श्रावकगण और साधुगण धर्म के दो पहलू हैं --मुनिश्री निष्काम सागर श्रावकगण और साधुगण धर्म के दो पहलू हैं। भगवान और गुरु की भक्ति का फल मिलता है। गुरु की भक्ति जो पागलों की तरह करते हैं उन पर गुरु की कृपा बरसती है बारिश की तरह। सफलता नहीं मिलती है तो व्यक्ति हताश हो जाता है। गुरु चरणों में सफलता प्राप्त होगी। व्यक्ति को कभी भी हताश नहीं होना चाहिए गुरु हमें भगवान से परिचित कराते हैं और भगवान से जुड़ने का मार्ग बताते हैं। भगवान के स्वरूप से अवगत कराते हैं। गुरु बड़े की गुरु की वाणी देव, शास्त्र और गुरु का अस्तित्व पता चलता है। गुरु के आचरण, वचन के माध्यम से भगवान से जुड़ते हैं। गुरु बीज का काम करते हैं। जिस प्रकार मां अपने बच्चे का लालन-पालन कर जीवन संवारती है ठीक उसी प्रकार गुरु मां की तरह आपके जीवन को संवारते हैं। जब आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के फोटो का इतना अधिक प्रभाव तो प्रत्यक्ष का कितना महत्व व प्रभाव रहा होगा। भुज में भयंकर भूकंप आने के बाद भी आचार्य भगवंत के भक्त का आफिस व भवन सुरक्षित रहा, क्योंकि दीवार के चारों तरफ आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के फोटो लगे हुए थे। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहा पचास साल पहले विधान करना नहीं जानते थे, आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने बड़े -बड़े पंडितों को बताया। उसके बाद विधान होने लगें। प्रभु भक्ति से आत्मा का कल्याण निश्चित है।श्रद्धान का नाम ही सम्यकदर्शन है आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने यह बताया है। किसी मूर्ति के अगर अंग खंडित हैं तो आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते हैं कि वह मूर्ति खंडित है और ऐसी मूर्तियां पूज्यनीय नहीं होती है। धर्म गुरु के फोटो हर मंदिर में लगाने चाहिए। सभी की मान्यताएं एक जैसी नहीं। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मन भेद नहीं होना चाहिए। कभी भी मनभेद नहीं हो। प्रभु के साथ गुरु चरणों में भी आस्था बनाएं रखें। समाज के गरीब वर्गों के लिए आश्रय दान करें। मुनिश्री ने कहा 24 नवंबर को चारों मुनिराज का पिच्छिका परिवर्तन होगी। पिच्छिका का जुलूस नेमिनगर सांई कॉलोनी से समाज के बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए आप लोग दिव्य घोष के साथ निकालें। बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। समाज से युवा पीढ़ी को जोड़े।
श्रावकगण और साधुगण धर्म के दो पहलू हैं --मुनिश्री निष्काम सागर श्रावकगण और साधुगण धर्म के दो पहलू हैं। भगवान और गुरु की भक्ति का फल मिलता है। गुरु की भक्ति जो पागलों की तरह करते हैं उन पर गुरु की कृपा बरसती है बारिश की तरह। सफलता नहीं मिलती है तो व्यक्ति हताश हो जाता है। गुरु चरणों में सफलता प्राप्त होगी। व्यक्ति को कभी भी हताश नहीं होना चाहिए गुरु हमें भगवान से परिचित कराते हैं और भगवान से जुड़ने का मार्ग बताते हैं। भगवान के स्वरूप से अवगत कराते हैं। गुरु बड़े की गुरु की वाणी देव, शास्त्र और गुरु का अस्तित्व पता चलता है। गुरु के आचरण, वचन के माध्यम से भगवान से जुड़ते हैं। गुरु बीज का काम करते हैं। जिस प्रकार मां अपने बच्चे का लालन-पालन कर जीवन संवारती है ठीक उसी प्रकार गुरु मां की तरह आपके जीवन को संवारते हैं। जब आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के फोटो का इतना अधिक प्रभाव तो प्रत्यक्ष का कितना महत्व व प्रभाव रहा होगा। भुज में भयंकर भूकंप आने के बाद भी आचार्य भगवंत के भक्त का आफिस व भवन सुरक्षित रहा, क्योंकि दीवार के चारों तरफ आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के फोटो लगे हुए थे। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहा पचास साल पहले विधान करना नहीं जानते थे, आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने बड़े -बड़े पंडितों को बताया। उसके बाद विधान होने लगें। प्रभु भक्ति से आत्मा का कल्याण निश्चित है।श्रद्धान का नाम ही सम्यकदर्शन है आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने यह बताया है। किसी मूर्ति के अगर अंग खंडित हैं तो आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते हैं कि वह मूर्ति खंडित है और ऐसी मूर्तियां पूज्यनीय नहीं होती है। धर्म गुरु के फोटो हर मंदिर में लगाने चाहिए। सभी की मान्यताएं एक जैसी नहीं। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मन भेद नहीं होना चाहिए। कभी भी मनभेद नहीं हो। प्रभु के साथ गुरु चरणों में भी आस्था बनाएं रखें। समाज के गरीब वर्गों के लिए आश्रय दान करें। मुनिश्री ने कहा 24 नवंबर को चारों मुनिराज का पिच्छिका परिवर्तन होगी। पिच्छिका का जुलूस नेमिनगर सांई कॉलोनी से समाज के बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए आप लोग दिव्य घोष के साथ निकालें। बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। समाज से युवा पीढ़ी को जोड़े।
- पंडित प्रदीप जी मिश्रा सीहोर वाले, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं, हर हर महादेव, शिवलिंग1
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