिथि को आधार बनाया गया है। श्रृंखला का एक उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को ऐसे समर्पित कार्यकताओं से परिचय करवाना है जिनकी नींव पर यह भव्य भवन खड़ा है।।।भारत माता की जय।। [8/2, 21:42] अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र: ज्ञात -अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 3 = श्री चेतराम जी पंजाब में जन्म लेकर हिमाचल प्रदेश को कर्मभूमि बनाने वाले चेतराम जी प्रचारक जीवन में और उसके बाद भी प्रचारक की ही तरह सक्रिय रहे। उनका जन्म 3 अगस्त, 1948 को गांव झंडवाला हनुमंता (जिला अबोहर) के एक किसान श्री रामप्रताप एवं श्रीमती दाखा देवी के घर में हुआ था। लगभग 250 साल पहले उनके पूर्वज हनुमंत जी राजस्थान के उदयपुर से यहां आये थे। उनके सत्कार्यों से वह गांव ही झंडवाला हनुमंता कहलाने लगा। चेतराम जी की शिक्षा गांव मोजगढ़ और फिर अबोहर में हुई। अबोहर में ही वे स्वयंसेवक बने। शिक्षा पूरी होने पर उनकी सरकारी नौकरी लग गयी; पर संघ की लगन होने के कारण 1971 में नौकरी छोड़कर वे प्रचारक बन गये। मुक्तसर नगर और फाजिल्का तहसील के बाद 1973 से 82 तक वे रोपड़ जिला प्रचारक रहे। इस बीच आपातकाल भी लगा; पर पुलिस उन्हें पकड़ नहीं सकी। प्रायः वे रेंजर की वरदी पहन कर वन और पहाड़ों में होते हुए इधर से उधर निकल जाते थे। वे तैरने में भी बहुत कुशल थे। 1982 में उन्हें हिमाचल में बिलासपुर जिले का काम मिला। इसके बाद अंत तक बिलासपुर ही उनका केन्द्र रहा। इस दौरान उन्होंने बिलासपुर के काम को बहुत मजबूत बनाया। कुछ साल बाद वे मंडी विभाग के प्रचारक बने। वे अध्यापकों से बहुत संपर्क रखते थे। इससे छात्रों से भी संपर्क हो जाता था। फिर इसका लाभ शाखा विस्तार के लिए मिलता था। शाखा तथा कार्यकर्ताओं के नाम उन्हें याद रहते थे। अतः वे डायरी आदि का प्रयोग कम ही करते थे। 1990 में प्रचारक जीवन से वापस आये किन्तु गृहस्थी फिर भी नहीं बसायी। उन्होंने एक गोशाला खोली तथा फिर एक कार्यकर्ता के साथ साझेदारी में ट्रक खरीदा। इससे कुछ आय होने लगी, तो वे प्रांत कार्यवाह के नाते फिर पूरी गति से संघ के काम में लग गये;परन्तु अब प्रवास का व्यय वे अपनी जेब से करते थे। गोशाला का काम उन्होंने अपने भतीजे को सौंप दिया। उन दिनों शिक्षा के क्षेत्र में संघ के कदम बढ़ रहे थे। सबकी निगाह उन पर गयी और उन्हें ‘हिमाचल शिक्षा समिति’ का काम दे दिया गया। चेतराम जी अब विद्यालयों के विस्तार में लग गये। संघ के वरिष्ठ प्रचारक ठाकुर रामसिंहजी को चेतराम जी पर बहुत विश्वास था। जब ठाकुर जी पर ‘इतिहास संकलन समिति’ का काम आया, तो उन्होंने हिमाचल प्रदेश में यह काम भी चेतराम जी को ही सौंप दिया। इसके बाद ‘ठाकुर जगदेव चंद स्मृति शोध संस्थान, नेरी (हमीरपुर)’ की देखभाल भी उनके ही जिम्मे आ गयी। चेतराम जी का अनुभव बहुत व्यापक था। इसके साथ ही वे हर काम के बारे में गहन चिंतन करते थे। कार्यकर्ताओं के स्वभाव और प्रवृत्ति को भी वे खूब पहचानते थे। इस कारण उन्हें सर्वत्र सफलता मिलती थी। हिमाचल में आने वाले सभी प्रांत प्रचारक भी उनके परामर्श से ही काम करते थे। इस भागदौड़ और अस्त-व्यस्तता में वे पार्किन्सन नामक रोग के शिकार हो गये। इससे उन्हें चलने में असुविधा होने लगी। बहुत सी बातें उन्हें अब याद नहीं रहती थीं। दवाओं से कुछ सुधार तो हुआ; पर अब पहले जैसी बात नहीं रही। अतः उनके साथ राकेश नामक एक गृहस्थ कार्यकर्ता को नियुक्त कर दिया गया। राकेश तथा उसकी पत्नी ने चेतराम जी की भरपूर सेवा की। चेतराम जी जहां प्रवास पर जाते थे, तो राकेश भी साथ में जाता था। चार साल ऐसे ही काम चला; पर फिर कष्ट बढ़ने पर प्रवास से विश्राम देकर बिलासपुर में ही उनके रहने की व्यवस्था कर दी गयी। अंतिम समय में कुछ दिन शिमला मैडिकल कॉलिज में भी उनका इलाज चला। वहां पर ही 5 अगस्त, 2017 को उनका स्वर्गवास हुआ। उनके परिजनों की इच्छानुसार उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव झंडवाला हनुमंता में ही किया गया। इस प्रकार एक ओर पुष्प संघ नींव में विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 4 = मधुर वाणी के धनी श्री सुरेन्द्रसिंह चैहान भैयाजी के नाम से प्रसिद्ध श्री सुरेन्द्रसिंह का जन्म 7 अगस्त 1933 को मोहद जिला नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) में हुआ था। 1950 से 54 के मध्य जबलपुर में पढ़ते समय आप संघ के स्वयंसेवक बने। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी में स्वर्णपदक लेकर एम.ए. किया। आपने 8 वर्ष तक डिग्री काॅलेज में अध्यापन का कार्य किया। किन्तु अपने ग्राम के विकास की ललक के कारण नौकरी से त्यागपत्र देकर गांव आकर खेती बाड़ी में लग गये। आपने ग्राम विकास को शाखा का माध्यम बनाया। अंग्रेजी के विद्वान् होने पर भी वे व्यवहार में हिन्दी और संस्कृत का ही प्रयोग करते थे। उनके ग्राम में सब लोग संस्कृत सीख गये थे। उनके लेख मोती जैसे सुन्दर थे। जिला कार्यवाह से लेकर महाकौशल प्रांत के सहकार्यवाह तथा अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख तक की जिम्मेदारी का निर्वहन किया। मधुरवाणी और हंसमुख स्वभाव के धनी सुरेन्द्रसिंह की ग्राम में बहुत विशाल पुश्तैनी खेती थी। उसमें सभी वर्ग के लोग काम करते थे। वे उन्हें परिवार के सदस्य मानकर उनके सुख-दुख में सम्मिलित होते थे। छुआछूत और ऊँच-नीच को दूर करके समरस ग्राम बनाया। वे कई वर्ष तक ग्राम में निर्विरोध एवं निर्विवाद सरपंच रहे। संघ में ग्राम विकास गतिविधि के शुरू होने के बहुत पहले ही सुरेन्द्रसिंहजी स्वयंप्ररेणा से यह कार्य कर रहे थे। उनका मानना था कि केवल सरकारी योजनाओं से ग्राम विकास नहीं हो सकता अपितु ग्राम वासियों की सुप्त शक्ति को जगाकर यह कार्य किया जा सकता है। इस विचार को अपने ग्राम को आदर्श ग्राम बनाकर जमीन पर उतारा। उनके ग्राम में कन्याएं रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बाँधती थी इससे हजारों पेड़ बच गये। फ्लश के शौचालय से खुले में शौच जाना बंद हुआ। पर्यावरण शुद्धि के लिये घर में, सड़क के किनारे तथा ग्राम की अनुपयोगी भूमि पर फलदार वृक्ष लगाये। बच्चे के जन्मदिन पर पेड़ लगाने की परम्परा प्रारम्भ की।हर घर में तुलसी, फुलवाड़ी एवं गाय, बाहरी दिवार पर ऊँ तथा स्वास्तिक के चिन्ह, गोबर गैस के संयंत्र, एवं निर्धूम चूल्हे, हर गली में कूड़ेदान, रासायनिक खाद एवं कीटनाशक रहित जैविक खेती आदि के प्रयोग भी किये। हर इंच भूमि को सिंचित किया। विद्यालय में प्रेरक वाक्य लिखवाये। अध्यापकों के नियमित आने से छात्रों में अनुशासन आया एवं शिक्षा का स्तर सुधरा। घरेलू विवाद ग्राम में निपटाकर विवादमुक्त ग्राम बनाया। 53 प्रकार के ग्राम आधारित लघु उद्योग प्रारम्भ करवाये। ग्राम को धूम्रपान एवं नशामुक्त किया। ग्राम विकास की सरकारी योजना से आर्थिक विकास होता है लेकिन भैयाजी ने नैतिकता, संस्कार तथा ग्राम एक परिवार जैसे विचारों पर कार्य किया। उनके ग्राम को देखने दूर-दूर से लोग आते थे। विख्यात समाजसेवी भारत रत्न नानाजी देशमुख ने ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट में उन्हें उपकुलपति बनाया। भैयाजी ने 4 वर्ष यह जिम्मेदारी निभाई। संकलन टीम के कार्यकर्त्ता को गुरूजी जन्मशताब्दी वर्ष 2006 में सुरेन्द्रसिंह जी चौहान के साथ रहने का सौभाग्य मिला था, तब भैयाजी को बहुत निकट से देखने एवं समझने का अवसर मिला था।आदर्श ग्राम, स्वावलम्बी ग्राम तथा आदर्श हिन्दू परिवार के अनेक नये प्रयोगों के सुत्रधार भैयाजी का एक फरवरी 2013 को मोहद ग्राम में स्वर्गवास हो गया। इस प्रकार संघ को अपने जीवन में जीने वाले एक पुष्प भारत माता के चरणों में समर्पित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ:- 1. पांचजन्य 2. जीवन दीप जले भाग-दो लेखक - विजय कुमार संकलन - स्वयंसेवक : ज्ञात-अज्ञात संघ नीव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 5 = श्री भानुप्रताप शुक्ल:- भानप्रतापजी शुक्ल जी का जन्म 7 अगस्त 1935 के ग्राम राजपुर बैरिहवां जिला बस्ती (उतरप्रदेश) में हुआ था। भानुप्रताप अपने पिता अभयनारायण शुक्ल की एक मात्र संतान थे। जन्म के 12 दिन बाद ही उनकी जन्मदात्री मां का निधन हो गया अतः अपने नाना जगदम्बा प्रसाद तिवारी के घर सुल्तानपुर (उत्तरप्रदेश) में उनका लालन पालन हुआ। भानुप्रतापजी की प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम की पाठशाला में हुई। 1951 में वे संघ के सम्पर्क में आये और 4 वर्ष बाद 1955 में प्रचारक बन गये। भानुप्रतापजी एक मेधावी छात्र थे। बचपन से ही साहित्य में उनकी रुचि थी। इसलिये कहानियाँ, लेख आदि लिखते रहे। धीरे-धीरे वो प्रकाशित भी होने लगे। उन दिनों लखनऊ साहित्य का केन्द्र था। तत्कालिन उत्तर प्रदेश प्रान्त प्रचारक भाऊराव देवरस एवं सहप्रान्त प्रचारक दीनदयाल उपाध्याय ने उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें लखनऊ बुला लिया। अतः उस समय के प्रसिद्ध साहित्यकारों से उनका सम्पर्क हो गया। लखनऊ में भानुप्रतापजी ने पंडित अग्बिका प्रसाद वाजपेयी से पत्रकारिता सीखी। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास बढ़ता गया और वे राष्ट्रधर्म (मासिक) के सम्पादक बनाये गये। उसके बाद तरुण भारत (दैनिक) के सम्पादक बनाये गये। लखनऊ में लम्बे समय तक नगर कार्यवाह के दायित्व पर रहे। छात्रावास की शाखाओं में उनकी बहुत रुचि रहती थी। उनकी बौद्धिक प्रतिभा से प्रभावित होकर कई नये विद्यार्थी संघ से जुड़ गये। 1975 में आपातकाल लगने पर पांचजन्य (साप्ताहिक) को लखनऊ से दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया। इसके साथ भानुप्रतापजी दिल्ली आ गये फिर अन्त तक उनका केन्द्र दिल्ली ही रहा। आपातकाल में भूमिगत रहकर उन्होंने इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष किया। वे पांचजन्य के भी सम्पादक रहे जिसके कारण उनका परिचय देश-विदेश के पत्रकारों से हुआ। उन्होंने भारत से बाहर अनेक देशों की यात्रायें की। 1990 के श्रीराम मंदिर आन्दोलन में पूरी तरह सक्रीय रहे। 31 अक्टूबर एवं 2 नवम्बर 1990 को हुए हत्याकांड के वे प्रत्यक्षदर्शी थे और इसकी जानकारी पांचजन्य के माध्यम से उन्होंने पूरे देश को दी। 1994 के बाद स्वतन्त्र रूप से ‘राष्ट्र चिन्तन’ नामक साप्ताहिक स्तम्भ लिखने लगे। उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन एवं सम्पादन किया। श्री गुरुजी और दत्तोपन्तजी ठेंगडी के प्रति उनके मन में अत्यधिक श्रद्धा थी। कलम के सिपाही भानुप्रतापजी ने अपने शरीर पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। कैंसर से पीड़ित होने पर भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा। देहान्त के तीन दिन पहले भी उनका साप्ताहिक स्तम्भ ‘राष्ट्र चिन्तन’ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। 17 अगस्त 2006 को दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। इस प्रकार भारत माता के चरणों में एक ओर पुष्प विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ - 1. जीवन दीप जले भाग-दो लेखक- विजय कुमार संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 6 = श्री चन्द्रशेखर परमानन्द भिषीकर- बाबुराव नाम से प्रसिद्ध चंद्रशेखर परमानंद भिषीकर का जन्म 9 अगस्त 1914 को हुआ था। वे संघ के प्रारम्भिक स्वयंसेवको में से एक थे। अतः उन्हें डाक्टर हेडगेवारजी, श्री गुरुजी तथा उनके सहयोगियों को बहुत निकट से देखने और उनको समझने का भरपूर अवसर मिला था। संघ की कार्यपद्धति का विकास तथा शाखाओं का नागपुर से महाराष्ट्र और फिसम्पूर्ण भारत में कैसे कब विस्तार हुआ इसके भी वे अधिकृत जानकार थे। छात्र जीवन से ही उनकी रुचि पढ़ने लिखने में थी इसलिये आगे चलकर जब उन्होंने पत्रकारिता और लेखन को अपनी आजीविका बनाया, तो जीवनियों के माध्यम से संघ इतिहास के अनेक पहलू स्वयंसेवकों और संघ के बारे में जानने के इच्छुक शोधार्थियों को उपलब्ध कराये। उन्होंने कई संघ के वरिष्ठ कार्यकताओं के जीवन चरित्र लिखे। एक निष्ठावान स्वयंसेवक होने के साथ ही वे मौलिक चिंतक भी थे। संघ के संस्कार उनके जीवन के हर कदम पर दिखाई देते थे। पुणे के ”तरुण भारत” में संपादक रहते हुए वे अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन के सदस्य बने। सामान्यतः पत्रकारों और सम्पादकों के कार्यक्रमों में खाने और पीने की इच्छा रहती है। आजकल तो इसमें नकद भेंट से लेकर कई अन्य तरह के भ्रष्ट-व्यवहार भी जुड़ गये हैं, परन्तु बाबूराव जी ऐसे कार्यक्रमों में जाने के बाद भी पीने-पिलाने से हमेशा दूर ही रहे। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु जब संघ कार्य प्रारम्भ हुआ तब ऐसा कुछ नहीं था। प्रसिद्धि से दूर रहने की नीति के कारण इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं था, पर क्रमशः लेखन और सम्पादन में रुचि रखने वाले कुछ लोगों ने यह कार्य प्रारम्भ किया। बाबूराव जी ऐसे लोगों की मालिका के सुवर्ण मोती थे। संघ के संस्थापक डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार की पहली जीवनी उन्होंने ही लिखी थी। इसमें उनकी जीवन-यात्रा के साथ ही संघ स्थापना की पृष्ठभूमि तथा उनके सामने हुआ संघ का क्रमिक विकास बहुत सुन्दर ढंग से लिखा गया। लम्बे समय तक इसे ही संघ की एकमात्र अधिकृत पुस्तक मानी जाती थी। आगे चलकर उन्होंने श्री गुरुजी, भैयाजी दाणी, दादाराव परमार्थ, बाबा साहेब आप्टे आदि संघ के पुरोधाओं के जीवन चरित्र लिखे। सक्रिय पत्रकारिता से अवकाश लेने के बाद भी बाबुरावजी ने सक्रिय लेखन से अवकाश नहीं लिया। उनकी जानकारी, अनुभव तथा स्पष्ट विचारों के कारण पत्र-पत्रिकायें उनसे लेख मांगकर प्रकाशित करती रहती थी। वृद्धावस्था संबंधी अनेक कष्टों के बावजूद पुणे में अपने पुत्र के पास रहते हुए उन्होंने अपने मन को हमेशा सकारात्मक रखा। 1935 में धमतरी में विस्तारक गये तथा शाखा प्रारम्भ की। 1938 में संघकार्य विस्तार के लिये कराची भेजा गया। उन्होंने सिंध प्रान्त में संघ कार्य को औपचारिक रूप से प्रारम्भ किया। डाक्टर हेडगेवारजी ने कहा था हमें शहरी क्षेत्रों में 3 प्रतिशत एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रतिशत कार्य खड़ा करना है। इसे पूर्ण करने वाला सिंध पहला प्रांत बना। संघ इतिहास के ऐसे शीर्षस्थ अध्येता का 8 दिसम्बर 2008 को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के हराली कस्बे में स्वर्गवास हुआ। इस प्रकार संघ नींव में एक ओर पुष्प विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ- 1. तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे प्रदर्शनी भाग एक 2. 21 एवं 28 अगस्त 2008 का पांचजन्य संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम

on 7 August
user_Airson Express news
Airson Express news
Lawyer Betul•
on 7 August
9c35d296-42eb-4318-868b-9b2d766e539a

प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल जय श्री राम। वर्तमान में संघ रूपी वट वृक्ष आज हम जो देख रहे है यह अचानक एक दिन में नहीं बन गया है। इसे यहाँ तक पहुंचने में 100 वर्ष लगे हैं। लगभग 5 पीढ़ी के कार्यकर्ताओं ने इसे अपने खून-पसीने से सींचा है। ऐसे ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं का एक बार पुनः स्मरण करने के लिये आज से हम एक श्रृंखला शुरू कर रहे हैं। इसे अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाकर राष्ट्र कार्य में सहभागी बने ऐसी अपेक्षा है। श्रृंखला बनाते समय सामान्यतः कार्यकर्ताओं के जन्म माह एवं जन्म दिनांक के हिसाब से क्रमबद्ध किया गया है, जिन कार्यकताओं का जन्म माह एवं दिनांक नहीं मिल पाई है उनकी पुण्यतिथि को आधार बनाया गया है। श्रृंखला का एक उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को ऐसे समर्पित कार्यकताओं से परिचय करवाना है जिनकी नींव पर यह भव्य भवन खड़ा है।।।भारत माता की जय।। [8/2, 21:42] अशोक जी पोरवाल क्षेत्र स प्र प्र: ज्ञात -अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 3 = श्री चेतराम जी पंजाब में जन्म लेकर हिमाचल प्रदेश को कर्मभूमि बनाने वाले चेतराम जी प्रचारक जीवन में और उसके बाद भी प्रचारक की ही तरह सक्रिय रहे। उनका जन्म 3 अगस्त, 1948 को गांव झंडवाला हनुमंता (जिला अबोहर) के एक किसान श्री रामप्रताप एवं श्रीमती दाखा देवी के घर में हुआ था। लगभग 250 साल पहले उनके पूर्वज हनुमंत जी राजस्थान के उदयपुर से यहां आये थे। उनके सत्कार्यों से वह गांव ही झंडवाला हनुमंता कहलाने लगा। चेतराम जी की शिक्षा गांव मोजगढ़ और फिर अबोहर में हुई। अबोहर में ही वे स्वयंसेवक बने। शिक्षा पूरी होने पर उनकी सरकारी नौकरी लग गयी; पर संघ की लगन होने के कारण 1971 में नौकरी छोड़कर वे प्रचारक बन गये। मुक्तसर नगर और फाजिल्का तहसील के बाद 1973 से 82 तक वे रोपड़ जिला प्रचारक रहे। इस बीच आपातकाल भी लगा; पर पुलिस उन्हें पकड़ नहीं सकी। प्रायः वे रेंजर की वरदी पहन कर वन और पहाड़ों में होते हुए इधर से उधर निकल जाते थे। वे तैरने में भी बहुत कुशल थे। 1982 में उन्हें हिमाचल में बिलासपुर जिले का काम मिला। इसके बाद अंत तक बिलासपुर ही उनका केन्द्र रहा। इस दौरान उन्होंने बिलासपुर के काम को बहुत मजबूत बनाया। कुछ साल बाद वे मंडी विभाग के प्रचारक बने। वे अध्यापकों से बहुत संपर्क रखते थे। इससे छात्रों से भी संपर्क हो जाता था। फिर इसका लाभ शाखा विस्तार के लिए मिलता था। शाखा तथा कार्यकर्ताओं के नाम उन्हें याद रहते थे। अतः वे डायरी आदि का प्रयोग कम ही करते थे। 1990 में प्रचारक जीवन से वापस आये किन्तु गृहस्थी फिर भी नहीं बसायी। उन्होंने एक गोशाला खोली तथा फिर एक कार्यकर्ता के साथ साझेदारी में ट्रक खरीदा। इससे कुछ आय होने लगी, तो वे प्रांत कार्यवाह के नाते फिर पूरी गति से संघ के काम में लग गये;परन्तु अब प्रवास का व्यय वे अपनी जेब से करते थे। गोशाला का काम उन्होंने अपने भतीजे को सौंप दिया। उन दिनों शिक्षा के क्षेत्र में संघ के कदम बढ़ रहे थे। सबकी निगाह उन पर गयी और उन्हें ‘हिमाचल शिक्षा समिति’ का काम दे दिया गया। चेतराम जी अब विद्यालयों के विस्तार में लग गये। संघ के वरिष्ठ प्रचारक ठाकुर रामसिंहजी को चेतराम जी पर बहुत विश्वास था। जब ठाकुर जी पर ‘इतिहास संकलन समिति’ का काम आया, तो उन्होंने हिमाचल प्रदेश में यह काम भी चेतराम जी को ही सौंप दिया। इसके बाद ‘ठाकुर जगदेव चंद स्मृति शोध संस्थान, नेरी (हमीरपुर)’ की देखभाल भी उनके ही जिम्मे आ गयी। चेतराम जी का अनुभव बहुत व्यापक था। इसके साथ ही वे हर काम के बारे में गहन चिंतन करते थे। कार्यकर्ताओं के स्वभाव और प्रवृत्ति को भी वे खूब पहचानते थे। इस कारण उन्हें सर्वत्र सफलता मिलती थी। हिमाचल में आने वाले सभी प्रांत प्रचारक भी उनके परामर्श से ही काम करते थे। इस भागदौड़ और अस्त-व्यस्तता में वे पार्किन्सन नामक रोग के शिकार हो गये। इससे उन्हें चलने में असुविधा होने लगी। बहुत सी बातें उन्हें अब याद नहीं रहती थीं। दवाओं से कुछ सुधार तो हुआ; पर अब पहले जैसी बात नहीं रही। अतः उनके साथ राकेश नामक एक गृहस्थ कार्यकर्ता को नियुक्त कर दिया गया। राकेश तथा उसकी पत्नी ने चेतराम जी की भरपूर सेवा की। चेतराम जी जहां प्रवास पर जाते थे, तो राकेश भी साथ में जाता था। चार साल ऐसे ही काम चला; पर फिर कष्ट बढ़ने पर प्रवास से विश्राम देकर बिलासपुर में ही उनके रहने की व्यवस्था कर दी गयी। अंतिम समय में कुछ दिन शिमला मैडिकल कॉलिज में भी उनका इलाज चला। वहां पर ही 5 अगस्त, 2017 को उनका स्वर्गवास हुआ। उनके परिजनों की इच्छानुसार उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव झंडवाला हनुमंता में ही किया

96750a8c-b0b3-4eb9-8a6d-c105fb0a7ce8

गया। इस प्रकार एक ओर पुष्प संघ नींव में विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 4 = मधुर वाणी के धनी श्री सुरेन्द्रसिंह चैहान भैयाजी के नाम से प्रसिद्ध श्री सुरेन्द्रसिंह का जन्म 7 अगस्त 1933 को मोहद जिला नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) में हुआ था। 1950 से 54 के मध्य जबलपुर में पढ़ते समय आप संघ के स्वयंसेवक बने। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी में स्वर्णपदक लेकर एम.ए. किया। आपने 8 वर्ष तक डिग्री काॅलेज में अध्यापन का कार्य किया। किन्तु अपने ग्राम के विकास की ललक के कारण नौकरी से त्यागपत्र देकर गांव आकर खेती बाड़ी में लग गये। आपने ग्राम विकास को शाखा का माध्यम बनाया। अंग्रेजी के विद्वान् होने पर भी वे व्यवहार में हिन्दी और संस्कृत का ही प्रयोग करते थे। उनके ग्राम में सब लोग संस्कृत सीख गये थे। उनके लेख मोती जैसे सुन्दर थे। जिला कार्यवाह से लेकर महाकौशल प्रांत के सहकार्यवाह तथा अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख तक की जिम्मेदारी का निर्वहन किया। मधुरवाणी और हंसमुख स्वभाव के धनी सुरेन्द्रसिंह की ग्राम में बहुत विशाल पुश्तैनी खेती थी। उसमें सभी वर्ग के लोग काम करते थे। वे उन्हें परिवार के सदस्य मानकर उनके सुख-दुख में सम्मिलित होते थे। छुआछूत और ऊँच-नीच को दूर करके समरस ग्राम बनाया। वे कई वर्ष तक ग्राम में निर्विरोध एवं निर्विवाद सरपंच रहे। संघ में ग्राम विकास गतिविधि के शुरू होने के बहुत पहले ही सुरेन्द्रसिंहजी स्वयंप्ररेणा से यह कार्य कर रहे थे। उनका मानना था कि केवल सरकारी योजनाओं से ग्राम विकास नहीं हो सकता अपितु ग्राम वासियों की सुप्त शक्ति को जगाकर यह कार्य किया जा सकता है। इस विचार को अपने ग्राम को आदर्श ग्राम बनाकर जमीन पर उतारा। उनके ग्राम में कन्याएं रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बाँधती थी इससे हजारों पेड़ बच गये। फ्लश के शौचालय से खुले में शौच जाना बंद हुआ। पर्यावरण शुद्धि के लिये घर में, सड़क के किनारे तथा ग्राम की अनुपयोगी भूमि पर फलदार वृक्ष लगाये। बच्चे के जन्मदिन पर पेड़ लगाने की परम्परा प्रारम्भ की।हर घर में तुलसी, फुलवाड़ी एवं गाय, बाहरी दिवार पर ऊँ तथा स्वास्तिक के चिन्ह, गोबर गैस के संयंत्र, एवं निर्धूम चूल्हे, हर गली में कूड़ेदान, रासायनिक खाद एवं कीटनाशक रहित जैविक खेती आदि के प्रयोग भी किये। हर इंच भूमि को सिंचित किया। विद्यालय में प्रेरक वाक्य लिखवाये। अध्यापकों के नियमित आने से छात्रों में अनुशासन आया एवं शिक्षा का स्तर सुधरा। घरेलू विवाद ग्राम में निपटाकर विवादमुक्त ग्राम बनाया। 53 प्रकार के ग्राम आधारित लघु उद्योग प्रारम्भ करवाये। ग्राम को धूम्रपान एवं नशामुक्त किया। ग्राम विकास की सरकारी योजना से आर्थिक विकास होता है लेकिन भैयाजी ने नैतिकता, संस्कार तथा ग्राम एक परिवार जैसे विचारों पर कार्य किया। उनके ग्राम को देखने दूर-दूर से लोग आते थे। विख्यात समाजसेवी भारत रत्न नानाजी देशमुख ने ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट में उन्हें उपकुलपति बनाया। भैयाजी ने 4 वर्ष यह जिम्मेदारी निभाई। संकलन टीम के कार्यकर्त्ता को गुरूजी जन्मशताब्दी वर्ष 2006 में सुरेन्द्रसिंह जी चौहान के साथ रहने का सौभाग्य मिला था, तब भैयाजी को बहुत निकट से देखने एवं समझने का अवसर मिला था।आदर्श ग्राम, स्वावलम्बी ग्राम तथा आदर्श हिन्दू परिवार के अनेक नये प्रयोगों के सुत्रधार भैयाजी का एक फरवरी 2013 को मोहद ग्राम में स्वर्गवास हो गया। इस प्रकार संघ को अपने जीवन में जीने वाले एक पुष्प भारत माता के चरणों में समर्पित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ:- 1. पांचजन्य 2. जीवन दीप जले भाग-दो लेखक - विजय कुमार संकलन - स्वयंसेवक : ज्ञात-अज्ञात संघ नीव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 5 = श्री भानुप्रताप शुक्ल:- भानप्रतापजी शुक्ल जी का जन्म 7 अगस्त 1935 के ग्राम राजपुर बैरिहवां जिला बस्ती (उतरप्रदेश) में हुआ था। भानुप्रताप अपने पिता अभयनारायण शुक्ल की एक मात्र संतान थे। जन्म के 12 दिन बाद ही उनकी जन्मदात्री मां का निधन हो गया अतः अपने नाना जगदम्बा प्रसाद तिवारी के घर सुल्तानपुर (उत्तरप्रदेश) में उनका लालन पालन हुआ। भानुप्रतापजी की प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम की पाठशाला में हुई। 1951 में वे संघ के सम्पर्क में आये और 4 वर्ष बाद 1955 में प्रचारक बन गये। भानुप्रतापजी एक मेधावी छात्र थे। बचपन से ही साहित्य में उनकी रुचि थी। इसलिये कहानियाँ, लेख आदि लिखते रहे। धीरे-धीरे वो प्रकाशित भी होने लगे। उन दिनों लखनऊ साहित्य का केन्द्र था। तत्कालिन उत्तर प्रदेश प्रान्त प्रचारक भाऊराव देवरस एवं सहप्रान्त प्रचारक दीनदयाल उपाध्याय ने उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें लखनऊ बुला लिया। अतः उस समय के प्रसिद्ध साहित्यकारों से उनका सम्पर्क हो गया। लखनऊ में भानुप्रतापजी ने पंडित अग्बिका प्रसाद वाजपेयी से पत्रकारिता सीखी। धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास बढ़ता गया और वे राष्ट्रधर्म (मासिक) के सम्पादक बनाये गये। उसके बाद तरुण भारत (दैनिक) के सम्पादक बनाये गये। लखनऊ में लम्बे समय तक नगर कार्यवाह के दायित्व पर रहे।

51522b72-938c-435f-a2a8-f2b9650f61f1

छात्रावास की शाखाओं में उनकी बहुत रुचि रहती थी। उनकी बौद्धिक प्रतिभा से प्रभावित होकर कई नये विद्यार्थी संघ से जुड़ गये। 1975 में आपातकाल लगने पर पांचजन्य (साप्ताहिक) को लखनऊ से दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया। इसके साथ भानुप्रतापजी दिल्ली आ गये फिर अन्त तक उनका केन्द्र दिल्ली ही रहा। आपातकाल में भूमिगत रहकर उन्होंने इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष किया। वे पांचजन्य के भी सम्पादक रहे जिसके कारण उनका परिचय देश-विदेश के पत्रकारों से हुआ। उन्होंने भारत से बाहर अनेक देशों की यात्रायें की। 1990 के श्रीराम मंदिर आन्दोलन में पूरी तरह सक्रीय रहे। 31 अक्टूबर एवं 2 नवम्बर 1990 को हुए हत्याकांड के वे प्रत्यक्षदर्शी थे और इसकी जानकारी पांचजन्य के माध्यम से उन्होंने पूरे देश को दी। 1994 के बाद स्वतन्त्र रूप से ‘राष्ट्र चिन्तन’ नामक साप्ताहिक स्तम्भ लिखने लगे। उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन एवं सम्पादन किया। श्री गुरुजी और दत्तोपन्तजी ठेंगडी के प्रति उनके मन में अत्यधिक श्रद्धा थी। कलम के सिपाही भानुप्रतापजी ने अपने शरीर पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। कैंसर से पीड़ित होने पर भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा। देहान्त के तीन दिन पहले भी उनका साप्ताहिक स्तम्भ ‘राष्ट्र चिन्तन’ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। 17 अगस्त 2006 को दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। इस प्रकार भारत माता के चरणों में एक ओर पुष्प विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ - 1. जीवन दीप जले भाग-दो लेखक- विजय कुमार संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 6 = श्री चन्द्रशेखर परमानन्द भिषीकर- बाबुराव नाम से प्रसिद्ध चंद्रशेखर परमानंद भिषीकर का जन्म 9 अगस्त 1914 को हुआ था। वे संघ के प्रारम्भिक स्वयंसेवको में से एक थे। अतः उन्हें डाक्टर हेडगेवारजी, श्री गुरुजी तथा उनके सहयोगियों को बहुत निकट से देखने और उनको समझने का भरपूर अवसर मिला था। संघ की कार्यपद्धति का विकास तथा शाखाओं का नागपुर से महाराष्ट्र और फिसम्पूर्ण भारत में कैसे कब विस्तार हुआ इसके भी वे अधिकृत जानकार थे। छात्र जीवन से ही उनकी रुचि पढ़ने लिखने में थी इसलिये आगे चलकर जब उन्होंने पत्रकारिता और लेखन को अपनी आजीविका बनाया, तो जीवनियों के माध्यम से संघ इतिहास के अनेक पहलू स्वयंसेवकों और संघ के बारे में जानने के इच्छुक शोधार्थियों को उपलब्ध कराये। उन्होंने कई संघ के वरिष्ठ कार्यकताओं के जीवन चरित्र लिखे। एक निष्ठावान स्वयंसेवक होने के साथ ही वे मौलिक चिंतक भी थे। संघ के संस्कार उनके जीवन के हर कदम पर दिखाई देते थे। पुणे के ”तरुण भारत” में संपादक रहते हुए वे अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन के सदस्य बने। सामान्यतः पत्रकारों और सम्पादकों के कार्यक्रमों में खाने और पीने की इच्छा रहती है। आजकल तो इसमें नकद भेंट से लेकर कई अन्य तरह के भ्रष्ट-व्यवहार भी जुड़ गये हैं, परन्तु बाबूराव जी ऐसे कार्यक्रमों में जाने के बाद भी पीने-पिलाने से हमेशा दूर ही रहे। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु जब संघ कार्य प्रारम्भ हुआ तब ऐसा कुछ नहीं था। प्रसिद्धि से दूर रहने की नीति के कारण इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं था, पर क्रमशः लेखन और सम्पादन में रुचि रखने वाले कुछ लोगों ने यह कार्य प्रारम्भ किया। बाबूराव जी ऐसे लोगों की मालिका के सुवर्ण मोती थे। संघ के संस्थापक डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार की पहली जीवनी उन्होंने ही लिखी थी। इसमें उनकी जीवन-यात्रा के साथ ही संघ स्थापना की पृष्ठभूमि तथा उनके सामने हुआ संघ का क्रमिक विकास बहुत सुन्दर ढंग से लिखा गया। लम्बे समय तक इसे ही संघ की एकमात्र अधिकृत पुस्तक मानी जाती थी। आगे चलकर उन्होंने श्री गुरुजी, भैयाजी दाणी, दादाराव परमार्थ, बाबा साहेब आप्टे आदि संघ के पुरोधाओं के जीवन चरित्र लिखे। सक्रिय पत्रकारिता से अवकाश लेने के बाद भी बाबुरावजी ने सक्रिय लेखन से अवकाश नहीं लिया। उनकी जानकारी, अनुभव तथा स्पष्ट विचारों के कारण पत्र-पत्रिकायें उनसे लेख मांगकर प्रकाशित करती रहती थी। वृद्धावस्था संबंधी अनेक कष्टों के बावजूद पुणे में अपने पुत्र के पास रहते हुए उन्होंने अपने मन को हमेशा सकारात्मक रखा। 1935 में धमतरी में विस्तारक गये तथा शाखा प्रारम्भ की। 1938 में संघकार्य विस्तार के लिये कराची भेजा गया। उन्होंने सिंध प्रान्त में संघ कार्य को औपचारिक रूप से प्रारम्भ किया। डाक्टर हेडगेवारजी ने कहा था हमें शहरी क्षेत्रों में 3 प्रतिशत एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रतिशत कार्य खड़ा करना है। इसे पूर्ण करने वाला सिंध पहला प्रांत बना। संघ इतिहास के ऐसे शीर्षस्थ अध्येता का 8 दिसम्बर 2008 को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के हराली कस्बे में स्वर्गवास हुआ। इस प्रकार संघ नींव में एक ओर पुष्प विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ- 1. तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे प्रदर्शनी भाग एक 2. 21 एवं 28 अगस्त 2008 का पांचजन्य संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम

More news from Betul and nearby areas
  • बैतूल गंज हत्याकांड में पुलिस का सख्त एक्शन: आरोपियों का शहर में जुलूस, भारी पुलिस बल तैनात
    1
    बैतूल गंज हत्याकांड में पुलिस का सख्त एक्शन: आरोपियों का शहर में जुलूस, भारी पुलिस बल तैनात
    user_Nitin Agrawal Journalist Today Voice News Journalist बैतूल
    Nitin Agrawal Journalist Today Voice News Journalist बैतूल
    Journalist Betul•
    12 hrs ago
  • आशा हे जिला प्रशासन ही कोई कार्यवाही करें तहसील स्तर के प्रशासन से कोई उम्मीद करना ही बेकार । क्योंकि यहां के जो अधिकारी हैं वह मुद्दे को दबाते हैं अब किस कारण से इस बात से आम नागरिक भली भांति परिचित है 🖊️🖊️🖊️
    1
    आशा हे जिला प्रशासन ही कोई कार्यवाही करें तहसील स्तर के प्रशासन से कोई उम्मीद करना ही बेकार ।
क्योंकि यहां के जो अधिकारी हैं वह मुद्दे को दबाते हैं अब किस कारण से इस बात से आम नागरिक भली भांति परिचित है 🖊️🖊️🖊️
    user_पंडित नीतेश कुमार मिश्रा साधना न्यूज़ संवाददाता
    पंडित नीतेश कुमार मिश्रा साधना न्यूज़ संवाददाता
    Journalist Narmadapuram•
    6 hrs ago
  • ise teacher bhi hote hai
    1
    ise teacher bhi hote hai
    user_Dvarka tumram
    Dvarka tumram
    Farmer Chhindwara•
    17 hrs ago
  • नगर परिषद चंद वार्ड क्रमांक 13 के पिछले 5 सालों से शासकीय भूमि पर कब्जा करके रह रहे लोगों को हटाने हेतु सारी नोटिस । जबकि नगर परिषद द्वारा भूमि आवंटन के लिए पट्टा प्रदान करने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। रह रहे कब्जा धारी द्वारा नोटिस नहीं लिए जाने की स्थिति में आज दिनांक 19 दिसंबर तारीख को नोटिस करके दरवाजे पर चिपकाए जा रहा है ।
    2
    नगर परिषद चंद वार्ड क्रमांक 13 के पिछले 5 सालों से शासकीय भूमि पर कब्जा करके रह रहे लोगों को हटाने हेतु सारी नोटिस ।
जबकि नगर परिषद द्वारा भूमि आवंटन के लिए पट्टा प्रदान करने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। 
रह रहे कब्जा धारी द्वारा नोटिस नहीं लिए जाने की स्थिति में आज दिनांक 19 दिसंबर तारीख को नोटिस करके दरवाजे पर चिपकाए जा रहा है ।
    user_Deepak Patil
    Deepak Patil
    Chhindwara•
    10 hrs ago
  • Pratap Singh
    1
    Pratap Singh
    user_Pratap Singh
    Pratap Singh
    Raisen•
    3 hrs ago
  • भोपाल कांग्रेस प्रदेश कार्यालय में महिला प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस महिला प्रदेश अध्यक्ष रीना बौरासी से चर्चा दिया संदेश
    1
    भोपाल कांग्रेस प्रदेश कार्यालय में महिला प्रदेश अध्यक्ष 
कांग्रेस महिला प्रदेश अध्यक्ष 
रीना बौरासी से चर्चा दिया संदेश
    user_विनायक न्यूज़ मध्य प्रदेश
    विनायक न्यूज़ मध्य प्रदेश
    Journalist Narsinghpur•
    1 hr ago
  • नगरपालिका बैठक में बड़े निर्णय कर बढ़ोतरी का प्रस्ताव खारिज, प्रतिमा बदलाव और पार्किंग जोन भी निरस्त
    1
    नगरपालिका बैठक में बड़े निर्णय कर बढ़ोतरी का प्रस्ताव खारिज, प्रतिमा बदलाव और पार्किंग जोन भी निरस्त
    user_Mp news 24live
    Mp news 24live
    Journalist Sagar•
    4 hrs ago
  • नगर परिषद चंद वार्ड क्रमांक 13 के पिछले 5 सालों से शासकीय भूमि पर कब्जा करके रह रहे लोगों को हटाने हेतु सारी नोटिस । जबकि नगर परिषद द्वारा भूमि आवंटन के लिए पट्टा प्रदान करने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। रह रहे कब्जा धारी द्वारा नोटिस नहीं लिए जाने की स्थिति में आज दिनांक 19 दिसंबर तारीख को नोटिस करके दरवाजे पर चिपकाए जा रहा है ।
    2
    नगर परिषद चंद वार्ड क्रमांक 13 के पिछले 5 सालों से शासकीय भूमि पर कब्जा करके रह रहे लोगों को हटाने हेतु सारी नोटिस ।
जबकि नगर परिषद द्वारा भूमि आवंटन के लिए पट्टा प्रदान करने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। 
रह रहे कब्जा धारी द्वारा नोटिस नहीं लिए जाने की स्थिति में आज दिनांक 19 दिसंबर तारीख को नोटिस करके दरवाजे पर चिपकाए जा रहा है ।
    user_Deepak Patil
    Deepak Patil
    Chhindwara•
    10 hrs ago
View latest news on Shuru App
Download_Android
  • Terms & Conditions
  • Career
  • Privacy Policy
  • Blogs
Shuru, a product of Close App Private Limited.