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प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 7 = आदर्श कार्यकर्ता मधुकर राव जी भागवत:- वर्तमान सरसंघचालक डाॅक्टर मोहनरावजी भागवत के पिताजी श्री मधुकर राव भागवत का जन्म 1916 नागपुर के पास चन्द्रपुर में हुआ था। मधुकर राव जी के पिताजी श्री नारायणराव भागवन सुप्रसिद्ध वकील थे तथा जिला संघचालक भी रहे। मधुकरावजी 1929 में चन्द्रपुर में ही स्वयंसेवक बने। डाक्टर हेडगेवारजी से मधुकरावजी का निकट सम्पर्क था। आपने 1933 में तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया। 1939 में पुणे से बी.एससी की परीक्षा उतीर्ण की। 1940 में प्रचारक बन गये। 1941 में श्री एकनाथनी रानाडे के साथ कटनी महाकौशल प्रांत में प्रचारक के नाते सेे काम किया। इसके बाद उन्हें गुजरात में संघ कार्य प्रारम्भ करने हेतु भेजा गया। उन्होंने क्रमशः सूरत, बड़ोदरा तथा कर्णावती में शाखा प्रारम्भ की। मधुकररावजी 1942 से 1948 तक गुजराज के प्रांत प्रचारक रहे। 1947 में राजकोट तथा कर्णावती में हुए शिविरों में 4 हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया था। 1948 में प्रतिबंध लगने तक उनके संगठन कौशल से गुजरात में 115 नगरों में शाखायें प्रारम्भ हो गई थी तथा गुजरात से 45 प्रचारक निकले। प्रथम प्रतिबंध के समय जेल में रहे तथा प्रतिबंध हटने के बाद 1951 तक प्रान्त प्रचारक रहे। प्रचारक जीवन से लौटकर उन्होंने कानून की उपाधि ली। उस समय उन पर नागपुर नगर कार्यवाह और फिर प्रान्त कार्यवाह की जिम्मेदारी रही। चन्द्रपुर में वकालात करते समय वे जिला एवं विभाग संघचालक का भी दायित्व निभाया। मधुकरराव भागवत की पत्नि श्रीमती मालतीबाई भी राष्ट्र सेविका समिति, भगिनी समाज, वनवासी कल्याण आश्रम, जनसंघ इत्यादि में सक्रिय थीं। 1975 में आपातकाल में पति-पत्नि दोनों गिरफ्तार हुए। बड़े पुत्र मोहनराव जी भागवत अकोला में भूमिगत रहकर कार्य कर रहे थे तथा छोटे पुत्र रंजनजी ने नागपुर विद्यापीठ में सत्यागृह किया। इस प्रकार पूरा परिवार तानाशाही के विरुद्ध हुऐ संघर्ष में सहभागी हुआ। संघ कार्य के साथ-साथ चन्द्रपुर की अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी मधुकरराव जी सक्रिय थे। चन्द्रपुर में विधि महाविद्यालय की स्थापना के बाद अनेक वर्ष तक उन्होंने वहाँ निःशुल्क पढ़ाया। लोकमान्य तिलक स्मारक समिति के वे अध्यक्ष थे। 70 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए हुई कारसेवा में भाग लिया। वे हर तरह से एक आदर्श कार्यकर्ता थे। मधुकररावजी भागवत का 85 वर्ष की आयु में 10 अगस्त 2001 को स्वर्गवास हुआ। मधुकररावजी के बारे में वर्तमान देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने कहा कि वे संगठन शास्त्र के जीवन्त विश्वविद्यालय थे। इस प्रकार संघ नींव में एक ओर पुष्प विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ:- 1. तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे प्रदर्शनी भाग-एक 2. जीवन दीप जले भाग- एक लेखक - विजय कुमार संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम : ज्ञात - अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 8 = श्री हस्तीमल जी संघ के वरिष्ठ प्रचारक हस्तीमल हिरण का अधिकांश समय राजस्थान में बीता। उनका जन्म राजसमंद जिले के आमेट नामक कस्बे में रक्षाबंधन (12 अगस्त, 1946) को हुआ था। उनकी हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा आमेट में ही हुई। 1969 में उन्होंने संस्कृत में एम.ए. उत्तीर्ण किया। मेधावी छात्र होने के नाते उन्होंने सदा प्रथम श्रेणी प्राप्त की। बी.ए तक उन्हें मेरिट स्काॅलरशिप तथा एम.ए. में ‘स्वर्ण पदक’ के साथ नेशनल स्काॅलरशिप मिली। संघ से उनका संपर्क किशोरावस्था में ही हो गया था। हायर सेकेंडरी के बाद वे पढ़ने के लिए उदयपुर आ गये। इस दौरान उन्होंने संघ के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण भी प्राप्त किये तथा फिर प्रचारक बन गये। प्रचारक रहते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। जिन प्रचारकों या विस्तारकों की शिक्षा कम होती थी, उन्हें वे संघ के काम के साथ पढ़ने को भी प्रोत्साहित करते थे। शुरू के दस साल वे उदयपुर में ही रहे। इस दौरान उन पर नगर से लेकर जिला प्रचारक तक की जिम्मेदारी रही। 1974 में उन्हें जयपुर महानगर की सायं शाखाओं का प्रचारक बनाया गया। इसके बाद अगले 23 साल तक जयपुर ही उनका केन्द्र रहा। इस दौरान उन्हें ब्रह्मदेव जी, सोहनसिंह जी तथा जयदेव पाठक जैसे वरिष्ठ प्रचारकों का सान्निध्य प्राप्त हुआ। विद्यार्थी शाखाओं से उन्हें बहुत प्रेम था। छात्रावास में छात्रों के साथ कैंटीन में बैठकर भोजन-जलपान के साथ देश और धर्म की बातें करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। जयपुर में वे महानगर, विभाग, संभाग, सहप्रांत, प्रांत, सहक्षेत्र और फिर क्षेत्र प्रचारक रहे। संघ पर प्रतिबंध तथा आपातकाल के दौरान उन्होंने भूमिगत गतिविधियों तथा सत्याग्रह आदि का कुशल संचालन किया; पर एक दिन जौहरी बाजार में उन्हें विभाग प्रचारक सोहन सिंह के साथ पुलिस ने पकड़ लिया और जयपुर के केन्द्रीय कारागार में भेज दिया गया। आपातकाल में भूमिगत तंत्र को बनाये रखने में गुप्त पत्रकों की बड़ी भूमिका रही। हस्तीमल जी ने भी ‘लोकवाणी’ नामक पत्र निकाला। उस पर रामधारी सिंह की पंक्तियां लिखी रहती थीं, ‘‘समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।’’ आपातकाल के बाद देश में हर राज्य से जागरण पत्रक प्रकाशित किये गये। राजस्थान से भी पाक्षिक ‘पाथेय कण’ निकाला गया। इसके मुख्य योजनाकार हस्तीमल जी ही थे। उन्होंने इसके प्रकाशन, संपादन, प्रसार, हिसाब-किताब आदि पर स्वयं ध्यान दिया। शुरू में कुछ घाटा हुआ; पर फिर यह अपने पैरों पर खड़ा हो गया। इसका प्रसार राजस्थान के अधिकांश गांवों तक है। जयपुर से संघ साहित्य के लिए ‘ज्ञान गंगा प्रकाशन’ के निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका थी। जयपुर से प्रकाशित मासिक संस्कृत पत्रिका ‘भारती’ पर भी वे पूरा ध्यान देते थे। राजस्थान में कई बार भा.ज.पा. की सरकार रही; पर वे आवश्यक होने पर ही सलाह देते थे। जुलाई 2000 में उन्हें अ.भा.सहबौद्धिक प्रमुख की जिम्मेदारी दी गयी। 2004 से 2015 तक वे अ.भा.संपर्क प्रमुख रहे। इस प्रकार 15 साल तक उन्होंने हर प्रांत का सघन प्रवास किया। स्वास्थ्य संबंधी कारण से 2015 में काम कुछ हल्का कर उन्हें केन्द्रीय कार्यकारी मंडल का सदस्य बनाया गया। राजस्थान में उन्होंने 40 साल तक काम किया। उनके बनाये सैकड़ों कार्यकर्ता आज भी सक्रिय हैं। मकर संक्रांति (14 जनवरी, 2023) को उदयपुर में ही उनका स्वर्गवास हुआ। उन्होंने काफी समय पूर्व नेत्र और देहदान का संकल्प लिया था। अतः उनके नेत्र एवं देह आर.एन.टी.मैडिकल काॅलिज को दान की गयी। उनके नेत्रों से दो नेत्रहीनों के जीवन में प्रकाश हुआ और उनकी देह चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के शोध, अध्ययन और अभ्यास में काम आ रही है। इस प्रकार एक ओर पुष्प संघ नींव में विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 9 = आधुनिक भामाशाह जी.पुल्लारेड्डी पैसा तो बहुत लोग कमाते हैं; पर उसे समाज हित में खुले हाथ से बांटने वाले कम ही होते हैं। लम्बे समय तक विश्व हिन्दू परिषद के कोषाध्यक्ष रहे भाग्यनगर (हैदराबाद) निवासी श्री गुड़मपल्ली पुल्लारेड्डी ऐसे ही आधुनिक भामाशाह थे, जिन्होंने दो हाथों से धन कमाकर उसे हजार हाथों से बांटा। श्री पुल्लारेड्डी का जन्म 12 अगस्त, 1921 को आंध्रप्रदेश के करनूल जिले के गोकवरम नामक गांव के एक निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री हुसैन रेड्डी तथा माता श्रीमती पुलम्मा थीं। पढ़ाई में रुचि न होने के कारण जैसे-तैसे कक्षा पांच तक की शिक्षा पाकर अपने चाचा की आभूषणों की दुकान पर आठ रुपये मासिक पर काम करने लगे। दुकान के बाद ओर पैसा कमाने के लिए उन्होंने चाय, मट्ठा और कपड़ा भी बेचा। आगे चलकर उन्होंने मिठाई का काम शुरू किया। वे मिठाई की गुणवत्ता और पैकिंग पर विशेष ध्यान देते थे। इससे व्यापार इतना बढ़ा कि उन्होंने अपनी पत्नी, बेटों, दामादों आदि को भी इसी में लगा लिया। अपनी 10 दुकानों के लगभग 1,000 कर्मचारियों को वे परिवार का सदस्य ही मानते थे। उनके मन में निर्धन और निर्बल वर्ग के प्रति बहुत प्रेम था। एक बार तो दिन भर की बिक्री का पैसा उन्होंने दुकान बंद करते समय एक अनाथालय को दे दिया। आगे चलकर उन्होंने ‘जी. पुल्लारेड्डी धर्मार्थ न्यास’ बनाया, जिसके द्वारा इस समय 18 विद्यालय, महाविद्यालय, तकनीकी व मैडिकल कॉलिज, चिकित्सालय, विकलांग सेवा संस्थान, छात्रावास आदि चल रहे हैं। श्री रेड्डी ने विश्व हिन्दू परिषद को तो पर्याप्त धन दिया ही; पर धन संग्रह करने वाले लोग भी तैयार किये। मधुर व्यवहार के कारण वे विरोधियों से भी धन ले आते थे। ई.टी.वी के मालिक रामोजी राव नास्तिक थे; पर वे उनसे सवा लाख रु. और 72 वर्षीय एक उद्योगपति से 72,000 रु. ले आये। वे सभी सामाजिक कामों में सहयोग करते थे। श्री सत्यसांई बाबा के 70 वें जन्मदिवस पर वे 70,000 लड्डू बनवाकर ले गये। एक बार सूखा पड़ने पर वामपंथियों को अच्छा काम करता देख उन्होंने वहां भी 50,000 रु. दिये। हैदराबाद नगर के मध्य में उनकी एक एकड़ बहुत मूल्यवान भूमि थी। वह उन्होंने इस्कॉन वालों को मंदिर बनाने के लिए निःशुल्क दे दी। हैदराबाद में दंगे के समय कर्फ्यू लगने पर वे निर्धन बस्तियों में भोजन सामग्री बांटकर आते थे। हैदराबाद में गणेशोत्सव के समय प्रायः मुस्लिम दंगे होते थे। श्री रेड्डी ने 1972 में ‘भाग्यनगर गणेशोत्सव समिति’ बनाकर इसे भव्य रूप दे दिया। आज तो मूर्ति विसर्जन के समय 25,000 मूर्तियों की शोभायात्रा निकलती है तथा 30 लाख लोग उसमें भाग लेते हैं। सभी राजनेता इसका स्वागत करते हैं। इससे हिन्दुओं के सभी जाति, मत तथा पंथ वाले एक मंच पर आ गये। श्री पुल्लारेड्डी राममंदिर आंदोलन में बहुत सक्रिय थे। उनका जन्मस्थान करनूल मुस्लिम बहुल है। शिलान्यास तथा बाबरी ढांचे के विध्वंस के समय वे अयोध्या में ही थे। यह देखकर स्थानीय मुसलमानों ने करनूल की उनकी दुकान जला दी। इससे उन्हें लाखों रुपये की हानि हुई; पर वे पीछे नहीं हटे। वर्ष 2006 में विश्व हिन्दू परिषद को मुकदमों के लिए बहुत धन चाहिए था। उन्होंने श्री अशोक सिंहल को स्पष्ट कह दिया कि चाहे मुझे अपना मकान और दुकान बेचनी पड़े; पर परिषद को धन की कमी नहीं होने दूंगा। इसी प्रकार सक्रिय रहते हुए श्री रेड्डी ने 9 मई, 2007 को अंतिम सांस ली। इस प्रकार एक ओर पुष्प संघ नींव में विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम

on 12 August
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Airson Express news
Lawyer Betul•
on 12 August
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प्रस्तुति अशोक जी पोरवाल ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 7 = आदर्श कार्यकर्ता मधुकर राव जी भागवत:- वर्तमान सरसंघचालक डाॅक्टर मोहनरावजी भागवत के पिताजी श्री मधुकर राव भागवत का जन्म 1916 नागपुर के पास चन्द्रपुर में हुआ था। मधुकर राव जी के पिताजी श्री नारायणराव भागवन सुप्रसिद्ध वकील थे तथा जिला संघचालक भी रहे। मधुकरावजी 1929 में चन्द्रपुर में ही स्वयंसेवक बने। डाक्टर हेडगेवारजी से मधुकरावजी का निकट सम्पर्क था। आपने 1933 में तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया। 1939 में पुणे से बी.एससी की परीक्षा उतीर्ण की। 1940 में प्रचारक बन गये। 1941 में श्री एकनाथनी रानाडे के साथ कटनी महाकौशल प्रांत में प्रचारक के नाते सेे काम किया। इसके बाद उन्हें गुजरात में संघ कार्य प्रारम्भ करने हेतु भेजा गया। उन्होंने क्रमशः सूरत, बड़ोदरा तथा कर्णावती में शाखा प्रारम्भ की। मधुकररावजी 1942 से 1948 तक गुजराज के प्रांत प्रचारक रहे। 1947 में राजकोट तथा कर्णावती में हुए शिविरों में 4 हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया था। 1948 में प्रतिबंध लगने तक उनके संगठन कौशल से गुजरात में 115 नगरों में शाखायें प्रारम्भ हो गई थी तथा गुजरात से 45 प्रचारक निकले। प्रथम प्रतिबंध के समय जेल में रहे तथा प्रतिबंध हटने के बाद 1951 तक प्रान्त प्रचारक रहे। प्रचारक जीवन से लौटकर उन्होंने कानून की उपाधि ली। उस समय उन पर नागपुर नगर कार्यवाह और फिर प्रान्त कार्यवाह की जिम्मेदारी रही। चन्द्रपुर में वकालात करते समय वे जिला एवं विभाग संघचालक का भी दायित्व निभाया। मधुकरराव भागवत की पत्नि श्रीमती मालतीबाई भी राष्ट्र सेविका समिति, भगिनी समाज, वनवासी कल्याण आश्रम, जनसंघ इत्यादि में सक्रिय थीं। 1975 में आपातकाल में पति-पत्नि दोनों गिरफ्तार हुए। बड़े पुत्र मोहनराव जी भागवत अकोला में भूमिगत रहकर कार्य कर रहे थे तथा छोटे पुत्र रंजनजी ने नागपुर विद्यापीठ में सत्यागृह किया। इस प्रकार पूरा परिवार तानाशाही के विरुद्ध हुऐ संघर्ष में सहभागी हुआ। संघ कार्य के साथ-साथ चन्द्रपुर की अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी मधुकरराव जी सक्रिय थे। चन्द्रपुर में विधि महाविद्यालय की स्थापना के बाद अनेक वर्ष तक उन्होंने वहाँ निःशुल्क पढ़ाया। लोकमान्य तिलक स्मारक समिति के वे अध्यक्ष थे। 70 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए हुई कारसेवा में भाग लिया। वे हर तरह से एक आदर्श कार्यकर्ता थे। मधुकररावजी भागवत का 85 वर्ष की आयु में 10 अगस्त 2001 को स्वर्गवास हुआ। मधुकररावजी के बारे में वर्तमान देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने कहा कि वे संगठन शास्त्र के जीवन्त विश्वविद्यालय थे। इस प्रकार संघ नींव में एक ओर पुष्प विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संदर्भ:- 1. तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे प्रदर्शनी भाग-एक 2. जीवन दीप जले भाग- एक लेखक - विजय कुमार संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम : ज्ञात - अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 8 = श्री हस्तीमल जी संघ के वरिष्ठ प्रचारक हस्तीमल हिरण का अधिकांश समय राजस्थान में बीता। उनका जन्म राजसमंद जिले के आमेट नामक कस्बे में रक्षाबंधन (12 अगस्त, 1946) को हुआ था। उनकी हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा आमेट में ही हुई। 1969 में उन्होंने संस्कृत में एम.ए. उत्तीर्ण किया। मेधावी छात्र होने के नाते उन्होंने सदा प्रथम श्रेणी प्राप्त की। बी.ए तक उन्हें मेरिट स्काॅलरशिप तथा एम.ए. में ‘स्वर्ण पदक’ के साथ नेशनल स्काॅलरशिप मिली। संघ से उनका संपर्क किशोरावस्था में ही हो गया

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था। हायर सेकेंडरी के बाद वे पढ़ने के लिए उदयपुर आ गये। इस दौरान उन्होंने संघ के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण भी प्राप्त किये तथा फिर प्रचारक बन गये। प्रचारक रहते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। जिन प्रचारकों या विस्तारकों की शिक्षा कम होती थी, उन्हें वे संघ के काम के साथ पढ़ने को भी प्रोत्साहित करते थे। शुरू के दस साल वे उदयपुर में ही रहे। इस दौरान उन पर नगर से लेकर जिला प्रचारक तक की जिम्मेदारी रही। 1974 में उन्हें जयपुर महानगर की सायं शाखाओं का प्रचारक बनाया गया। इसके बाद अगले 23 साल तक जयपुर ही उनका केन्द्र रहा। इस दौरान उन्हें ब्रह्मदेव जी, सोहनसिंह जी तथा जयदेव पाठक जैसे वरिष्ठ प्रचारकों का सान्निध्य प्राप्त हुआ। विद्यार्थी शाखाओं से उन्हें बहुत प्रेम था। छात्रावास में छात्रों के साथ कैंटीन में बैठकर भोजन-जलपान के साथ देश और धर्म की बातें करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। जयपुर में वे महानगर, विभाग, संभाग, सहप्रांत, प्रांत, सहक्षेत्र और फिर क्षेत्र प्रचारक रहे। संघ पर प्रतिबंध तथा आपातकाल के दौरान उन्होंने भूमिगत गतिविधियों तथा सत्याग्रह आदि का कुशल संचालन किया; पर एक दिन जौहरी बाजार में उन्हें विभाग प्रचारक सोहन सिंह के साथ पुलिस ने पकड़ लिया और जयपुर के केन्द्रीय कारागार में भेज दिया गया। आपातकाल में भूमिगत तंत्र को बनाये रखने में गुप्त पत्रकों की बड़ी भूमिका रही। हस्तीमल जी ने भी ‘लोकवाणी’ नामक पत्र निकाला। उस पर रामधारी सिंह की पंक्तियां लिखी रहती थीं, ‘‘समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।’’ आपातकाल के बाद देश में हर राज्य से जागरण पत्रक प्रकाशित किये गये। राजस्थान से भी पाक्षिक ‘पाथेय कण’ निकाला गया। इसके मुख्य योजनाकार हस्तीमल जी ही थे। उन्होंने इसके प्रकाशन, संपादन, प्रसार, हिसाब-किताब आदि पर स्वयं ध्यान दिया। शुरू में कुछ घाटा हुआ; पर फिर यह अपने पैरों पर खड़ा हो गया। इसका प्रसार राजस्थान के अधिकांश गांवों तक है। जयपुर से संघ साहित्य के लिए ‘ज्ञान गंगा प्रकाशन’ के निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका थी। जयपुर से प्रकाशित मासिक संस्कृत पत्रिका ‘भारती’ पर भी वे पूरा ध्यान देते थे। राजस्थान में कई बार भा.ज.पा. की सरकार रही; पर वे आवश्यक होने पर ही सलाह देते थे। जुलाई 2000 में उन्हें अ.भा.सहबौद्धिक प्रमुख की जिम्मेदारी दी गयी। 2004 से 2015 तक वे अ.भा.संपर्क प्रमुख रहे। इस प्रकार 15 साल तक उन्होंने हर प्रांत का सघन प्रवास किया। स्वास्थ्य संबंधी कारण से 2015 में काम कुछ हल्का कर उन्हें केन्द्रीय कार्यकारी मंडल का सदस्य बनाया गया। राजस्थान में उन्होंने 40 साल तक काम किया। उनके बनाये सैकड़ों कार्यकर्ता आज भी सक्रिय हैं। मकर संक्रांति (14 जनवरी, 2023) को उदयपुर में ही उनका स्वर्गवास हुआ। उन्होंने काफी समय पूर्व नेत्र और देहदान का संकल्प लिया था। अतः उनके नेत्र एवं देह आर.एन.टी.मैडिकल काॅलिज को दान की गयी। उनके नेत्रों से दो नेत्रहीनों के जीवन में प्रकाश हुआ और उनकी देह चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के शोध, अध्ययन और अभ्यास में काम आ रही है। इस प्रकार एक ओर पुष्प संघ नींव में विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम ज्ञात-अज्ञात संघ नींव में विसर्जित पुष्प श्रृंखला 9 = आधुनिक भामाशाह जी.पुल्लारेड्डी पैसा तो बहुत लोग कमाते हैं; पर उसे समाज हित में खुले हाथ से बांटने वाले कम ही

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होते हैं। लम्बे समय तक विश्व हिन्दू परिषद के कोषाध्यक्ष रहे भाग्यनगर (हैदराबाद) निवासी श्री गुड़मपल्ली पुल्लारेड्डी ऐसे ही आधुनिक भामाशाह थे, जिन्होंने दो हाथों से धन कमाकर उसे हजार हाथों से बांटा। श्री पुल्लारेड्डी का जन्म 12 अगस्त, 1921 को आंध्रप्रदेश के करनूल जिले के गोकवरम नामक गांव के एक निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री हुसैन रेड्डी तथा माता श्रीमती पुलम्मा थीं। पढ़ाई में रुचि न होने के कारण जैसे-तैसे कक्षा पांच तक की शिक्षा पाकर अपने चाचा की आभूषणों की दुकान पर आठ रुपये मासिक पर काम करने लगे। दुकान के बाद ओर पैसा कमाने के लिए उन्होंने चाय, मट्ठा और कपड़ा भी बेचा। आगे चलकर उन्होंने मिठाई का काम शुरू किया। वे मिठाई की गुणवत्ता और पैकिंग पर विशेष ध्यान देते थे। इससे व्यापार इतना बढ़ा कि उन्होंने अपनी पत्नी, बेटों, दामादों आदि को भी इसी में लगा लिया। अपनी 10 दुकानों के लगभग 1,000 कर्मचारियों को वे परिवार का सदस्य ही मानते थे। उनके मन में निर्धन और निर्बल वर्ग के प्रति बहुत प्रेम था। एक बार तो दिन भर की बिक्री का पैसा उन्होंने दुकान बंद करते समय एक अनाथालय को दे दिया। आगे चलकर उन्होंने ‘जी. पुल्लारेड्डी धर्मार्थ न्यास’ बनाया, जिसके द्वारा इस समय 18 विद्यालय, महाविद्यालय, तकनीकी व मैडिकल कॉलिज, चिकित्सालय, विकलांग सेवा संस्थान, छात्रावास आदि चल रहे हैं। श्री रेड्डी ने विश्व हिन्दू परिषद को तो पर्याप्त धन दिया ही; पर धन संग्रह करने वाले लोग भी तैयार किये। मधुर व्यवहार के कारण वे विरोधियों से भी धन ले आते थे। ई.टी.वी के मालिक रामोजी राव नास्तिक थे; पर वे उनसे सवा लाख रु. और 72 वर्षीय एक उद्योगपति से 72,000 रु. ले आये। वे सभी सामाजिक कामों में सहयोग करते थे। श्री सत्यसांई बाबा के 70 वें जन्मदिवस पर वे 70,000 लड्डू बनवाकर ले गये। एक बार सूखा पड़ने पर वामपंथियों को अच्छा काम करता देख उन्होंने वहां भी 50,000 रु. दिये। हैदराबाद नगर के मध्य में उनकी एक एकड़ बहुत मूल्यवान भूमि थी। वह उन्होंने इस्कॉन वालों को मंदिर बनाने के लिए निःशुल्क दे दी। हैदराबाद में दंगे के समय कर्फ्यू लगने पर वे निर्धन बस्तियों में भोजन सामग्री बांटकर आते थे। हैदराबाद में गणेशोत्सव के समय प्रायः मुस्लिम दंगे होते थे। श्री रेड्डी ने 1972 में ‘भाग्यनगर गणेशोत्सव समिति’ बनाकर इसे भव्य रूप दे दिया। आज तो मूर्ति विसर्जन के समय 25,000 मूर्तियों की शोभायात्रा निकलती है तथा 30 लाख लोग उसमें भाग लेते हैं। सभी राजनेता इसका स्वागत करते हैं। इससे हिन्दुओं के सभी जाति, मत तथा पंथ वाले एक मंच पर आ गये। श्री पुल्लारेड्डी राममंदिर आंदोलन में बहुत सक्रिय थे। उनका जन्मस्थान करनूल मुस्लिम बहुल है। शिलान्यास तथा बाबरी ढांचे के विध्वंस के समय वे अयोध्या में ही थे। यह देखकर स्थानीय मुसलमानों ने करनूल की उनकी दुकान जला दी। इससे उन्हें लाखों रुपये की हानि हुई; पर वे पीछे नहीं हटे। वर्ष 2006 में विश्व हिन्दू परिषद को मुकदमों के लिए बहुत धन चाहिए था। उन्होंने श्री अशोक सिंहल को स्पष्ट कह दिया कि चाहे मुझे अपना मकान और दुकान बेचनी पड़े; पर परिषद को धन की कमी नहीं होने दूंगा। इसी प्रकार सक्रिय रहते हुए श्री रेड्डी ने 9 मई, 2007 को अंतिम सांस ली। इस प्रकार एक ओर पुष्प संघ नींव में विसर्जित हो गया। ।। भारत माता की जय।। संकलन - स्वयंसेवक एवं टीम

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    हालात शोभापुर के ।।।।
नायरा पेट्रोल पंप ।।।
    user_पंडित नीतेश कुमार मिश्रा साधना न्यूज़ संवाददाता
    पंडित नीतेश कुमार मिश्रा साधना न्यूज़ संवाददाता
    Journalist Narmadapuram•
    23 hrs ago
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