मनेंद्रगढ़ पशुपालकों की जेब पर डाका, अस्पताल में इलाज से ज्यादा धंधा: मनेंद्रगढ़/एमसीबी: क्षेत्र के पशुपालक इन दिनों पशु चिकित्सालय की अनियमितताओं से परेशान हैं। अस्पताल का समय तो तय है, लेकिन कर्मचारियों और चिकित्सकों की मनमानी के कारण जनता को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार मार्च से अक्टूबर तक अस्पताल का समय सुबह 7 से 11 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक रहता है, जबकि नवंबर से फरवरी तक सुबह 8 से 12 बजे और शाम 4 से 5 बजे तक। इसके बावजूद अस्पताल शायद ही कभी समय पर खुलता हो। प्रायः यह 11 बजे के बाद ही खुलता है, जिससे समय पर इलाज नहीं मिल पाता। सबसे गंभीर आरोप यह है कि सरकार की ओर से निःशुल्क उपलब्ध कराई जाने वाली दवाइयों को बाजार दर बताकर ऊँचे दाम पर बेचा जा रहा है। उदाहरण के लिए, रेबीज का इंजेक्शन जिसकी कीमत 35 रुपये है, उसे मरीजों से 300 रुपये लेकर लगाया जा रहा है। यही नहीं, कार्यालयीन समय पर प्राइवेट प्रैक्टिस भी करने की शिकायतें सामने आई हैं, जिसके लिए 2000 से 3000 रुपये तक वसूले जाते हैं। और तो और ग्रामीण क्षेत्रों में जाने पर ग्रामीणों से आने-जाने का पेट्रोल का खर्चा अलग से लिया जाता है। इस पूरे मामले पर कार्रवाई करने वाला जिम्मेदार विभाग भी सक्रिय नजर नहीं आता। जानकारी के अनुसार डी.डी.वी.एस. अधिकारी सप्ताह में मात्र दो दिन ही कार्यालय आते हैं। बाकी दिनों में उनकी अनुपस्थिति के कारण शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं। स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इन अनियमितताओं पर शीघ्र संज्ञान लिया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि पशुपालकों को राहत मिल सके।
मनेंद्रगढ़ पशुपालकों की जेब पर डाका, अस्पताल में इलाज से ज्यादा धंधा: मनेंद्रगढ़/एमसीबी: क्षेत्र के पशुपालक इन दिनों पशु चिकित्सालय की अनियमितताओं से परेशान हैं। अस्पताल का समय तो तय है, लेकिन कर्मचारियों और चिकित्सकों की मनमानी के कारण जनता को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार मार्च से अक्टूबर तक अस्पताल का समय सुबह 7 से 11 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक रहता है, जबकि नवंबर से फरवरी तक सुबह 8 से 12 बजे और शाम 4 से 5 बजे तक। इसके बावजूद अस्पताल शायद ही
कभी समय पर खुलता हो। प्रायः यह 11 बजे के बाद ही खुलता है, जिससे समय पर इलाज नहीं मिल पाता। सबसे गंभीर आरोप यह है कि सरकार की ओर से निःशुल्क उपलब्ध कराई जाने वाली दवाइयों को बाजार दर बताकर ऊँचे दाम पर बेचा जा रहा है। उदाहरण के लिए, रेबीज का इंजेक्शन जिसकी कीमत 35 रुपये है, उसे मरीजों से 300 रुपये लेकर लगाया जा रहा है। यही नहीं, कार्यालयीन समय पर प्राइवेट प्रैक्टिस भी करने की शिकायतें सामने आई हैं, जिसके लिए 2000 से 3000 रुपये तक वसूले जाते हैं। और
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