भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दकी मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कामिल-फाजिल वोटरों को एमएलसी चुनाव में वोटिंग से रोके जाने की मांग की नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ाए जाने वाले कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) के कोर्से और उन डिग्रियों पर पाबंदी लगा दी थी. कोर्ट ने ये रोक इस बिना पर लगाया था कि बिना किसी नेट- पीएचडी पास शिक्षक के कोई मदरसा ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री कैसे दे सकता है? हालंकि इन डिग्रियों को स्नातक और स्नातकोत्तर के समकक्ष होने की मान्यता सरकार भी दे रही थी, और इन डिग्रियों के आधार पर सरकारी नौकरी भी मिल जाती थी. लेकिन अब इस मामले में दो कदम और आगे बढ़ते हुए भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सद्र जमाल सिद्दीकी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मांग की है कि मदरसों द्वारा प्रदान किये गए कामिल और फाजिल डिग्री धारकों को विधान परिषद (एमएलसी) की वोटर लिस्ट में शामिल करने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए. वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने की यह प्रक्रिया 5 नवंबर तक होनी है. जमाल सिद्दीकी ने कहा है कि मदरसा द्वारा जारी इन डिग्रियों को मान्यता देकर इन्हें (MLC) चुनाव में मतदाता बनने और चुनाव में हिस्सा लेने की वैधता के तौर पर जोड़ा जा रहा है. यह निहायत ही तशवीशनाक है, क्योंकि कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) की ये डिग्रियां मदरसों के जरिये जारी की गई है, जो आधुनिक विश्वविधालय शिक्षा के मानकों के मुताबिक नहीं है. जमाल सिद्दीकी ने आगे कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने 5 नवंबर 2024 को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड एक्ट 2024 की वैधता को बरकरार तो रखा था, लेकिन इसके उच्च शिक्षा संबंधी प्रावधानों (कामिल और फाजिल डिग्रियों) को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा था कि ये डिग्रियां (जिन्हें स्नातक और स्नातकोत्तर के समकक्ष माना जाता था) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)एक्ट की खिलाफवर्जी करता है. कोर्ट के इस फैसले के बाद ये डिग्रियां अमान्य हो गई हैं, और इन्हें ग्रेजुएट के तौर पर मान्यता देना कोर्ट के आदेशों के साथ खिलवाड़ होगा." विधान परिषद अधिनियम का मतदाता बनने के लिए स्नातक होना अनिवार्य शर्त गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद एक्ट, 1961 की धारा 6(3) के मुताबिक, ग्रेजुएट निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविधालय से स्तानक डिग्री होना अनिवार्य शर्त होता है. ये प्रावधान दूसरे राज्यों में भी लागू है. कामिल और फाजिल कोर्स को पहले स्नातक और स्नातकोत्तर के समकक्ष माना जाता था, इसलिए विधान परिषद् चुनाव में कामिल और फाजिल पास लोगों को वोटर्स के तौर पर मान्यता मिलती थी और वो विधान परिषद सदस्यों के चुनाव में वोट डालते थे. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कामिल और फाजिल को स्तानक डिग्री के समकक्ष नहीं माना गया है. जमाल सिद्दीकी इसी वजह से इसपर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश 5 नवंबर 2024 के बाद से लागू होंगे. उससे पहले मदरसों द्वारा जारी कामिल और फाजिल की डिग्रियों को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है. सपा से जुड़े एक नेता आलमगीर आलम ने कहा कि जमाल सिद्दीकी इस बात से डरे हुए हैं कि कामिल और फाजिल कोटे के वोटर्स विधान परिषद् में भाजपा उमीदवारों को शायद वोट नहीं करेंगे, इसलिए वो इस तरह की घटिया राजनीति कर रहे हैं.
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दकी मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कामिल-फाजिल वोटरों को एमएलसी चुनाव में वोटिंग से रोके जाने की मांग की नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ाए जाने वाले कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) के कोर्से और उन डिग्रियों पर पाबंदी लगा दी थी. कोर्ट ने ये रोक इस बिना पर लगाया था कि बिना किसी नेट- पीएचडी पास शिक्षक के कोई मदरसा ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री कैसे दे सकता है? हालंकि इन डिग्रियों को स्नातक और स्नातकोत्तर के समकक्ष होने की मान्यता सरकार भी दे रही थी, और इन डिग्रियों के आधार पर सरकारी नौकरी भी मिल जाती थी. लेकिन अब इस मामले में दो कदम और आगे बढ़ते हुए भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सद्र जमाल सिद्दीकी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मांग की है कि मदरसों द्वारा प्रदान किये गए कामिल और फाजिल डिग्री धारकों को विधान परिषद (एमएलसी) की वोटर लिस्ट में शामिल करने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए. वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने की यह प्रक्रिया 5 नवंबर तक होनी है. जमाल सिद्दीकी ने कहा है कि मदरसा द्वारा जारी इन डिग्रियों को मान्यता देकर इन्हें (MLC) चुनाव में मतदाता बनने और चुनाव में हिस्सा लेने की वैधता के तौर पर जोड़ा जा रहा है. यह निहायत ही तशवीशनाक है, क्योंकि कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) की ये डिग्रियां मदरसों के जरिये जारी की गई है, जो आधुनिक विश्वविधालय शिक्षा के मानकों के मुताबिक नहीं है. जमाल सिद्दीकी ने आगे कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने 5 नवंबर 2024 को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड एक्ट 2024 की वैधता को बरकरार तो रखा था, लेकिन इसके उच्च शिक्षा संबंधी प्रावधानों (कामिल और फाजिल डिग्रियों) को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा था कि ये डिग्रियां (जिन्हें स्नातक और स्नातकोत्तर के समकक्ष माना जाता था) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)एक्ट की खिलाफवर्जी करता है. कोर्ट के इस फैसले के बाद ये डिग्रियां अमान्य हो गई हैं, और इन्हें ग्रेजुएट के तौर पर मान्यता देना कोर्ट के आदेशों के साथ खिलवाड़ होगा." विधान परिषद अधिनियम का मतदाता बनने के लिए स्नातक होना अनिवार्य शर्त गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद एक्ट, 1961 की धारा 6(3) के मुताबिक, ग्रेजुएट निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविधालय से स्तानक डिग्री होना अनिवार्य शर्त होता है. ये प्रावधान दूसरे राज्यों में भी लागू है. कामिल और फाजिल कोर्स को पहले स्नातक और स्नातकोत्तर के समकक्ष माना जाता था, इसलिए विधान परिषद् चुनाव में कामिल और फाजिल पास लोगों को वोटर्स के तौर पर मान्यता मिलती थी और वो विधान परिषद सदस्यों के चुनाव में वोट डालते थे. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कामिल और फाजिल को स्तानक डिग्री के समकक्ष नहीं माना गया है. जमाल सिद्दीकी इसी वजह से इसपर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश 5 नवंबर 2024 के बाद से लागू होंगे. उससे पहले मदरसों द्वारा जारी कामिल और फाजिल की डिग्रियों को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है. सपा से जुड़े एक नेता आलमगीर आलम ने कहा कि जमाल सिद्दीकी इस बात से डरे हुए हैं कि कामिल और फाजिल कोटे के वोटर्स विधान परिषद् में भाजपा उमीदवारों को शायद वोट नहीं करेंगे, इसलिए वो इस तरह की घटिया राजनीति कर रहे हैं.
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