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सही दिशा में कदम बढ़ाने पर ही मंजिल प्राप्त होगी --मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज व्यक्ति को अपनी आत्मा पर दया नहीं आ रही है। सम्यक दर्शन पर विचार कर लोगे तो आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। संसार से पार होने के लिए प्रतिमा लेना होगी। प्रतिमा लेने का मतलब सही दिशा में कदम बढ़ाना, तभी मंजिल भी प्राप्त होगी। आचार्य समंतभद्र स्वामी ने रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ में सम्यक दृष्टि को धर्मात्मा कहा है, मिथ्या दृष्टि को नहीं। धर्मात्मा बन गए तो पापात्मा मत बनना। सम्यक दर्शन हो गया लेकिन व्रत लेने के भाव नहीं। रावण में भगवान के लिए अपार भक्ति थी, लेकिन संयम लेने के भाव नहीं, इसलिए वह नर्क में गये है।पाप कर्म का क्षय होने पर रावण का जीव जैन धर्म के तीर्थंकर बनेंगे। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ पर आशीष वचन देते हुए कही।आपने कहां मिथ्या दृष्टि विपरीत मार्ग को चुन कर सभी को मानता है। सम्यकदृष्टि जीव समीचीन मार्ग को चुनकर मोक्ष मार्ग प्रशस्त करते हैं। मुनिश्री ने कहा सम्यकदृष्टि को धर्मात्मा कहा है। ज्ञानी हमेशा अच्छा ही करते हैं। सम्यकदृष्टि संसार से पार होने का काम करते हैं। प्रतिमा लेने वाले सही दिशा में कदम उठाते हैं, प्रतिमा लेने के लिए अपने भाव बना कर आगे आना चाहिए। बिना सही कदम उठाए मंजिल की प्राप्ति नहीं होती है।आगम के अनुसार काम करें।जो प्रतिमा लेकर पालन नहीं कर पा रहे हैं उन्हें दूसरे लोग सहयोग करें। समाधि के समय 48 मुनिराज होना चाहिए, नहीं मिलते हैं तो एक मुनिराज से ही काम चलाएं, वे भी नहीं मिले तो व्रती से समाधि मरण करवा सकते हैं। माता-पिता का कर्ज संस्कार होने पर निर्दोष समाधि कराकर चुका सकते हैं। रावण सम्यक दृष्टि भगवान की अपार भक्ति करता था और भविष्य में तीर्थंकर बनेंगे। संगति का असर होता है जैसी संगति वैसी गति। व्रतियों की यथा योग्य सम्मान करें, उपेक्षा नहीं करें। असंख्यात कर्मों की निर्जरा होती है। आगम में सम्यक दृष्टि मनमर्जी करते हैं तो वह उसके लिए धर्म का अपमान करना है। रात में खा रहें हों तो उन्हें पापाणुवंद का वंध होगा। त्याग के साथ मरण पर सद्गति प्राप्त होगी। मर्यादा से रहित वस्तु आ जाएं तो वह अभक्ष है और वह खाने योग्य नहीं। दुर्गति में नहीं जाना है तो अभक्ष पदार्थ का सेवन नहीं करें।कुल के नियमों का पालन करें।कुलाचार का पालन करने वाले देव गति में जाते हैं।जैसा खाएं अन्न वैसा होए मन, और जैसा पीए पानी वैसी होगी वाणी। आत्मा के गुण कैसे प्रकट होंगे, जब आप व्रती होंगे। सम्यकदृष्टि जीव धर्म और धर्मात्मा की निंदा से बचता है। भला करने वाले की कभी भी निंदा नहीं करें। मिथ्या दृष्टि शुद्ध मार्ग नहीं अपनायेगा, सम्यक दृष्टि हमेशा शुद्ध मार्ग अपनायेगा। त्याग में बहुत बड़ी शक्ति है।

on 16 September
user_राजेन्द्र गंगवाल
राजेन्द्र गंगवाल
Reporter Ashta, Sehore•
on 16 September
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सही दिशा में कदम बढ़ाने पर ही मंजिल प्राप्त होगी --मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज व्यक्ति को अपनी आत्मा पर दया नहीं आ रही है। सम्यक दर्शन पर विचार कर लोगे तो आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। संसार से पार होने के लिए प्रतिमा लेना होगी। प्रतिमा लेने का मतलब सही दिशा में कदम बढ़ाना, तभी मंजिल भी प्राप्त होगी। आचार्य समंतभद्र स्वामी ने रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ में सम्यक दृष्टि को धर्मात्मा कहा है, मिथ्या दृष्टि को नहीं। धर्मात्मा बन गए तो पापात्मा मत बनना। सम्यक दर्शन हो गया लेकिन व्रत लेने के भाव नहीं। रावण में भगवान के लिए अपार भक्ति थी, लेकिन संयम लेने के भाव नहीं, इसलिए वह नर्क में गये है।पाप कर्म का क्षय होने पर रावण का जीव जैन धर्म के तीर्थंकर बनेंगे। श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ पर आशीष वचन देते हुए कही।आपने कहां मिथ्या दृष्टि विपरीत मार्ग को चुन कर सभी को मानता है। सम्यकदृष्टि जीव समीचीन मार्ग को चुनकर मोक्ष मार्ग प्रशस्त करते हैं। मुनिश्री ने कहा सम्यकदृष्टि को धर्मात्मा कहा है। ज्ञानी हमेशा अच्छा ही करते हैं। सम्यकदृष्टि संसार से पार होने का काम करते हैं। प्रतिमा लेने वाले सही दिशा में कदम उठाते हैं, प्रतिमा लेने के लिए अपने भाव बना कर आगे आना चाहिए। बिना सही कदम उठाए मंजिल की प्राप्ति नहीं होती है।आगम के अनुसार काम करें।जो प्रतिमा लेकर पालन नहीं कर पा रहे हैं उन्हें दूसरे लोग सहयोग करें। समाधि के समय 48 मुनिराज होना चाहिए, नहीं मिलते हैं तो एक मुनिराज से ही काम चलाएं, वे भी नहीं मिले तो व्रती से समाधि मरण करवा सकते हैं। माता-पिता का कर्ज संस्कार होने पर निर्दोष समाधि कराकर चुका सकते हैं। रावण सम्यक दृष्टि भगवान की अपार भक्ति करता था और भविष्य में तीर्थंकर बनेंगे। संगति का असर होता है जैसी संगति वैसी गति। व्रतियों की यथा योग्य सम्मान करें, उपेक्षा नहीं करें। असंख्यात कर्मों की निर्जरा होती है। आगम में सम्यक दृष्टि मनमर्जी करते हैं तो वह उसके लिए धर्म का अपमान करना है। रात में खा रहें हों तो उन्हें पापाणुवंद का वंध होगा। त्याग के साथ मरण पर सद्गति प्राप्त होगी। मर्यादा से रहित वस्तु आ जाएं तो वह अभक्ष है और वह खाने योग्य नहीं। दुर्गति में नहीं जाना है तो अभक्ष पदार्थ का सेवन नहीं करें।कुल के नियमों का पालन करें।कुलाचार का पालन करने वाले देव गति में जाते हैं।जैसा खाएं अन्न वैसा होए मन, और जैसा पीए पानी वैसी होगी वाणी। आत्मा के गुण कैसे प्रकट होंगे, जब आप व्रती होंगे। सम्यकदृष्टि जीव धर्म और धर्मात्मा की निंदा से बचता है। भला करने वाले की कभी भी निंदा नहीं करें। मिथ्या दृष्टि शुद्ध मार्ग नहीं अपनायेगा, सम्यक दृष्टि हमेशा शुद्ध मार्ग अपनायेगा। त्याग में बहुत बड़ी शक्ति है।

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  • *चंद्रप्रभु एवं पार्श्वनाथ भगवान का जन्म व तप कल्याणक पर महाशांति धारा कर अर्ध्य चढ़ा आरती हुई, आर्यिकारत्न आराधना श्रीजी का सासंघ हुआ नगर प्रवेश* सूर्योदय के साथ जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु भगवान एवं तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का जन्म एवं तप कल्याणक महामहोत्सव नगर सहित क्षेत्र के सभी दिगंबर जैन मंदिरों में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मना।श्रीचंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर गंज में प्रातः सात बजे पश्चात दोनों भगवान के अभिषेक कर महाशांति धारा श्रावकों ने भक्ति भाव के साथ कीl आचार्य विभव सागर मुनिराज की परम प्रभाविका शिष्या आर्यिकारत्न आराधना श्रीजी माता जी ससंघ की मंगल आगवानी इंदौर नाका अलीपुर पर कर एक जुलूस के रूप में नगर के प्रमुख मार्गों से प्रवेश कराकर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पहुंचे। विदित रहे रविवार 14 दिसंबर को आचार्य श्री श्रेयांश सागर जी मुनिराज की सुयोग्य शिष्या आर्यिका सुदृष्टि मति माता जी का मंगल नगर प्रवेश कराया गया था। सोमवार 15 दिसम्बर को देवाधिदेव मूलनायक 1008 श्री चन्द्रप्रभु भगवान एवं 1008 श्री चेतन्य चमत्कारी पार्श्वनाथ भगवान का जन्म एवं तप कल्याणक महामहोत्सव पर गंज मंदिर में समाज के राजेन्द्र गंगवाल एवं अंकित जैन द्वारा महाशांति बोलकर धर्म आराधना कराई गई। किला मंदिर में मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान का वहीं अन्य जिनालयों में दोनों भगवानों के जन्मोत्सव एवं तप कल्याणक महामहोत्सव मनाने का सौभाग्य समाजजनों को मिला । अरिहंतपुरम अलीपुर चंदप्रभ मंदिर में भगवान के पालना झुलाने का कार्यक्रम सोमवार शाम को किया गया।
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सूर्योदय के साथ जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु भगवान एवं तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का जन्म एवं तप कल्याणक महामहोत्सव नगर सहित क्षेत्र के सभी दिगंबर जैन मंदिरों में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मना।श्रीचंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर गंज में प्रातः सात बजे पश्चात दोनों भगवान के अभिषेक कर महाशांति धारा श्रावकों ने भक्ति भाव के साथ कीl आचार्य विभव सागर मुनिराज की परम प्रभाविका शिष्या आर्यिकारत्न आराधना श्रीजी माता जी ससंघ की मंगल आगवानी इंदौर नाका अलीपुर पर कर एक जुलूस के रूप में नगर के प्रमुख मार्गों से प्रवेश कराकर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पहुंचे।
विदित रहे  रविवार 14 दिसंबर को आचार्य श्री श्रेयांश सागर जी मुनिराज की सुयोग्य शिष्या आर्यिका सुदृष्टि मति माता जी का मंगल नगर प्रवेश कराया गया था। सोमवार 15 दिसम्बर को देवाधिदेव मूलनायक 1008 श्री चन्द्रप्रभु भगवान एवं 1008 श्री चेतन्य चमत्कारी पार्श्वनाथ भगवान का जन्म एवं तप कल्याणक महामहोत्सव पर गंज मंदिर में समाज के राजेन्द्र गंगवाल एवं अंकित जैन द्वारा महाशांति बोलकर धर्म आराधना कराई गई।
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  • Post by जैद फैजान
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    Post by जैद फैजान
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  • Post by Manoj_bamniya_official
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    Post by Manoj_bamniya_official
    user_Manoj_bamniya_official
    Manoj_bamniya_official
    Photographer Indore, Madhya Pradesh•
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  • Post by Rohit Uikey
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    Post by Rohit Uikey
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    Ashta, Sehore•
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