*राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय घट्टा में विश्व ध्यान दिवस मनाया।* *विद्यालय में इस अवसर पर सीबीईओ ऑफिस से सेवानिवृत आर.पी.नागर का किया स्वागत।* *कार्यक्रम में नागर नें विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर सिखाया ओंकार नाद योग।* छबड़ा:मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय छबड़ा से आर.पी.पद से सेवानिवृत हुए व्याख्याता शंकर लाल नागर का विश्व ध्यान दिवस पर राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय घट्टा में पीईईओ राकेश कुमार भार्गव के मुख्य आतिथ्य ओर प्रधानाध्यापक घनश्याम मालव की अध्यक्षता में तिलक,चंदन,माल्यार्पण ओर साफा बंधी कर श्री नाथ जी की तस्वीर भेंट कर स्वागत सम्मान किया गया।नागर ने बालक ओर बालिकाओं को विश्व ध्यान दिवस के उपलक्ष्य में ओंकार नाद का अभ्यास कराया गया।नागर ने कहा कि भौतिकवादी युग में मनुष्य का भटकाव काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद से आकर्षित होकर आज का भोतिवादी मनुष्य तनाव का शिकार हो रहा है ओर अनेक बीमारियों का शिकार हो रहा है।तनाव से निजात पाना है तो नित्य योगाभ्यास ओर ध्यान किया जावे तो इसके माध्यम से तनाव दूर किया जा सकता है ओर तनाव के दूर होने से बीमारियों पर विजय पायी जा सकती है।नागर के कहा कि 6 दिसंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित किया,भारत ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।हालांकि,इतिहासकारों का मानना है कि ध्यान का अभ्यास इस समय से पहले,भारत देश मे ही इसका प्राकट्य भगवान शिव से हुआ जिन्हें हम योगिराज ओर नटराज के रूप में भी जानते ओर पूजते आये है।यानी 3000 ईसा पूर्व से ही ध्यान का अभ्यास किया जाता था 600-500 ईसा पूर्व के बीच,चीन में ताओ और भारत में बुद्ध भगवान के बौद्ध अनुयायियों के द्वारा बाद में ध्यान के रूपों का विकास दर्ज किया गया था हालांकि इन प्रथाओं में विशेष रूप से बौद्ध ध्यान की सटीक उत्पत्ति पर इतिहासकारों के बीच आज भी बहस जारी है।विश्व ध्यान दिवस पर बालक-बालिकाओं ओर स्टाफ़ के सदस्य घनश्याम मालव मधुरानी गुप्ता,सुरेश चंद जाट,कालूराम मीना,पूजा चतुर्वेदी,पिंटू,रेखा कुमारी मीना,नरेन्द्र नागर,बाबू सिंह राठौर आदि उपस्थित रहे। समापन पर प्रधानाध्यापक घनश्याम मालव ने आभार जताया गया।
*राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय घट्टा में विश्व ध्यान दिवस मनाया।* *विद्यालय में इस अवसर पर सीबीईओ ऑफिस से सेवानिवृत आर.पी.नागर का किया स्वागत।* *कार्यक्रम में नागर नें विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर सिखाया ओंकार नाद योग।* छबड़ा:मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय छबड़ा से आर.पी.पद से सेवानिवृत हुए व्याख्याता शंकर लाल नागर का विश्व ध्यान दिवस पर राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय घट्टा में पीईईओ राकेश कुमार भार्गव के मुख्य आतिथ्य ओर प्रधानाध्यापक घनश्याम मालव की अध्यक्षता में तिलक,चंदन,माल्यार्पण ओर साफा बंधी कर श्री नाथ जी की तस्वीर
भेंट कर स्वागत सम्मान किया गया।नागर ने बालक ओर बालिकाओं को विश्व ध्यान दिवस के उपलक्ष्य में ओंकार नाद का अभ्यास कराया गया।नागर ने कहा कि भौतिकवादी युग में मनुष्य का भटकाव काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद से आकर्षित होकर आज का भोतिवादी मनुष्य तनाव का शिकार हो रहा है ओर अनेक बीमारियों का शिकार हो रहा है।तनाव से निजात पाना है तो नित्य योगाभ्यास ओर ध्यान किया जावे तो इसके माध्यम से तनाव दूर किया जा सकता है ओर तनाव के दूर होने से बीमारियों पर विजय पायी
जा सकती है।नागर के कहा कि 6 दिसंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित किया,भारत ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।हालांकि,इतिहासकारों का मानना है कि ध्यान का अभ्यास इस समय से पहले,भारत देश मे ही इसका प्राकट्य भगवान शिव से हुआ जिन्हें हम योगिराज ओर नटराज के रूप में भी जानते ओर पूजते आये है।यानी 3000 ईसा पूर्व से ही ध्यान का अभ्यास किया जाता
था 600-500 ईसा पूर्व के बीच,चीन में ताओ और भारत में बुद्ध भगवान के बौद्ध अनुयायियों के द्वारा बाद में ध्यान के रूपों का विकास दर्ज किया गया था हालांकि इन प्रथाओं में विशेष रूप से बौद्ध ध्यान की सटीक उत्पत्ति पर इतिहासकारों के बीच आज भी बहस जारी है।विश्व ध्यान दिवस पर बालक-बालिकाओं ओर स्टाफ़ के सदस्य घनश्याम मालव मधुरानी गुप्ता,सुरेश चंद जाट,कालूराम मीना,पूजा चतुर्वेदी,पिंटू,रेखा कुमारी मीना,नरेन्द्र नागर,बाबू सिंह राठौर आदि उपस्थित रहे। समापन पर प्रधानाध्यापक घनश्याम मालव ने आभार जताया गया।
- *दमोह में 22-25 दिसम्बर,2024 तक आयोजित हो रहा ओशो ध्यान शिविर का आयोजन।* ओशो के शिक्षा दर्शन के कुछ प्रमुख पहलू ये रहे। ओशो के मुताबिक,शिक्षा का मतलब है जीवन जीने की कला वह शिक्षा को केवल पढ़ने से ज़्यादा मानते थे। ओशो का मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो समग्र मानवता को ध्यान में रखकर दी जाए। ओशो के मुताबिक,वर्तमान शिक्षा महत्वाकांक्षा,तुलना और प्रतिस्पर्धा पर आधारित है,जिससे विषाद,पीड़ा और शत्रुता पैदा होती है। ओशो का मानना था कि शिक्षा का मकसद किसी व्यक्ति को एक जैसे आदमी में ढालना नहीं होना चाहिए. ओशो के मुताबिक,शिक्षा का मकसद हर व्यक्ति के भीतर का फूल खिलवाना होना चाहिए। ओशो के मुताबिक,शिक्षा में ध्यान को अनिवार्य जगह देनी चाहिए, ओशो के मुताबिक, शिक्षा में स्वतंत्रता और अनुशासन का संतुलन होना चाहिए। ओशो के मुताबिक,शिक्षा में बालकों को पर्याप्त स्वतंत्रता देनी चाहिए। ओशो के मुताबिक,शिक्षा में बालकों के शारीरिक विकास के लिए खेल का मैदान और पर्याप्त खेल उपकरण होने चाहिए। ओशो के मुताबिक, शिक्षा में संगीत कक्ष, ध्यान कक्ष और अध्ययन-कक्ष अलग-अलग होने चाहि।4
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