*छोटे से छोटा नियम भी आगे चलकर महाव्रती बना देता है* । मुनिश्री सानंद सागर बच्चों को ऐसे संस्कार देवें कि बड़ा होकर आपको पीठ नहीं दिखाएं -- मुनिश्री सजग सागर विधानाचार्य पं. प्रदीप शास्त्री बीना को समाज ने सम्मानित कर प्रशस्ति पत्र सौंपा, लोक कल्याण महामंडल विधान का आज हुआ समापन प्रवचन वात्सल्य भाव के अर्ध्य चढ़ाने के साथ हो रहा है। तीर्थंकर भगवान ने वात्सल्य भाव रखकर, उपकार कर वाणी खिराई और सभी के आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। व्रती एक-दूसरे पर वात्सल्य भाव रखें और श्रावकगण भी। पं. प्रदीप शास्त्री बीना ने बहुत शानदार तरीके से वात्सल्य भाव रखकर विधान कराया। मां अपने बेटे के प्रति वात्सल्य भाव रखती है और बेटा विवाह के पश्चात अपने माता-पिता के प्रति समर्पण और वात्सल्य भाव नहीं रखते हैं, यह गलत है। बेटा बाहर रहता है, माता- पिता के सुख -दुःख में सहभागी नहीं होता है। मन में त्याग -तपस्या के भाव आने पर अनंत सुख को प्राप्त करने के लिए मार्ग पर अग्रसर होता है। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर सोलह कारण पर्व के दौरान आयोजित लोक कल्याण महामंडल विधान के दौरान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सजग सागरजी एवं सानंद सागर मुनिराज ने आशीष वचन देते हुए कही। मुनिश्री सजग सागर मुनिराज ने कहा आपके संस्कारों में कोई कमी रही तो घर में वात्सल्य की कमी, संस्कार अच्छे देते हैं तो परिवार में वात्सल्य भाव रहेगा। बेटा-बेटी को पाठशाला नहीं भेजते हैं, मुनियों को आहार नहीं दिलवाते, मंदिर नहीं जाते तो वे संस्कारी कहा से होगा। मां अपना वात्सल्य भाव बच्चों पर बनाएं रखें। मुनियों की निंदा करने वाले को नर्क जाना होगा। गुरु का शिष्य के प्रति वात्सल्य भाव रहता है। मिथ्या दृष्टि में वात्सल्य भाव नहीं रहता है।वहीं मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने प्रवचन वात्सल्य भाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस विधान के माध्यम से सभी ने पुण्याणुवंदी पुण्य किया। वह सभी आशिर्वाद के पात्र हैं। कोई भी अनुष्ठान हो वह आत्मा को परमात्मा बनाने का काम करता हैं। इस अनंत संसार से पार होने के लिए व्रती बनना होगा। एक -दूसरे के सहयोग से ही मोक्ष मार्ग पर चलकर धर्म की प्रभावना करें। एक दूसरे को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाएं, वहीं वात्सल्य भाव है। मुनिश्री सानंद सागर जी ने कहा सम्यकदृष्टि को देखकर ह्रदय कमल खिल जाए। धर्म -ध्वजा को आगे ले जाने में व्रती और श्रावक दोनों जरुरी है। ऐसा कोई काम नहीं हो जिससे धर्म की अप्रभावना हो। वात्सल्य भाव रहेगा तो अप्रभावना नहीं होगी। समाज में काफी वात्सल्य है, नये व्यक्ति को भी अपना बना लेते हैं। कहीं भी जाएं वहां का समाज आपको अपना समझें, वह आपका मन में वात्सल्य हो। गाय जैसा वात्सल्य भाव रखें, वह अपने बछड़े को बिना अपेक्षा के दुलारती है। आप लोगों में बच्चों से अपेक्षा रखते हैं और जहां अपेक्षा रखते हैं वहां उपेक्षा निश्चित होगी। माता- पिता का कर्ज महाव्रती बनकर उतार सकते हैं। जो माता - पिता के साथ नहीं वह समाज का क्या साथ देगा। जिससे कषाय है उससे क्षमा मांगना ही वात्सल्य भाव है। लेकिन हो यह रहा है कि जिसके प्रति कोई कषाय भाव नहीं उससे गले लगकर क्षमा मांगते हैं और जिससे विवाद है, उससे क्षमा नहीं मांगते हैं। पाप से घृणा करें, पापी से नहीं, पापी से पाप का त्याग कराएं। इंसान ही भगवान बनता है। शत्रु है तो उसके प्रति भी वात्सल्य भाव रखें, कभी भी बुरा नहीं सोचें।एक होकर धर्म ध्वजा को आगे बढ़ाने का काम करें। बिना वात्सल्य के मोक्ष की प्राप्ति नहीं। पर्यूषण महापर्व की तैयारियां जोरों पर देश- प्रदेश सहित नगर व क्षेत्र में श्री दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण महापर्व पर्यूषण पर्वाधिराज 28 अगस्त से प्रारंभ हो रहे हैं। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय मंदिर किला पर मुनिश्री सजग सागर जी एवं सानंद सागर जी के परम सानिध्य में तथा अरिहंत पुरम में मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज के परम सानिध्य में यह पर्व उत्साह और उमंग पूर्वक मनाया जाएगा। प्रतिवर्ष अनुसार पर्यूषण महापर्व के पहले भगवान की सभी प्रतिमाओं का मूर्ति मंजन किया जाता है। इस साल 24 अगस्त को दोपहर1 बजे किला मंदिर एवं श्री चंद्र प्रभु मंदिर गंज एवं अरिहंत पुरम अलीपुर में मूर्ति मंजन समाज के श्रावकों द्वारा किया जाएगा। मंदिरों की समिति ने सभी से मूर्ति मंजन करने समय से पहले पधारकर पुण्य अर्जित करने का आग्रह किया।
*छोटे से छोटा नियम भी आगे चलकर महाव्रती बना देता है* । मुनिश्री सानंद सागर बच्चों को ऐसे संस्कार देवें कि बड़ा होकर आपको पीठ नहीं दिखाएं -- मुनिश्री सजग सागर विधानाचार्य पं. प्रदीप शास्त्री बीना को समाज ने सम्मानित कर प्रशस्ति पत्र सौंपा, लोक कल्याण महामंडल विधान का आज हुआ समापन प्रवचन वात्सल्य भाव के अर्ध्य चढ़ाने के साथ हो रहा है। तीर्थंकर भगवान ने वात्सल्य भाव रखकर, उपकार कर वाणी खिराई और सभी के आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। व्रती एक-दूसरे पर वात्सल्य भाव रखें और श्रावकगण भी। पं. प्रदीप शास्त्री बीना ने बहुत शानदार तरीके से वात्सल्य भाव रखकर विधान कराया। मां अपने बेटे के प्रति वात्सल्य भाव रखती है और बेटा विवाह के पश्चात अपने माता-पिता के प्रति समर्पण और वात्सल्य भाव नहीं रखते हैं, यह गलत है। बेटा बाहर रहता है, माता- पिता के सुख -दुःख में सहभागी नहीं होता है। मन
में त्याग -तपस्या के भाव आने पर अनंत सुख को प्राप्त करने के लिए मार्ग पर अग्रसर होता है। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर सोलह कारण पर्व के दौरान आयोजित लोक कल्याण महामंडल विधान के दौरान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सजग सागरजी एवं सानंद सागर मुनिराज ने आशीष वचन देते हुए कही। मुनिश्री सजग सागर मुनिराज ने कहा आपके संस्कारों में कोई कमी रही तो घर में वात्सल्य की कमी, संस्कार अच्छे देते हैं तो परिवार में वात्सल्य भाव रहेगा। बेटा-बेटी को पाठशाला नहीं भेजते हैं, मुनियों को आहार नहीं दिलवाते, मंदिर नहीं जाते तो वे संस्कारी कहा से होगा। मां अपना वात्सल्य भाव बच्चों पर बनाएं रखें। मुनियों की निंदा करने वाले को नर्क जाना होगा। गुरु का शिष्य के प्रति वात्सल्य भाव रहता है। मिथ्या दृष्टि में वात्सल्य भाव नहीं रहता है।वहीं मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने प्रवचन वात्सल्य भाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस विधान के माध्यम से सभी ने पुण्याणुवंदी पुण्य किया। वह सभी आशिर्वाद के पात्र हैं। कोई भी अनुष्ठान हो वह आत्मा को परमात्मा बनाने का काम करता हैं। इस
अनंत संसार से पार होने के लिए व्रती बनना होगा। एक -दूसरे के सहयोग से ही मोक्ष मार्ग पर चलकर धर्म की प्रभावना करें। एक दूसरे को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाएं, वहीं वात्सल्य भाव है। मुनिश्री सानंद सागर जी ने कहा सम्यकदृष्टि को देखकर ह्रदय कमल खिल जाए। धर्म -ध्वजा को आगे ले जाने में व्रती और श्रावक दोनों जरुरी है। ऐसा कोई काम नहीं हो जिससे धर्म की अप्रभावना हो। वात्सल्य भाव रहेगा तो अप्रभावना नहीं होगी। समाज में काफी वात्सल्य है, नये व्यक्ति को भी अपना बना लेते हैं। कहीं भी जाएं वहां का समाज आपको अपना समझें, वह आपका मन में वात्सल्य हो। गाय जैसा वात्सल्य भाव रखें, वह अपने बछड़े को बिना अपेक्षा के दुलारती है। आप लोगों में बच्चों से अपेक्षा रखते हैं और जहां अपेक्षा रखते हैं वहां उपेक्षा निश्चित होगी। माता- पिता का कर्ज महाव्रती बनकर उतार सकते हैं। जो माता - पिता के साथ नहीं वह समाज का क्या साथ देगा। जिससे कषाय है उससे क्षमा मांगना ही वात्सल्य भाव है। लेकिन हो यह रहा है कि जिसके प्रति कोई कषाय भाव नहीं उससे गले लगकर क्षमा मांगते हैं और
जिससे विवाद है, उससे क्षमा नहीं मांगते हैं। पाप से घृणा करें, पापी से नहीं, पापी से पाप का त्याग कराएं। इंसान ही भगवान बनता है। शत्रु है तो उसके प्रति भी वात्सल्य भाव रखें, कभी भी बुरा नहीं सोचें।एक होकर धर्म ध्वजा को आगे बढ़ाने का काम करें। बिना वात्सल्य के मोक्ष की प्राप्ति नहीं। पर्यूषण महापर्व की तैयारियां जोरों पर देश- प्रदेश सहित नगर व क्षेत्र में श्री दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण महापर्व पर्यूषण पर्वाधिराज 28 अगस्त से प्रारंभ हो रहे हैं। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय मंदिर किला पर मुनिश्री सजग सागर जी एवं सानंद सागर जी के परम सानिध्य में तथा अरिहंत पुरम में मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज के परम सानिध्य में यह पर्व उत्साह और उमंग पूर्वक मनाया जाएगा। प्रतिवर्ष अनुसार पर्यूषण महापर्व के पहले भगवान की सभी प्रतिमाओं का मूर्ति मंजन किया जाता है। इस साल 24 अगस्त को दोपहर1 बजे किला मंदिर एवं श्री चंद्र प्रभु मंदिर गंज एवं अरिहंत पुरम अलीपुर में मूर्ति मंजन समाज के श्रावकों द्वारा किया जाएगा। मंदिरों की समिति ने सभी से मूर्ति मंजन करने समय से पहले पधारकर पुण्य अर्जित करने का आग्रह किया।
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- सावलमेंढा में भव्य हिन्दू सम्मेलन, मातृ शक्ति का जोरदार उत्साह भैंसदेही/मनीष राठौर ग्राम सवालमेड़ा में शोभा यात्रा के साथ धूमधाम से प्रारंभसंघ शताब्दी वर्ष के अवसर पर भैंसदेही खंड के सावलमेंढा में सावलमेंढा एवं पलासपानी मंडल का संयुक्त हिन्दू सम्मेलन रविवार को स्थानीय हाईस्कूल खेल मैदान पर आयोजित हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ श्री गणेश मंदिर से पूजा-अर्चना और भव्य शोभा यात्रा के साथ किया गया। यात्रा में 121 कलश लेकर भगवा साफा बांधे बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं, जबकि आसपास के ग्रामों से भी 11-11 कलश ले 100 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया।ग्राम भ्रमण और पूजा-अर्चनाशोभा यात्रा का नेतृत्व क्षेत्रीय भगत-भुमका एवं पुजारी ने किया। यात्रा के दौरान सम्पूर्ण ग्राम में ग्राम देवता, जेरी, हनुमान मंदिर, शारदा मंदिर, शिव मंदिर, शीतला माता एवं जैन मंदिर में पूजा-अर्चना की गई। सावलमेंढा-पलासपानी क्षेत्र के 18 गांवों से 2 हजार से अधिक लोग सम्मिलित हुए। स्थानीय दुकानदारों ने स्वेच्छा से प्रतिष्ठान बंद कर सम्मेलन का स्वागत किया।मुख्य कार्यक्रम और संबोधनग्राम भ्रमण के बाद शोभा यात्रा हाईस्कूल खेल मैदान पहुंची। मुख्य अतिथि महाराज बबलू सुजाने, महिला अतिथि प्राचार्य श्रीमती मंजुला बौरासी एवं मुख्य वक्ता मध्यभारत प्रांत सह-व्यवस्था प्रमुख रामवीरसिंह कौरव ने भारत माता के चित्र की पूजा-अर्चना एवं सामूहिक 'वंदे मातरम' गायन से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मुख्य वक्ता ने संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया में हिन्दू से अधिक सहिष्णु कोई नहीं। हम ही 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की बात करते हैं। जाति-समाज, मत-पंथ या देवी-देवता कुछ भी हो, हिन्दू होने के नाते सब एक हैं।सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और सम्मानकार्यक्रम में भगत-भुमका सम्मान के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। हाईस्कूल, कन्या आश्रम, एनपीएस स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर की छात्राओं ने जनजातीय, धार्मिक एवं देशभक्ति गीतों पर सुंदर नृत्य प्रस्तुत किए।समापन और सामूहिक भोजकार्यक्रम आभार प्रदर्शन के साथ समाप्त हुआ। 3 हजार से अधिक समाजजनों ने सामूहिक समरसता भोज ग्रहण किया1