देश में न्यायालय के अंदर किसी भी सीधे व्यक्ति और साधारण व्यक्ति को न्याय मिलना संभव नहीं है❓️ सतना भारत की न्यायपालिका में सीधी और सरल व्यक्ति के लिए न्याय मिलना ही मुश्किल है क्योंकि हमने यह देखा है कि इतनी ज्यादा कंडीशन न्यायालय में लगी हुई है की साधारण व्यक्ति उसकी पूर्ति ही नहीं कर सकते है। हमारे न्यायपालिका में वकीलों को कोई भी गलत बात लिखने की छूट प्रदान की गई है ❓️वह कुछ भी लिख सकते है, न्यायालय द्वारा उसे पर किसी प्रकार से कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है जिस कारण से एक सही व्यक्ति के लिए न्याय मिलना मुमकिन नहीं है। हमने देखा है कि दशमी का छात्र भी कागज के आधार पर बता सकता है की क्या सही है क्या गलत है लेकिन कटनी के मजिस्ट्रेट दिलीप कुमार दुबे को समझ में नहीं आया की सही क्या है गलत किया है और गलत तत्वों पर आदेश दे देते हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि मान्यवर यह गलत आदेश है सारे दस्तावेज उसके विरुद्ध होने के बाद भी आपने उसके पक्ष में जो आदेश दिया है ऐसा क्यों किया❓️ उनका केवल कहना रहता है कि हमने आदेश दे दिया है आदेश देना हमारे अधिकार क्षेत्र का है। क्या दूगा यह मेरे अधिकार में है आपको दिक्कत हो तो आप ऊपर चले जाइए । जब इस तरह के मजिस्ट्रेट हो जिनको दसवीं की छात्रो को कागज दिखा देने के बाद भी वह भी सही फैसला कर सकता है ❓️कौन सही कौन गलत और ऐसे में मजिस्ट्रेट को समझ में ना आए कि सही कौन है गलत कौन है तो वह क्या न्याय करेंगे ❓️ उनके इस अन्याय के कारण ही मजबूर होकर ऊपरी अदालत में आदमी आवेदन लगता है और गलत ना होने के बाद भी मजबूरन लोक अदालत में जाकर सामने वाले से समझौता कर कर किसी तरह से न्यायालय के बाहर आता है क्योंकि न्यायालय उसके खिलाफ खड़ी है जो यह दिखाता है कि न्याय के खिलाफ खड़ी है ऐसे स्थिति में सामने वाले के पास कोई रास्ता नहीं बचता केवल एक रास्ता बचता है कि किसी तरह सामने वाले से गलत होने के बावजूद इस से समझौता करके किसी तरह से अपने आप को मुक्त हो। लोक अदालत की शरण में जाकर समझौता कर ले । देश के न्यायालय से न्याय ना मिलने के कारण अन्याय को शहन कर पुनः एक बार फिर अन्याय करने वाले के सामने झुककर समझोता करने के लिए मजबूर है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेकर चिंतन करके न्याय के लिए मजिस्ट्रेट को भी कानून बनाए कि जनता को न्याय मिल सके ।मजबूर होकर समझौता ना करना पडे।
देश में न्यायालय के अंदर किसी भी सीधे व्यक्ति और साधारण व्यक्ति को न्याय मिलना संभव नहीं है❓️ सतना भारत की न्यायपालिका में सीधी और सरल व्यक्ति के लिए न्याय मिलना ही मुश्किल है क्योंकि हमने यह देखा है कि इतनी ज्यादा कंडीशन न्यायालय में लगी हुई है की साधारण व्यक्ति उसकी पूर्ति ही नहीं कर सकते है। हमारे न्यायपालिका में वकीलों को कोई भी गलत बात लिखने की छूट प्रदान की गई है ❓️वह कुछ भी लिख सकते है, न्यायालय द्वारा उसे पर किसी प्रकार से कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है जिस कारण से एक सही व्यक्ति के लिए न्याय मिलना मुमकिन नहीं है। हमने देखा है कि दशमी का छात्र भी कागज के आधार पर बता सकता है की क्या सही है क्या गलत है लेकिन कटनी के मजिस्ट्रेट दिलीप कुमार दुबे को समझ में नहीं आया की सही क्या है गलत किया है और गलत तत्वों पर आदेश दे देते हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि मान्यवर यह गलत आदेश है सारे दस्तावेज उसके विरुद्ध होने के बाद भी आपने उसके पक्ष में जो आदेश दिया है ऐसा क्यों किया❓️ उनका केवल कहना रहता है कि हमने आदेश दे दिया है आदेश देना हमारे अधिकार क्षेत्र का है। क्या दूगा यह मेरे अधिकार में है आपको दिक्कत हो तो आप ऊपर चले जाइए । जब इस तरह के मजिस्ट्रेट हो जिनको दसवीं की छात्रो को कागज दिखा देने के बाद भी वह भी सही फैसला कर सकता है ❓️कौन सही कौन गलत और ऐसे में मजिस्ट्रेट को समझ में ना आए कि सही कौन है गलत कौन है तो वह क्या न्याय करेंगे ❓️ उनके इस अन्याय के कारण ही मजबूर होकर ऊपरी अदालत में आदमी आवेदन लगता है और गलत ना होने के बाद भी मजबूरन लोक अदालत में जाकर सामने वाले से समझौता कर कर किसी तरह से न्यायालय के बाहर आता है क्योंकि न्यायालय उसके खिलाफ खड़ी है जो यह दिखाता है कि न्याय के खिलाफ खड़ी है ऐसे स्थिति में सामने वाले के पास कोई रास्ता नहीं बचता केवल एक रास्ता बचता है कि किसी तरह सामने वाले से गलत होने के बावजूद इस से समझौता करके किसी तरह से अपने आप को मुक्त हो। लोक अदालत की शरण में जाकर समझौता कर ले । देश के न्यायालय से न्याय ना मिलने के कारण अन्याय को शहन कर पुनः एक बार फिर अन्याय करने वाले के सामने झुककर समझोता करने के लिए मजबूर है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेकर चिंतन करके न्याय के लिए मजिस्ट्रेट को भी कानून बनाए कि जनता को न्याय मिल सके ।मजबूर होकर समझौता ना करना पडे।
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