प्रशांति निलयम में लिखा गया, “आज का सुविचार,” १५ जनवरी, २०२५ हमें किस प्रकार के सुख और स्वतंत्रता के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए? भगवान आज प्रेमपूर्वक समझाते हैं, ताकि हम अपने तौर-तरीके रूपान्तरित कर सकें। लोगों को अपनी दृष्टि, अपने विचार, अपने वचन और अपने आचरण को परिवर्तित करना होगा। यही संक्रमण का अर्थ है। जब तक तुम स्वयं को शुद्ध नहीं करते, तब तक तुम्हारे लिए कितनी भी संख्या में संक्रांतियों को मनाने का क्या अर्थ हो सकता है? तुम मीठे प्रसाद का स्वाद लेते हो। कुछ समय पश्चात उसका स्वाद चला जाता है। मीठे भोज्य का महत्व नहीं है। तुमको अपने जीवन को पवित्र विचारों से अवश्य परिपूरित करना चाहिए। यही पवित्र त्योहारों का उद्देश्य है। युवा लोग पूछते हैं कि उन्हें मछली, पक्षी और पशुओं के समान स्वतंत्रता का आनंद क्यों नहीं लेना चाहिए! उन्हें यह समझना चाहिए कि इन सभी में से प्रत्येक प्राणी अपने जीवन की सीमाओं के अनुसार स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं। इसी प्रकार, मनुष्य को अपनी मानवीय स्थिति से संबंधित स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहिए। तुम स्वयं को मानव कहकर किसी पशु का जीवन नहीं जी सकते। एक मानव के लिए निर्धारित स्वतन्त्रता के अनुसार आनन्द लो। एक पशु के समान स्वतन्त्र होना स्वयं को पशु बना लेना है। स्वतन्त्रता क्या है, जिसका कोई भी व्यक्ति आनन्द ले सकता है? मनुष्य कुछ प्रतिबंधों द्वारा शासित होता है। उसे सत्य पर दृढ़ रहना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए, प्रेम का विकास करना चाहिए और शांति में जीवन यापन करना चाहिए। उसे अहिंसा का पालन अवश्य करना चाहिए। इन पाँच मूल्यों पर टिके रहकर मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर सकता है! सही अर्थों में स्वतंत्रता का उपयोग करने के लिए मनुष्य को पाँच आधारभूत मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। इसी स्वतंत्रता में ही उसे सच्चा आनंद प्राप्त होगा! -दिव्योद्बोधन, १५ जनवरी १९९६ श्री सत्य साई मिडिया सेण्टर
प्रशांति निलयम में लिखा गया, “आज का सुविचार,” १५ जनवरी, २०२५ हमें किस प्रकार के सुख और स्वतंत्रता के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए? भगवान आज प्रेमपूर्वक समझाते हैं, ताकि हम अपने तौर-तरीके रूपान्तरित कर सकें। लोगों को अपनी दृष्टि, अपने विचार, अपने वचन और अपने आचरण को परिवर्तित करना होगा। यही संक्रमण का अर्थ है। जब तक तुम स्वयं को शुद्ध नहीं करते, तब तक तुम्हारे लिए कितनी भी संख्या में संक्रांतियों को मनाने का क्या अर्थ हो सकता है? तुम मीठे प्रसाद का स्वाद लेते हो। कुछ समय पश्चात उसका स्वाद चला जाता है। मीठे भोज्य का महत्व नहीं है। तुमको अपने जीवन को पवित्र विचारों से अवश्य परिपूरित करना चाहिए। यही पवित्र त्योहारों का उद्देश्य है। युवा लोग पूछते हैं कि उन्हें मछली, पक्षी और पशुओं के समान स्वतंत्रता का आनंद क्यों नहीं लेना चाहिए! उन्हें यह समझना चाहिए कि इन सभी में से प्रत्येक प्राणी अपने जीवन की सीमाओं के अनुसार स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं। इसी प्रकार, मनुष्य को अपनी मानवीय स्थिति से संबंधित स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहिए। तुम स्वयं को मानव कहकर किसी पशु का जीवन नहीं जी सकते। एक मानव के लिए निर्धारित स्वतन्त्रता के अनुसार आनन्द लो। एक पशु के समान स्वतन्त्र होना स्वयं को पशु बना लेना है। स्वतन्त्रता क्या है, जिसका कोई भी व्यक्ति आनन्द ले सकता है? मनुष्य कुछ प्रतिबंधों द्वारा शासित होता है। उसे सत्य पर दृढ़ रहना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए, प्रेम का विकास करना चाहिए और शांति में जीवन यापन करना चाहिए। उसे अहिंसा का पालन अवश्य करना चाहिए। इन पाँच मूल्यों पर टिके रहकर मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर सकता है! सही अर्थों में स्वतंत्रता का उपयोग करने के लिए मनुष्य को पाँच आधारभूत मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। इसी स्वतंत्रता में ही उसे सच्चा आनंद प्राप्त होगा! -दिव्योद्बोधन, १५ जनवरी १९९६ श्री सत्य साई मिडिया सेण्टर