सावित्रीबाई फुले का संक्षिप्त परिचय सावित्रीबाई फुले का जन्म सन् 1831 में पुणे के नजदीक सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। 9 साल की उम्र में इनकी शादी ज्योति राव फुले से हुई। उस समय ज्योति राव फुले की उम्र 13 वर्ष थी। पति को पढ़ता देख कर सावित्रीबाई के मन में भी पढ़ने की इच्छा जगी। सावित्रीबाई की रुचि देखकर ज्योति राव ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया लेकिन उस समय औरतों की शिक्षा पर मनाही थी इसलिए ब्राह्मण वादियों ने उनका विरोध किया। कहा गया कि इससे तो धर्म ही खतरे में पड़ जाएगा। उनके ससुर को धमकी दी गई कि अपनी बहू को पढ़ने से रोको नहीं तो तुम्हें समाज बहिष्कृत कर दिया जाएगा। ज्योति राव के पिता ने अपने बेटे पर दबाव डाला कि वह सावित्रीबाई को पढ़ने से रोके लेकिन ज्योति राव ने इससे इनकार कर दिया। नतीजतन पति-पत्नी को घर से निकाल दिया गया। ऐसे समय में उनके एक मित्र उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में जगह दी। उस्मान शेख के घर पर रहते हुए ही सावित्रीबाई फुले और उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने शिक्षा पूरी की। टीचर्स ट्रेनिंग किया और लड़कियों को पढ़ाने का काम शुरू किया। सावित्रीबाई और ज्योति राव ने मिलकर 1848 में पहला स्कूल खोला जिसमें सभी समुदाय की लड़कियों की शिक्षा का इंतजाम था। इसे लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए वे घर घर जाकर लड़कियों के माता-पिता को प्रेरित करतीं। कई बार उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता था लेकिन वे हिम्मत नहीं हारतीं। जब सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाने स्कूल जातीं उस समय उन पर गोबर, मिट्टी, पत्थर फेंके जाते थे। स्कूल में जाकर वह अपनी साड़ी बदलतीं और लड़कियों को पढ़ाती थीं फिर वही गंदी साड़ी पहनकर वापस घर आती थीं। सावित्रीबाई और ज्योति राव फुले ने मिलकर महाराष्ट्र में 18 स्कूल खोले। सावित्रीबाई फुले एक समाज सुधारक और कवि भी थीं। उन्होंने अनेक कविताएं लिखी हैं। लड़कियों की शिक्षा और जाति प्रथा के कारण दलित महिलाओं पर अत्याचार भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं को अधिकार देने के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने एक आश्रम खोला जिसमें बाल विधवा लड़कियां, विधवा महिलाएं, घर से निकाल दी गई महिलाएं, बलात्कार की शिकार बनी महिलाएं रहती थीं, इन सभी को उन्होंने शिक्षा दिया और आत्मनिर्भर बनाया। परिवार के अत्याचार से पीड़ित एक ब्राह्मण गर्भवती महिला जो आत्महत्या करने जा रही थी उसे ज्योति राव ने बचाया। उस महिला ने उनके ही आश्रम में अपने बच्चे को जन्म दिया। ज्योतिबा फुले ने दलितों-अतिपिछड़ों के साथ भेदभाव और उन्हें गुलाम बनाए रखने वाले विचारों का जबरदस्त विरोध किया। उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उनकी मृत्यु के बाद सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज का काम संभाला और समाज सुधार के काम को आगे बढ़ाया। 1897 में जब प्लेग का रोग फैला उसे समय सावित्रीबाई फुले प्लेग रोगियों की सेवा में लगी रहीं। प्लेग रोगियों के संपर्क में आने के कारण वह भी प्लेग की शिकार हुईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।
सावित्रीबाई फुले का संक्षिप्त परिचय सावित्रीबाई फुले का जन्म सन् 1831 में पुणे के नजदीक सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। 9 साल की उम्र में इनकी शादी ज्योति राव फुले से हुई। उस समय ज्योति राव फुले की उम्र 13 वर्ष थी। पति को पढ़ता देख कर सावित्रीबाई के मन में भी पढ़ने की इच्छा जगी। सावित्रीबाई की रुचि देखकर ज्योति राव ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया लेकिन उस समय औरतों की शिक्षा पर मनाही थी इसलिए ब्राह्मण वादियों ने उनका विरोध किया। कहा गया कि इससे तो धर्म ही खतरे में पड़ जाएगा। उनके ससुर को धमकी दी गई कि अपनी बहू को पढ़ने से रोको नहीं तो तुम्हें समाज बहिष्कृत कर दिया जाएगा। ज्योति राव के पिता ने अपने बेटे पर दबाव डाला कि वह सावित्रीबाई को पढ़ने से रोके लेकिन ज्योति राव ने इससे इनकार कर दिया। नतीजतन पति-पत्नी को घर से निकाल दिया गया। ऐसे समय में उनके एक मित्र उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में जगह दी। उस्मान शेख के घर पर रहते हुए ही सावित्रीबाई फुले और उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने शिक्षा पूरी की। टीचर्स ट्रेनिंग किया और लड़कियों को पढ़ाने का काम शुरू किया। सावित्रीबाई और ज्योति राव ने मिलकर 1848 में पहला स्कूल खोला जिसमें सभी समुदाय की लड़कियों की शिक्षा का इंतजाम था। इसे लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए वे घर घर जाकर लड़कियों के माता-पिता को प्रेरित करतीं। कई बार उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता था लेकिन वे हिम्मत नहीं हारतीं। जब सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाने स्कूल जातीं उस समय उन पर गोबर, मिट्टी, पत्थर फेंके जाते थे। स्कूल में जाकर वह अपनी साड़ी बदलतीं और लड़कियों को पढ़ाती थीं फिर वही गंदी साड़ी पहनकर वापस घर आती थीं। सावित्रीबाई और ज्योति राव फुले ने मिलकर महाराष्ट्र में 18 स्कूल खोले। सावित्रीबाई फुले एक समाज सुधारक और कवि भी थीं। उन्होंने अनेक कविताएं लिखी हैं। लड़कियों की शिक्षा और जाति प्रथा के कारण दलित महिलाओं पर अत्याचार भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं को अधिकार देने के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने एक आश्रम खोला जिसमें बाल विधवा लड़कियां, विधवा महिलाएं, घर से निकाल दी गई महिलाएं, बलात्कार की शिकार बनी महिलाएं रहती थीं, इन सभी को उन्होंने शिक्षा दिया और आत्मनिर्भर बनाया। परिवार के अत्याचार से पीड़ित एक ब्राह्मण गर्भवती महिला जो आत्महत्या करने जा रही थी उसे ज्योति राव ने बचाया। उस महिला ने उनके ही आश्रम में अपने बच्चे को जन्म दिया। ज्योतिबा फुले ने दलितों-अतिपिछड़ों के साथ भेदभाव और उन्हें गुलाम बनाए रखने वाले विचारों का जबरदस्त विरोध किया। उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उनकी मृत्यु के बाद सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज का काम संभाला और समाज सुधार के काम को आगे बढ़ाया। 1897 में जब प्लेग का रोग फैला उसे समय सावित्रीबाई फुले प्लेग रोगियों की सेवा में लगी रहीं। प्लेग रोगियों के संपर्क में आने के कारण वह भी प्लेग की शिकार हुईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।
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