ज्योतिष प्रकाश में हम जीना सिख ले, अब तो और जरुरी हुआ जान पड रहा है ? पर्यावरण हमें घेर रहा हैं - पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु और आकाश प्रतिकुल होता जा रहा हैं - इन पांचों का प्रतिनिधित्व हमारे जन्मकुंडली में * मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, और शनि है। भव-सागर में जो भी चक्रवात घर और बाहर उत्पन्न हो रहा हैं, उसका बीज हिन्दूत्व ( पर्यावरण के बीच स्वस्थ्य जीवन जीने का सूत्र ) संविधान की उपेक्षा * जब कि क्रमानुसार पृथ्वी से आकाश का क्रम हैं - आये तो आकाश से पृथ्वी पर - पर जाने का क्रम मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि इन्ही तत्वों के बीच रहते हुए जीवन का श्रृंगार करना है * आज श्रृंगार दुर्लभ होता जा रहा है - हमारा जीने का क्रम अस्त-ब्यस्त हैं -जब कि निद्रा रुप मृत्यु के बाद पुनः नया जीवन मिलता हैं - पर हम कल वाले जीवन में सोये रहते है - यह परम दुर्भाग्य है - स्पंदन हो आता है - चेतना एक क्षण के लिए ब्राह्म मुहूर्त में चैतन्य कर देती है - यही वह समय है - जब आपके अन्य ग्रह प्रकाशित होने का बाट् जो रहे होते है - हमारा हिन्दूत्व कह रहा हैं - सीढी़ पर चढों - अभ्यास कर संस्कार में ठालों । नया जीवन मिला है बेड पर एक क्षण के लिए आसन लगा लो, अपने हथेली पर लक्ष्मी - सरस्वती - ब्रह्मा का स्मरण तभी तो दिनचर्या सुखद होगा * घटा-बढा ब्रह्मा पूरा करेंगे।। प्रणाम कर संसार की यात्रा के पूर्व पृथ्वी को स्पर्श कर प्रणाम करें और माता से प्रार्थना करे - हमारे दोनों पैर सुमार्ग पथिक बने। पहली सीढी चढ़ गये - इसका प्रतिनिधित्व * मंगल करता है।। दूसरी सीढी जल है * शरीर की सफाई - तृतीय सीढी अग्नि - आभ्यंतर जलपान - बाह्य ईश्वर के निमित्त धूप-दीप आदि - इसी क्रम में ऋषियों ने प्रकृति का रहस्य जाना - अंत में भी - पृथ्वी पर लिटा कर स्नान चिता पर रखकर पिंड -उसके बाद तीसरी सीढी पर आंग लगाकर चढा देते है। कहने का तात्पर्य - मानव जीवन महान है - पर हम महानता के आचरण नहीं करते। ज्योतिष शास्त्र प्रारब्ध का बिरोधी नहीं अपितु यह प्रारब्ध का ज्ञान कराकर भविष्य को उज्वल बनाने की दृष्टि देता है। और बर्तमान को सुधारने का परामर्श देता हैं।
ज्योतिष प्रकाश में हम जीना सिख ले, अब तो और जरुरी हुआ जान पड रहा है ? पर्यावरण हमें घेर रहा हैं - पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु और आकाश प्रतिकुल होता जा रहा हैं - इन पांचों का प्रतिनिधित्व हमारे जन्मकुंडली में * मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, और शनि है। भव-सागर में जो भी चक्रवात घर और बाहर उत्पन्न हो रहा हैं, उसका बीज हिन्दूत्व ( पर्यावरण के बीच स्वस्थ्य जीवन जीने का सूत्र ) संविधान की उपेक्षा * जब कि क्रमानुसार पृथ्वी से आकाश का क्रम हैं - आये तो आकाश से पृथ्वी पर - पर जाने का क्रम मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि इन्ही तत्वों के बीच रहते हुए जीवन का श्रृंगार करना है * आज श्रृंगार दुर्लभ होता जा रहा है - हमारा जीने का क्रम अस्त-ब्यस्त हैं -जब कि निद्रा रुप मृत्यु के बाद पुनः नया जीवन मिलता हैं - पर हम कल वाले जीवन में सोये रहते है - यह परम दुर्भाग्य है - स्पंदन हो आता है - चेतना एक क्षण के लिए ब्राह्म मुहूर्त में चैतन्य कर देती है - यही वह समय है - जब आपके अन्य ग्रह प्रकाशित होने का बाट् जो रहे होते है - हमारा हिन्दूत्व कह रहा हैं - सीढी़ पर चढों - अभ्यास कर संस्कार में ठालों । नया जीवन मिला है बेड पर एक क्षण के लिए आसन लगा लो, अपने हथेली पर लक्ष्मी - सरस्वती - ब्रह्मा का स्मरण तभी तो दिनचर्या सुखद होगा * घटा-बढा ब्रह्मा पूरा करेंगे।। प्रणाम कर संसार की यात्रा के पूर्व पृथ्वी को स्पर्श कर प्रणाम करें और माता से प्रार्थना करे - हमारे दोनों पैर सुमार्ग पथिक बने। पहली सीढी चढ़ गये - इसका प्रतिनिधित्व * मंगल करता है।। दूसरी सीढी जल है * शरीर की सफाई - तृतीय सीढी अग्नि - आभ्यंतर जलपान - बाह्य ईश्वर के निमित्त धूप-दीप आदि - इसी क्रम में ऋषियों ने प्रकृति का रहस्य जाना - अंत में भी - पृथ्वी पर लिटा कर स्नान चिता पर रखकर पिंड -उसके बाद तीसरी सीढी पर आंग लगाकर चढा देते है। कहने का तात्पर्य - मानव जीवन महान है - पर हम महानता के आचरण नहीं करते। ज्योतिष शास्त्र प्रारब्ध का बिरोधी नहीं अपितु यह प्रारब्ध का ज्ञान कराकर भविष्य को उज्वल बनाने की दृष्टि देता है। और बर्तमान को सुधारने का परामर्श देता हैं।
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- Post by Noor Mohammad1
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