थराली में एक दिन पूर्व आई आपदा में लोगों ने मौके पर बनाए गए वीडियो में बहुत से लोगों को सीटियां बजाते सुना।कई लोग इसका मतलब नहीं समझ पाए। दरअसल उत्तराखंड और अन्य पर्वतीय राज्यों में जहां मोबाइल नेटवर्क और साइरन सिस्टम अभी विकसित नहीं है, वहां आज भी सीटी एक आसान लेकिन असरदार चेतावनी माध्यम है। थराली में भी लोगों ने इसका इस्तेमाल किया लेकिन पानी की गति और साथ बहकर आ रहे बड़े-बड़े पत्थरों के शोर में ऊंचाई से आ रही सीटियों की आवाज लोग नहीं सुन पाए। जिन्होंने सुनी भी उन्हें इतना वक्त ही नहीं मिल सका कि वे प्रभावित क्षेत्र से निकल पाते। गांवों में आज भी जंगली जानवरों के आने से लेकर भूस्खलन, बादल फटने या अन्य आपदाओं की स्थिति में ग्रामीण एक-दूसरे को सीटी बजाकर , शोर मचाकर ही अलर्ट करते हैं। धराली से सामने आए वीडियो में साफ दिख रहा है कि कुछ लोग घटना को रिकॉर्ड कर रहे थे, जबकि अन्य लोग सीटी बजाकर गांववालों को सावधान कर रहे थे। लेकिन कुछ ही क्षणों में तबाही ने सब कुछ खत्म कर दिया। गावों में आज के संचार क्रांति युग में भी ग्रामीण सीटी, डुगडुगी, मुनादी जैसे परंपरागत तरीकों पर ही अधिक भरोसा करते हैं हालांकि अब कम्युनिटी रेडियो जैसे साधनों का भी विकास हुआ है। लेकिन ग्रामीणों को अब भी सीटी और अन्य पारंपरिक चेतावनी माध्यम ही अधिक सुविधाजनक लगते हैं। (-कुमार दुष्यंत) ________________
थराली में एक दिन पूर्व आई आपदा में लोगों ने मौके पर बनाए गए वीडियो में बहुत से लोगों को सीटियां बजाते सुना।कई लोग इसका मतलब नहीं समझ पाए। दरअसल उत्तराखंड और अन्य पर्वतीय राज्यों में जहां मोबाइल नेटवर्क और साइरन सिस्टम अभी विकसित नहीं है, वहां आज भी सीटी एक आसान लेकिन असरदार चेतावनी माध्यम है। थराली में भी लोगों ने इसका इस्तेमाल किया लेकिन पानी की गति और साथ बहकर आ रहे बड़े-बड़े पत्थरों के शोर में ऊंचाई से आ रही सीटियों की आवाज लोग नहीं सुन पाए। जिन्होंने सुनी भी उन्हें इतना वक्त ही नहीं मिल सका कि वे प्रभावित क्षेत्र से निकल पाते। गांवों में आज भी जंगली जानवरों के आने से लेकर भूस्खलन, बादल फटने या अन्य आपदाओं की स्थिति में ग्रामीण एक-दूसरे को सीटी बजाकर , शोर मचाकर ही अलर्ट करते हैं। धराली से सामने आए वीडियो में साफ दिख रहा है कि कुछ लोग घटना को रिकॉर्ड कर रहे थे, जबकि अन्य लोग सीटी बजाकर गांववालों को सावधान कर रहे थे। लेकिन कुछ ही क्षणों में तबाही ने सब कुछ खत्म कर दिया। गावों में आज के संचार क्रांति युग में भी ग्रामीण सीटी, डुगडुगी, मुनादी जैसे परंपरागत तरीकों पर ही अधिक भरोसा करते हैं हालांकि अब कम्युनिटी रेडियो जैसे साधनों का भी विकास हुआ है। लेकिन ग्रामीणों को अब भी सीटी और अन्य पारंपरिक चेतावनी माध्यम ही अधिक सुविधाजनक लगते हैं। (-कुमार दुष्यंत) ________________
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