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ये है भारत के gen-z की ताकत.. 🔥 दुनिया एक तरफ जहाँ AI (Artificial Intelligence) से हैरान है, वहीं भारत के देवव्रत ने अपनी NI (Natural Intelligence) से दुनिया को चौंका दिया है। 50 दिन में 2000 मंत्र की जटिल साधना और पाठ। जिसके साथ टूट गया 200 साल पुराना रिकॉर्ड। देवव्रत ने वेदों का "दंडक्रम पारायण" पूरा किया है। यह सिर्फ़ पूजा या अनुष्ठान नहीं, बल्कि गणित और विज्ञान का एक असंभव कारनामा है। इसे करने के लिए दिमाग को हर सेकंड शब्दों को उलटना-पलटना और जोड़ना पड़ता है। एक भी मात्रा की गलती, और पूरी चेन टूट जाएगी। यह कोडिंग बिना कीबोर्ड के की गई है। पिछली 2 सदियों से यह विद्या लगभग लुप्त थी। जब नालंदा जली थी, तब इन्ही विधियों ने हमारे ज्ञान को बचाया था। आज देवव्रत ने उस परंपरा को पुनर्जीवित (Revive) किया है। यह वेदों का 'Security System' है। हमारे ऋषियों ने मंत्रों को लॉक करने के लिए यह पैटर्न बनाया था ताकि कलयुग में कोई वेदों में मिलावट न कर सके। इस युवा की तपस्या और मेधा को नमन। यह है असली भारत। विज्ञान के नज़रिया से देखे तो "दुनिया की सबसे पुरानी कोडिंग" (The Science of Ancient Coding) में इसे सिर्फ़ 'याद करना' (Memorization) कहना गलत होगा। यह "Real-time Algorithmic Processing" है। असल में ये बाइनरी कोडिंग से भी जटिल है, कंप्यूटर 0 और 1 की भाषा समझता है। वेद पाठी को मंत्रों के शब्दों (Words), स्वरों (Accents), और मात्राओं (Syllables) को एक जटिल गणितीय सूत्र (Formula) में पिरोना होता है। दंडक्रम कैसे जटिल होता है इसका गणित समझिए: मान लीजिए मूल मंत्र है: क ख ग घ (1-2-3-4) दंडक्रम में इसे ऐसे बोला जाएगा: क ख, ख क, क ख, ख ग, ग ख, ख ग, ग घ... (अर्थात: 1-2, 2-1, 1-2, 2-3, 3-2, 2-3, 3-4...) इसमें सबसे बड़ी चुनौती है कि देवव्रत ने 50 दिनों तक लगातार, बिना रुके, बिना एक भी गलती किए, 2000 मंत्रों के लिए इस पैटर्न को दिमाग में चलाया और पाठ किया। Neuroscience के अनुसार, इस स्तर के पाठ के दौरान दिमाग के 'Left Hemisphere' (तर्क) और 'Right Hemisphere' (रचनात्मकता) के बीच जो सिनैप्स (Synapse) फायरिंग होती है, वो किसी सुपरकंप्यूटर से कम नहीं है। यह Neuroplasticity का चरम उदाहरण है। इतिहास के नज़रिया से यह अनुपम उपलब्धि है क्योंकि यह विद्या लुप्त हो गई थी.. अंग्रेजों के आगमन और आधुनिक शिक्षा पद्धति के कारण गुरुकुल नष्ट हो गए। 'संहिता पाठ' (सीधा-सीधा पढ़ना) तो बचा रहा, लेकिन 'विकृति पाठ' (जटिल तरीके जैसे घन, दंड, जटा) सिखाने वाले गुरु और सीखने वाले शिष्य कम हो गए। कहा जाता है कि पिछले लगभग 200 वर्षों (19वीं सदी की शुरुआत से) में किसी ने सार्वजनिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर 'दंडक्रम' का प्रदर्शन नहीं किया था। सोचिए जब दुनिया कागज पर स्याही से इतिहास लिख रही थी, भारत अपने इतिहास को ब्राह्मणों के दिमाग में 'रिकॉर्ड' कर रहा था। देवव्रत की यह उपलब्धि बताती है कि अगर दुनिया की सारी किताबें जल भी जाएं, तो भी एक वेद-पाठी अपने दिमाग से पूरा ग्रंथ हूबहू दोबारा लिख सकता है। यह इतिहास को सुरक्षित रखने की "Lossless Audio Compression" तकनीक है। यह वेदों का अभेद्य कवच है, समझिए कि धर्म के हिसाब से यह सबसे महत्वपूर्ण क्यों है? असल में इसमें मिलावट रोकने की तकनीक है (Anti-Corruption Mechanism): ऋषियों को पता था कि भविष्य में लोग मंत्रों में अपनी मर्जी से शब्द जोड़ देंगे या बदल देंगे। इसलिए उन्होंने 'दंडक्रम' जैसे 11 तरीके (विकृतियां) बनाए। अगर कोई मूल मंत्र में एक शब्द भी बदलता है, तो 'दंडक्रम' का पूरा गणितीय चैन (Chain) टूट जाएगा और गलती तुरंत पकड़ में आ जाएगी। देवव्रत ने यह सिद्ध किया कि वेद "अपौरुषेय" (Not created by humans) हैं और इन्हें बदला नहीं जा सकता है। यह वेदों की शुद्धता (Purity) को लॉक करने का "Cryptographic Hash Function" है। माना जाता है कि जब मंत्रों को इस क्रम में बोला जाता है, तो जो ध्वनि तरंगें (Sound Vibrations) पैदा होती हैं,..............

18 hrs ago
user_Public Media news
Public Media news
Journalist Barnigad, Uttar Kashi•
18 hrs ago
71cfb957-61da-42e2-aa86-f7dd4042f665

ये है भारत के gen-z की ताकत.. 🔥 दुनिया एक तरफ जहाँ AI (Artificial Intelligence) से हैरान है, वहीं भारत के देवव्रत ने अपनी NI (Natural Intelligence) से दुनिया को चौंका दिया है। 50 दिन में 2000 मंत्र की जटिल साधना और पाठ। जिसके साथ टूट गया 200 साल पुराना रिकॉर्ड। देवव्रत ने वेदों का "दंडक्रम पारायण" पूरा किया है। यह सिर्फ़ पूजा या अनुष्ठान नहीं, बल्कि गणित और विज्ञान का एक असंभव कारनामा है। इसे करने के लिए दिमाग को हर सेकंड शब्दों को उलटना-पलटना और जोड़ना पड़ता है। एक भी मात्रा की गलती, और पूरी चेन टूट जाएगी। यह कोडिंग बिना कीबोर्ड के की गई है। पिछली 2 सदियों से यह विद्या लगभग लुप्त थी। जब नालंदा जली थी, तब इन्ही विधियों ने हमारे ज्ञान को बचाया था। आज देवव्रत ने उस परंपरा को पुनर्जीवित (Revive) किया है। यह वेदों का 'Security System' है। हमारे ऋषियों ने मंत्रों को लॉक करने के लिए यह पैटर्न बनाया था ताकि कलयुग में कोई वेदों में मिलावट न कर सके। इस युवा की तपस्या और मेधा को नमन। यह है असली भारत। विज्ञान के नज़रिया से देखे तो "दुनिया की सबसे पुरानी कोडिंग" (The Science of Ancient Coding) में इसे सिर्फ़ 'याद करना' (Memorization) कहना गलत होगा। यह "Real-time Algorithmic Processing" है। असल में ये बाइनरी कोडिंग से भी जटिल है, कंप्यूटर 0 और 1 की भाषा समझता है। वेद पाठी को मंत्रों के शब्दों (Words), स्वरों (Accents), और मात्राओं (Syllables) को एक जटिल गणितीय सूत्र (Formula) में पिरोना होता है। दंडक्रम कैसे जटिल होता है इसका गणित समझिए: मान लीजिए मूल मंत्र है: क ख ग घ (1-2-3-4) दंडक्रम में इसे ऐसे बोला जाएगा: क ख, ख क, क ख, ख ग, ग ख, ख ग, ग घ... (अर्थात: 1-2, 2-1, 1-2, 2-3, 3-2, 2-3, 3-4...) इसमें सबसे बड़ी चुनौती है कि देवव्रत ने 50 दिनों तक लगातार, बिना रुके, बिना एक भी गलती किए, 2000 मंत्रों के लिए इस पैटर्न को दिमाग में चलाया

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और पाठ किया। Neuroscience के अनुसार, इस स्तर के पाठ के दौरान दिमाग के 'Left Hemisphere' (तर्क) और 'Right Hemisphere' (रचनात्मकता) के बीच जो सिनैप्स (Synapse) फायरिंग होती है, वो किसी सुपरकंप्यूटर से कम नहीं है। यह Neuroplasticity का चरम उदाहरण है। इतिहास के नज़रिया से यह अनुपम उपलब्धि है क्योंकि यह विद्या लुप्त हो गई थी.. अंग्रेजों के आगमन और आधुनिक शिक्षा पद्धति के कारण गुरुकुल नष्ट हो गए। 'संहिता पाठ' (सीधा-सीधा पढ़ना) तो बचा रहा, लेकिन 'विकृति पाठ' (जटिल तरीके जैसे घन, दंड, जटा) सिखाने वाले गुरु और सीखने वाले शिष्य कम हो गए। कहा जाता है कि पिछले लगभग 200 वर्षों (19वीं सदी की शुरुआत से) में किसी ने सार्वजनिक रूप से इतने बड़े पैमाने पर 'दंडक्रम' का प्रदर्शन नहीं किया था। सोचिए जब दुनिया कागज पर स्याही से इतिहास लिख रही थी, भारत अपने इतिहास को ब्राह्मणों के दिमाग में 'रिकॉर्ड' कर रहा था। देवव्रत की यह उपलब्धि बताती है कि अगर दुनिया की सारी किताबें जल भी जाएं, तो भी एक वेद-पाठी अपने दिमाग से पूरा ग्रंथ हूबहू दोबारा लिख सकता है। यह इतिहास को सुरक्षित रखने की "Lossless Audio Compression" तकनीक है। यह वेदों का अभेद्य कवच है, समझिए कि धर्म के हिसाब से यह सबसे महत्वपूर्ण क्यों है? असल में इसमें मिलावट रोकने की तकनीक है (Anti-Corruption Mechanism): ऋषियों को पता था कि भविष्य में लोग मंत्रों में अपनी मर्जी से शब्द जोड़ देंगे या बदल देंगे। इसलिए उन्होंने 'दंडक्रम' जैसे 11 तरीके (विकृतियां) बनाए। अगर कोई मूल मंत्र में एक शब्द भी बदलता है, तो 'दंडक्रम' का पूरा गणितीय चैन (Chain) टूट जाएगा और गलती तुरंत पकड़ में आ जाएगी। देवव्रत ने यह सिद्ध किया कि वेद "अपौरुषेय" (Not created by humans) हैं और इन्हें बदला नहीं जा सकता है। यह वेदों की शुद्धता (Purity) को लॉक करने का "Cryptographic Hash Function" है। माना जाता है कि जब मंत्रों को इस क्रम में बोला जाता है, तो जो ध्वनि तरंगें (Sound Vibrations) पैदा होती हैं,..............

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    user_Public Media news
    Public Media news
    Journalist Barnigad, Uttar Kashi•
    18 hrs ago
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    फर्जी पहचान, किराये का फ्लैट,साजिश और हत्या, टिहरी पुलिस ने किया सनसनीखेज खुलासा
    user_Uklive Uttrakhand
    Uklive Uttrakhand
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    11 hrs ago
  • गणित की दुनिया में 0 से अनंत तक की यात्रा कभी समाप्त नहीं होती। हर संख्या के बाद एक और बड़ी संख्या मौजूद होती है। यही कारण है कि गणित में “आख़िरी नंबर” जैसा कोई सिद्धांत नहीं है। संख्या रेखा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दिशाओं में अनंत तक फैली होती है। यह अवधारणा हमें सिखाती है कि संख्याएँ बिना किसी सीमा के बढ़ती और घटती रह सकती हैं। #Infinity #MindBlowingFacts #MathFacts #DidYouKnow #KnowledgeReels #ExploreMore
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    गणित की दुनिया में 0 से अनंत तक की यात्रा कभी समाप्त नहीं होती। हर संख्या के बाद एक और बड़ी संख्या मौजूद होती है। यही कारण है कि गणित में “आख़िरी नंबर” जैसा कोई सिद्धांत नहीं है। संख्या रेखा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दिशाओं में अनंत तक फैली होती है। यह अवधारणा हमें सिखाती है कि संख्याएँ बिना किसी सीमा के बढ़ती और घटती रह सकती हैं।
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    user_द संक्षेप
    द संक्षेप
    Media company Gaja, Tehri Garhwal•
    5 hrs ago
  • एक और नए बाबा जी
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    TG
    Taleeb Goar
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    user_Sunita Jain
    Sunita Jain
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    Apna Gao Shyamiwala
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    11 hrs ago
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    user_User6979
    User6979
    Local News Reporter Kullu, Himachal Pradesh•
    13 hrs ago
  • गणित की दुनिया में 0 से अनंत तक की यात्रा कभी समाप्त नहीं होती। हर संख्या के बाद एक और बड़ी संख्या मौजूद होती है। यही कारण है कि गणित में “आख़िरी नंबर” जैसा कोई सिद्धांत नहीं है। संख्या रेखा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दिशाओं में अनंत तक फैली होती है। यह अवधारणा हमें सिखाती है कि संख्याएँ बिना किसी सीमा के बढ़ती और घटती रह सकती हैं। #Infinity #MindBlowingFacts #MathFacts #DidYouKnow #KnowledgeReels #ExploreMore
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#Infinity #MindBlowingFacts #MathFacts #DidYouKnow #KnowledgeReels #ExploreMore
    user_द संक्षेप
    द संक्षेप
    Media company Deha, Shimla•
    5 hrs ago
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