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मंगलौर केवल कन्या पाठशाला में मां सरस्वती मूर्ति स्थापना दिवस पर छात्राओं ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए
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श्याम सुन्दर
मंगलौर केवल कन्या पाठशाला में मां सरस्वती मूर्ति स्थापना दिवस पर छात्राओं ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए
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- Post by Rajeev Singh1
- दोस्तों! आज हम बात करने जा रहे हैं स्योहारा की एक ऐसी हस्ती के बारे मैं की जिसकी वजह से स्योहारा की बात अगर पाकिस्तान मैं भी की जाए तो वहाँ के लोग भी सीधे स्योहारा न कह कर स्योहारा शरीफ कहते हैं। जी हाँ दोस्तों हम बात करने जा रहे हैं मुजाहिदे मिल्लत आली जनाब मौलाना हिफ़्ज़-उर-रहमान स्योहारवी साहब की। एक ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और इस्लामी विद्वान, जिन्होंने ना सिर्फ मुस्लिम समुदाय बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वही आली जनाब मौलाना हिफ़्ज़-उर-रहमान साहब, जिनकी गिनती भारत के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली व्यक्तित्वों में होती है। तो चलिए, जानते हैं उनके जीवन और उनके योगदान की पूरी कहानी।" ________________________________________ " सन 1901 को उत्तर प्रदेश के एक ज़िले बिजनौर के छोटे से क़स्बे स्योहारा और हाजी शम्सुद्दीन को अल्लाह तआला ने मौलाना की शक्ल मैं एक तोहफा दिया। आली जनाब मौलाना हिफ़्ज़-उर-रहमान साहब की प्रारंभिक शिक्षा उनके घर पर ही हुई। इसके बाद उन्हें मुरादाबाद के प्रसिद्ध मदरसा शाही में दाखिला दिलाया गया। उन्होंने दार्स-ए-निज़ामी की पारंपरिक शिक्षा को मदरसा फैज़-ए-आम, से पूरा किया। मदरसा फैज़-ए-आम में उन्होंने अब्दुल गफूर स्योहारवी, अहमद चिश्ती और सैय्यद आफताब अली जैसे प्रसिद्ध विद्वानों से शिक्षा प्राप्त की। सन् 1922 में, वे दारुल उलूम देवबंद गए, जहां उन्होंने अनवर शाह कश्मीरी जैसे महान विद्वान के मार्गदर्शन में अहादीस का विशेष अध्ययन किया। उन्होंने सन् 1923 (1342 हिजरी) में दारुल उलूम देवबंद से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। ________________________________________ "1919 में, सिर्फ 18 साल की उम्र में, आली जनाब मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान ने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया और रोलेंट एक्ट के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। 1920 में महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद, 1930 में गांधी जी के दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल भी जाना पड़ा। लेकिन मौलाना ने कभी अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके।" ________________________________________ "1940 में, जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की, तो आली जनाब मौलाना हिफ़्ज़ुर रहमान ने इसका जमकर विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की एकता और अखंडता ही सबसे महत्वपूर्ण है। वह मानते थे कि भारत में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय साथ-साथ रह सकते हैं और मिलकर एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।"1
- Good news A list of 100 influential Muslim personalities in India has been prepared with great effort, in which dozens of the top scholars belong to the "true embodiment of Ahle Sunnah wal Jamaat, the true interpreters of Hanafis, the scholars of Haq Ulema Deoband", Masha Allah. A few pictures are also visible. .. Write your opinion in the comment box1
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