जन्नतुल बक़ी की वह दर्दनाक घटना, जब सऊदी सरकार द्वारा इस पवित्र क़ब्रिस्तान में मौजूद कई महत्वपूर्ण क़ब्रों और उनके ऊपर बने रौज़ों को ढहा दिया गया। संवाददाता - सैयद समीर हुसैन मुंब्रा : इतिहास के पन्नों में कई ऐसी घटनाएँ दर्ज हैं जो मानवता के लिए सबक और चिंतन का विषय बनती हैं। इनमें से एक है जन्नतुल बक़ी की वह दर्दनाक घटना, जब सऊदी सरकार द्वारा इस पवित्र क़ब्रिस्तान में मौजूद कई महत्वपूर्ण क़ब्रों और उनके ऊपर बने रौज़ों को ढहा दिया गया। इस घटना में पैगंबर मोहम्मद साहब की प्रिय बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा की क़ब्र और उस पर बना रौज़ा भी शामिल था। यह घटना न केवल इस्लामी इतिहास के लिए एक त्रासदी है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी एक सवालिया निशान है जो ऐतिहासिक स्थलों के प्रति संवेदनशीलता का दावा करते हैं, मगर इस मामले पर खामोशी अख्तियार कर लेते हैं।जन्नतुल बक़ी: मदीना में स्थित वह क़ब्रिस्तान है जहाँ पैगंबर मोहम्मद साहब के परिवार के कई सदस्यों और सहाबियों की क़ब्रें हैं। इसकी पवित्रता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैगंबर सहाब खुद यहाँ दुआ माँगने और अपने प्रियजनों को याद करने जाया करते थे। हज़रत फातिमा ज़हरा जो पैगंबर की इकलौती बेटी थीं और जिन्हें "सय्यिदतुन निसा-इल-आलमीन" (स्त्रियों की सरदार) का दर्जा प्राप्त है, उनकी क़ब्र भी इसी क़ब्रिस्तान में थी। उनके रौज़े को इस्लामी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। 8 शव्वाल 1345 हिजरी 21 अप्रैल1925 में, जब वहाबी विचारधारा के प्रभाव में सऊदी शासन ने जन्नतुल बक़ी के रौज़ों को ढहाने का फैसला किया, तो यह कदम इस्लामी दुनिया के लिए एक झटके की तरह था। इस कार्रवाई में हज़रत फातिमा की क़ब्र के साथ-साथ पैगंबर की पत्नियों, उनके बेटे इब्राहिम, और इमाम हसन इमाम ज़ैनुल आबेदीन इमाम मोहम्मद बाक़र इमाम जाफ़रे सादीक़ अन्य सहाबियों की क़ब्रे भी नष्ट कर दी गई। इस घटना को इस्लामी इतिहास में एक दुखद अध्याय के रूप में देखा जाता है, जिसने न केवल भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुँचाया, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरा आघात पहुँचाया।पैगंबर मोहम्मद का फातिमा के प्रति प्रेम और सम्मान किसी से छिपा नहीं है। उनकी शान में कई हदीसें मौजूद हैं जो उनकी महानता को बयान करती हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण इर्शादात हैं जो इस घटना के संदर्भ में और भी प्रासंगिक हो जाते हैं:"फातिमा मुझसे है और मैं फातिमा से जब पैगंबर ने उन्हें इतना ऊँचा दर्जा दिया, तो उनकी क़ब्र की हिफाज़त करना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी नहीं बनती आज जब जन्नतुल बक़ी की इस घटना पर उनकी खामोशी क्यों? इस घटना को लेकर न तो कोई बड़ा आंदोलन हुआ और न ही इसकी निंदा में आवाज़ें बुलंद हुईं। क्या यह दोहरा मापदंड नहीं दर्शाता?जन्नतुल बक़ी की यह घटना हमें यह सिखाती है कि इतिहास को संरक्षित करना और अपने धार्मिक प्रतीकों की हिफाज़त करना कितना ज़रूरी है जन्नतुल बकी के पुनर्निर्माण के लिए शिया समुदाय ने निकाला जुलूस मुंब्रा में शिया समुदाय ने रविवार शाम को सऊदी सरकार के विरोध में एहतेजाजी जुलूस निकाला और मजलिसों में पैगम्बर की बेटी व सहाबा कराम के मजारात के पुनर्निर्माण की मांग की हैं। जुलूस में शामिल लोगों ने सऊदी सरकार के इस कार्य की निदा करते हुए मजारात के पुनर्निर्माण की मांग उठाई,ये जुलूस मौलाना असलम रिज़वी साहब के सरपरस्ती में निकाला गया। ज़ेरे सरपरस्त मौलाना असलम रिज़वी साहब के नेतृत्व में शिया उलमा बोर्ड महाराष्ट्र।अल बक़ी ऑर्गनाइजेशन।मुंब्रा शिया इसना अशरी वेलफेयर एंड एजुकेशनल सोसाइटी।की जानिब से निकाला गया।जुलूस की देख भाल मौलाना अली अब्बास वफ़ा और उनकी टीम सभी सदस्य ने किया।टीम में शामिल अली अब्बास वफ़ा के साथ कर्रार साहब हुसैन बेकरी।राजू साहब।अब्बास आर रिज़वी।मजहर डेकोरेटर।रहबर सैयद।रज़ा अब्बास (शिब्लू ) इन सभी लोगों ने बखूभी अपनी ज़िम्मेदारी निभाई।
जन्नतुल बक़ी की वह दर्दनाक घटना, जब सऊदी सरकार द्वारा इस पवित्र क़ब्रिस्तान में मौजूद कई महत्वपूर्ण क़ब्रों और उनके ऊपर बने रौज़ों को ढहा दिया गया। संवाददाता - सैयद समीर हुसैन मुंब्रा : इतिहास के पन्नों में कई ऐसी घटनाएँ दर्ज हैं जो मानवता के लिए सबक और चिंतन का विषय बनती हैं। इनमें से एक है जन्नतुल बक़ी की वह दर्दनाक घटना, जब सऊदी सरकार द्वारा इस पवित्र क़ब्रिस्तान में मौजूद कई महत्वपूर्ण क़ब्रों और उनके ऊपर बने रौज़ों को ढहा दिया गया। इस घटना में पैगंबर मोहम्मद साहब की प्रिय बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा की क़ब्र और उस पर बना रौज़ा भी शामिल था। यह घटना न केवल इस्लामी इतिहास के लिए एक त्रासदी है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी एक सवालिया निशान है जो ऐतिहासिक स्थलों के प्रति संवेदनशीलता का दावा करते हैं, मगर इस मामले पर खामोशी अख्तियार कर लेते हैं।जन्नतुल बक़ी: मदीना में स्थित वह क़ब्रिस्तान है जहाँ पैगंबर मोहम्मद साहब के परिवार के कई सदस्यों और सहाबियों की क़ब्रें हैं। इसकी पवित्रता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैगंबर सहाब खुद यहाँ दुआ माँगने और अपने प्रियजनों को याद करने जाया करते थे। हज़रत फातिमा ज़हरा जो पैगंबर की इकलौती बेटी
थीं और जिन्हें "सय्यिदतुन निसा-इल-आलमीन" (स्त्रियों की सरदार) का दर्जा प्राप्त है, उनकी क़ब्र भी इसी क़ब्रिस्तान में थी। उनके रौज़े को इस्लामी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। 8 शव्वाल 1345 हिजरी 21 अप्रैल1925 में, जब वहाबी विचारधारा के प्रभाव में सऊदी शासन ने जन्नतुल बक़ी के रौज़ों को ढहाने का फैसला किया, तो यह कदम इस्लामी दुनिया के लिए एक झटके की तरह था। इस कार्रवाई में हज़रत फातिमा की क़ब्र के साथ-साथ पैगंबर की पत्नियों, उनके बेटे इब्राहिम, और इमाम हसन इमाम ज़ैनुल आबेदीन इमाम मोहम्मद बाक़र इमाम जाफ़रे सादीक़ अन्य सहाबियों की क़ब्रे भी नष्ट कर दी गई। इस घटना को इस्लामी इतिहास में एक दुखद अध्याय के रूप में देखा जाता है, जिसने न केवल भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुँचाया, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरा आघात पहुँचाया।पैगंबर मोहम्मद का फातिमा के प्रति प्रेम और सम्मान किसी से छिपा नहीं है। उनकी शान में कई हदीसें मौजूद हैं जो उनकी महानता को बयान करती हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण इर्शादात हैं जो इस घटना के संदर्भ में और भी प्रासंगिक हो जाते हैं:"फातिमा मुझसे है और मैं फातिमा से जब पैगंबर ने उन्हें इतना ऊँचा दर्जा दिया, तो उनकी क़ब्र की हिफाज़त करना हर
मुसलमान की ज़िम्मेदारी नहीं बनती आज जब जन्नतुल बक़ी की इस घटना पर उनकी खामोशी क्यों? इस घटना को लेकर न तो कोई बड़ा आंदोलन हुआ और न ही इसकी निंदा में आवाज़ें बुलंद हुईं। क्या यह दोहरा मापदंड नहीं दर्शाता?जन्नतुल बक़ी की यह घटना हमें यह सिखाती है कि इतिहास को संरक्षित करना और अपने धार्मिक प्रतीकों की हिफाज़त करना कितना ज़रूरी है जन्नतुल बकी के पुनर्निर्माण के लिए शिया समुदाय ने निकाला जुलूस मुंब्रा में शिया समुदाय ने रविवार शाम को सऊदी सरकार के विरोध में एहतेजाजी जुलूस निकाला और मजलिसों में पैगम्बर की बेटी व सहाबा कराम के मजारात के पुनर्निर्माण की मांग की हैं। जुलूस में शामिल लोगों ने सऊदी सरकार के इस कार्य की निदा करते हुए मजारात के पुनर्निर्माण की मांग उठाई,ये जुलूस मौलाना असलम रिज़वी साहब के सरपरस्ती में निकाला गया। ज़ेरे सरपरस्त मौलाना असलम रिज़वी साहब के नेतृत्व में शिया उलमा बोर्ड महाराष्ट्र।अल बक़ी ऑर्गनाइजेशन।मुंब्रा शिया इसना अशरी वेलफेयर एंड एजुकेशनल सोसाइटी।की जानिब से निकाला गया।जुलूस की देख भाल मौलाना अली अब्बास वफ़ा और उनकी टीम सभी सदस्य ने किया।टीम में शामिल अली अब्बास वफ़ा के साथ कर्रार साहब हुसैन बेकरी।राजू साहब।अब्बास आर रिज़वी।मजहर डेकोरेटर।रहबर सैयद।रज़ा अब्बास (शिब्लू ) इन सभी लोगों ने बखूभी अपनी ज़िम्मेदारी निभाई।
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