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कामकला काली और उनके प्रयोग ====================== महाकाल और महाकाली तंत्र के अधिष्टाता हैं . महाकाल और महाकाली का सबसे तेजस्वी और अद्भुत स्वरुप है कामकला काली . तंत्र साधना में इस साधना को सर्वस्व प्रदायक साधना कहा गया है इस साधना से परे कोई साधना नहीं है सभी साधनाएं इसी साधना में समाहित हैं. साधनाओं के क्षेत्र में कामकला काली की साधना को सर्वोपरि माना जाता है, इसके लिये कहा गया है कि प्राण का दान देकर भी यह विद्या मिल जाये तो इसे सप्रयास ग्रहण करना चाहिये । कामकला काली ।काली का एक मुख्य रूप है ।कतिपय संदर्भों में यह रूप अन्य काली रूपों से विशिष्ट भी है।इनका रूप दिगम्बरा है तथा यह मानव शरीर के आंतर एवं वाह्य अंग प्रत्यंगों को आभूषण के रूप में धारण करती हैं ।यह देवी रक्तपान से आनंदित होकर सीत्कार करती रहती हैं ।यह मांसाशिनी लेलिहान जिह्वाग्रा दस मुखों तथा सत्ताईस नेत्रों वाली हैं ।जिनकी चौवन भुजाएं हैं ।सर्पराज से आबद्ध जटा जूट वाली यह देवी अन्य अंगों में भी सर्पों का अलंकार धारण करती हैं ।दत्तात्रेय ।दुर्वासा ।विश्वामित्र।पाराशर ।बलि ।नारद ।परसुराम ।शुक्राचार्य ।सहस्त्रार्जुन ।कपिल।वैवस्वत मनु आदि इनके उपासक रहे हैं ।[पंडित जितेन्द्र मिश्र ] कामकला काली की पूजा पूर्ण वाम मार्गी पूजा है।पुरश्चरण हो या अन्य अनुष्ठान सर्वत्र वाम मार्ग का ही अनुसरण विहित है।यहाँ अनुकल्प भी ग्राह्य नहीं है ।उत्तर कौल की भांति यहाँ अनुष्ठानों में मांस ,मद्य आदि का ही प्रयोग होता है ।वशीकरण ,गद्य पद्यमयी वाग्मिता ,सर्व विद्यालाभ, धनावाप्ति ,सर्वसिद्धिलाभ ,आदि के लिए सर्वत्र नग्नता ,मैथुन ।नग्न स्त्री वीक्षण ,भग का आमंत्रण ,उसका दर्शन करते हुए जप ,पर स्त्री समागम ,स्त्री की अनुपलब्धि में स्ववीर्य का निस्सारण और उसी के साथ रति ,स्वदेह रुधिर से उपलिप्त विल्वपत्र एवं वीर्योलिप्त करवीर या जपा पुष्पों के द्वारा श्मशान में देवी की पूजा ,शव के ऊपर बैठकर रक्त ,मांस आदि से तर्पण ,मैथुनोत्तर प्रक्षालित भग के जल ,पक्व अपक्व मांस ,नारी रज आदि का प्रयोग विहित है तथा उत्तम मनोवांछित सिद्धि को शीघ्र देता है । कामकला काली की साधना प्रकारांतर से भैरवी साधना है किन्तु यह साधना मोक्ष मार्गीय कुंडलिनी साधना के स्थान पर मुक्ति मार्गीय शक्ति साधना है |इस साधना से अपार शक्ति और सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं |यह साधना एकल कम ही होती है अपितु यह युगल अधिक सुविधाजनक है |यह साहसी और मजबूत आत्मबल वाले गृहस्थ के अनुकूल साधना है जहाँ शयन बिस्तर पर सम्भोग रत रहते हुए भी मंत्र जप और साधना सम्भव होती है |एकल साधना के लिए गुरु द्वारा प्रदत्त तकनीक और पद्धति का अनुसरण किया जा सकता है किन्तु प्रारम्भिक साधना सदैव अकसर युगल ही शुरू होती है |इस साधना में पूजन का विशेष महत्त्व है जिसमें भगवती और सहयोगिनी भैरवी की विशेष पूजा -अर्चना आवश्यक तत्व होते हैं |पूर्णतया तांत्रिक और वाम मार्गीय साधना होने से इसमें गलतियों और विकल्पों के लिए कोई स्थान नहीं है अतः बिना पूर्ण जानकारी ,बिना गुरु के मार्गदर्शन के और विकल्प चाहने वाले के लिए यह साधना सम्भव नहीं है |यह काली का सबसे उग्र रूप है और इसके परिणाम तुरंत प्राप्त होते हैं | मन्त्र भेद, ध्यान भेद, पूजा भेद , विधि भेद से गुह्य काली ही कामकला काली एवं अन्य रूपों में परिवर्तित हो जाती है। कामकाली सोलह कलाओं की है। इनका मंत्र भी सोलह अक्षरों का होता है । सम्पूर्ण श्री चक्र में व्याप्त देवी सोलह कलाओं की होती है। इन सबकी मुख्य आधार शक्ति श्री चक्र या भैरवी साधना ही होती है। इसी तरह सभी काली रूपों में काम कला काली ही प्रमुख मानी जाती है । इन्हें के मन्त्र को त्रैलोक्याकर्षण मन्त्र कहा जाता है। कामकलाकाली की साधना का समय रात के 9 से 1 है. इसे 14 कृष्णपक्छ में पूजा करके प्रार‌म्भ करना चाहिये . पूजाविधि –आसन,वस्त्र, स्थान ,दिशा आदि की शुद्धि करें.आसन लाल होता है और धारणीय वस्त्र बिना सिला हुआ होता है |शास्त्रीय स्तर पर हर उपचार पर सबके मंत्र अलग हैं ,पर इसका सरल तरीका यह है,कि 21 मूल मंत्र से जल को सिद्ध करके ,इसी मंत्र से तीन तीन बार मंत्रसिद्ध जल ले कर मंत्र पढ़ते हुऐ प्रोक्छण करें .’हुं फट्’ से दिक बन्धन करें . षडंग न्यास –क्रम से पाँच बीज और एक देवी का नाम से छै अंगों का न्यास करें . आवाहण –तब सारी तैयारी करके ,धूप दीप नैवेद्य आदि समपॆण करने के वाद कामकला काली यन्त्र की स्थापना करें |यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा और आवरण पूजा करें |यंत्र का प्रथम दिन षोडशोपचार पूजन करें उसके बाद प्रतिदिन सामान्य पूजन कर सकते हैं ,फिर योनिरूपा त्रिकोण के मध्य से कामकला काली को निकलते रूप मे ध्यान लगा कर आवाहन मंत्र का जाप करें. इस क्रम में कामकला काली का पूर्ण स्वरुप ध्यान में होना चाहिए | आवाहण मंत्र –ऊँ ह्री क्लीं आं काम कला काली आगच्छ आगच्छ स्वाहा . मंत्र कामकला काली -क्लीं क्रीं हूँ क्रों स्फ्रें कामकला काली स्फ्रें क्रों हूँ क्रीं क्लीं स्वाहा | बलि मंत्र –ऊँ क्लीं क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं ह्रूंमहाकाली महाबलि गृह गृह भक्छय भक्छय स्वाहा . हवन–गूलर की समिधा मे बेल से. .गुलर की समिधा में मांस से . ______ / #KamkalaKali

on 13 September
user_Anupam Mohanta
Anupam Mohanta
Astrologer Karimganj•
on 13 September
6676961b-31b3-4564-82fa-ac1531f21789

कामकला काली और उनके प्रयोग ====================== महाकाल और महाकाली तंत्र के अधिष्टाता हैं . महाकाल और महाकाली का सबसे तेजस्वी और अद्भुत स्वरुप है कामकला काली . तंत्र साधना में इस साधना को सर्वस्व प्रदायक साधना कहा गया है इस साधना से परे कोई साधना नहीं है सभी साधनाएं इसी साधना में समाहित हैं. साधनाओं के क्षेत्र में कामकला काली की साधना को सर्वोपरि माना जाता है, इसके लिये कहा गया है कि प्राण का दान देकर भी यह विद्या मिल जाये तो इसे सप्रयास ग्रहण करना चाहिये । कामकला काली ।काली का एक मुख्य रूप है ।कतिपय संदर्भों में यह रूप अन्य काली रूपों से विशिष्ट भी है।इनका रूप दिगम्बरा है तथा यह मानव शरीर के आंतर एवं वाह्य अंग प्रत्यंगों को आभूषण के रूप में धारण करती हैं ।यह देवी रक्तपान से आनंदित होकर सीत्कार करती रहती हैं ।यह मांसाशिनी लेलिहान जिह्वाग्रा दस मुखों तथा सत्ताईस नेत्रों वाली हैं ।जिनकी चौवन भुजाएं हैं ।सर्पराज से आबद्ध जटा जूट वाली यह देवी अन्य अंगों में भी सर्पों का अलंकार धारण करती हैं ।दत्तात्रेय ।दुर्वासा ।विश्वामित्र।पाराशर ।बलि ।नारद ।परसुराम ।शुक्राचार्य ।सहस्त्रार्जुन ।कपिल।वैवस्वत मनु आदि इनके उपासक रहे हैं ।[पंडित जितेन्द्र मिश्र ] कामकला काली की पूजा पूर्ण वाम मार्गी पूजा है।पुरश्चरण हो या अन्य अनुष्ठान सर्वत्र वाम मार्ग का ही अनुसरण विहित है।यहाँ अनुकल्प भी ग्राह्य नहीं है ।उत्तर कौल की भांति यहाँ अनुष्ठानों में मांस ,मद्य आदि का ही प्रयोग होता है ।वशीकरण ,गद्य पद्यमयी वाग्मिता ,सर्व विद्यालाभ, धनावाप्ति ,सर्वसिद्धिलाभ ,आदि के लिए सर्वत्र नग्नता ,मैथुन ।नग्न स्त्री वीक्षण ,भग का आमंत्रण ,उसका दर्शन करते हुए जप ,पर स्त्री समागम ,स्त्री की अनुपलब्धि में स्ववीर्य का निस्सारण और उसी के साथ रति ,स्वदेह रुधिर से उपलिप्त विल्वपत्र एवं वीर्योलिप्त करवीर या जपा पुष्पों के द्वारा श्मशान में देवी की पूजा ,शव के ऊपर बैठकर रक्त ,मांस आदि से तर्पण ,मैथुनोत्तर प्रक्षालित भग के जल ,पक्व अपक्व मांस ,नारी रज आदि का प्रयोग विहित है तथा उत्तम मनोवांछित सिद्धि को शीघ्र देता है । कामकला काली की साधना प्रकारांतर से भैरवी साधना है किन्तु यह साधना मोक्ष मार्गीय कुंडलिनी साधना के स्थान पर मुक्ति मार्गीय शक्ति साधना है |इस साधना से अपार शक्ति और सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं |यह साधना एकल कम ही होती है अपितु यह युगल अधिक सुविधाजनक है |यह साहसी और मजबूत आत्मबल वाले गृहस्थ के अनुकूल साधना है जहाँ शयन बिस्तर पर सम्भोग रत रहते हुए भी मंत्र जप और साधना सम्भव होती है |एकल साधना के लिए गुरु द्वारा प्रदत्त तकनीक और पद्धति का अनुसरण किया जा सकता है किन्तु प्रारम्भिक साधना सदैव अकसर युगल ही शुरू होती है |इस साधना में पूजन का विशेष महत्त्व है जिसमें भगवती और सहयोगिनी भैरवी की विशेष पूजा -अर्चना आवश्यक तत्व होते हैं |पूर्णतया तांत्रिक और वाम मार्गीय साधना होने से इसमें गलतियों और विकल्पों के लिए कोई स्थान नहीं है अतः बिना पूर्ण जानकारी ,बिना गुरु के मार्गदर्शन के और विकल्प चाहने वाले के लिए यह साधना सम्भव नहीं है |यह काली का सबसे उग्र रूप है और इसके परिणाम तुरंत प्राप्त होते हैं | मन्त्र भेद, ध्यान भेद, पूजा भेद , विधि भेद से गुह्य काली ही कामकला काली एवं अन्य रूपों में परिवर्तित हो जाती है। कामकाली सोलह कलाओं की है। इनका मंत्र भी सोलह अक्षरों का होता है । सम्पूर्ण श्री चक्र में व्याप्त देवी सोलह कलाओं की होती है। इन सबकी मुख्य आधार शक्ति श्री चक्र या भैरवी साधना ही होती है। इसी तरह सभी काली रूपों में काम कला काली ही प्रमुख मानी जाती है । इन्हें के मन्त्र को त्रैलोक्याकर्षण मन्त्र कहा जाता है। कामकलाकाली की साधना का समय रात के 9 से 1 है. इसे 14 कृष्णपक्छ में पूजा करके प्रार‌म्भ करना चाहिये . पूजाविधि –आसन,वस्त्र, स्थान ,दिशा आदि की शुद्धि करें.आसन लाल होता है और धारणीय वस्त्र बिना सिला हुआ होता है |शास्त्रीय स्तर पर हर उपचार पर सबके मंत्र अलग हैं ,पर इसका सरल तरीका यह है,कि 21 मूल मंत्र से जल को सिद्ध करके ,इसी मंत्र से तीन तीन बार मंत्रसिद्ध जल ले कर मंत्र पढ़ते हुऐ प्रोक्छण करें .’हुं फट्’ से दिक बन्धन करें . षडंग न्यास –क्रम से पाँच बीज और एक देवी का नाम से छै अंगों का न्यास करें . आवाहण –तब सारी तैयारी करके ,धूप दीप नैवेद्य आदि समपॆण करने के वाद कामकला काली यन्त्र की स्थापना करें |यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा और आवरण पूजा करें |यंत्र का प्रथम दिन षोडशोपचार पूजन करें उसके बाद प्रतिदिन सामान्य पूजन कर सकते हैं ,फिर योनिरूपा त्रिकोण के मध्य से कामकला काली को निकलते रूप मे ध्यान लगा कर आवाहन मंत्र का जाप करें. इस क्रम में कामकला काली का पूर्ण स्वरुप ध्यान में होना चाहिए | आवाहण मंत्र –ऊँ ह्री क्लीं आं काम कला काली आगच्छ आगच्छ स्वाहा . मंत्र कामकला काली -क्लीं क्रीं हूँ क्रों स्फ्रें कामकला काली स्फ्रें क्रों हूँ क्रीं क्लीं स्वाहा | बलि मंत्र –ऊँ क्लीं क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं ह्रूंमहाकाली महाबलि गृह गृह भक्छय भक्छय स्वाहा . हवन–गूलर की समिधा मे बेल से. .गुलर की समिधा में मांस से . ______ / #KamkalaKali

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    user_Debojit Kumar Bordoloi
    Debojit Kumar Bordoloi
    Journalist Jorhat•
    12 hrs ago
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