दुर्ग शहर के शिक्षक नगर के सबसे पुराने तिलक शासकीय प्राथमिक विद्यालय में भी स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में नन्हे मुन्ने विद्यार्थियों को पेन व चाकलेट वितरित कर विवेकानंद जी का जन्मदिन मनाया गया।. इसके अलावा एक आवश्यक बात जो जागरूक परोपकारी नागरिकों से कहना चाहता हूं।. अक्सर मुझे यह सुनने मिलता (1). जब तक अपना पेट भरा ना हो,तब तक दूसरों की मदद व्यर्थ? (2). खुद गड्ढे में हों और दूसरों की मदद करतें. (3). पहले खुद को बना लों धन दौलत से संपन्न कर लों उसके बाद किसी की मदद करों। इस तरह की कई बातें कई वर्षों से कई लोगों से सुनने मिलता मैं इनका आभारी रहता जों मेरे लिए थोड़ी बहुत फिक्र तो किए पर मुझे कैसा लगता ये मैं ही जानता ऐसा लगता कोई मेरे सीने में चाकू से वार कर रहा।जिस परिस्थिति में मैं पैदा हुआ जैसा वातावरण देखा मैं यह नहीं कहता कि मुझसे ज्यादा खराब बाल्यावस्था किसी ने ना देखा हो लेकिन मैं इतना जरूर कहता समय रहते लोग समझें बातों को क्योंकि अच्छे लोग भी हैं दुनिया में सिर्फ संगठित ना होने से उनकी अच्छाईयां छिपीं होती है हंंसराज नवयुवक मंडल द्वारा कोशिश करता ताकि अच्छे लोग संगठित होकर बेहतर वातावरण निर्माण में सक्रिय होएं। जैसा इस लेख के शुरुआत में मैंने जो कहा अक्सर मुझे कुछ बातें सुनने को मिलती तो कई बार मैं बता चुका हूं हर किसी की जिंदगी एक सी नहीं होती मैंने देखा कुछ ना करने की बजाय कुछ करना अच्छा होता और इस संदर्भ में यह भी कहा जाता ज्यादातर लोग मानते दूसरों का अच्छा करने से खुद का बुरा होता तो इसके लिए मैं यह कहूं इसीलिए जो हैं विशेषज्ञों की आवश्यकता होती हैं उदाहरणतः बीमार होते यह पता होता सबको लेकिन कौन सी बीमारी हुई ईलाज में कौन सी दवाईयों का सदुपयोग किया जाएं ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषज्ञों की आवश्यकता होती हैं उसी प्रकार मदद करने व क्षेत्र में बेहतर वातावरण के लिए केवल राजनीतिज्ञ या व्यावसायिक प्रवृत्ति के समाजसेवी, ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर के स्तर के समाजसेवियों की आवश्यकता होती हैं पर दुनिया भर के लोग ऐसे लोगों की मदद करने की बजाय उनके जख्मों में और दुख देते मेरी कोशिश रहती कभी किसी के विरोध में कुछ ना कहूं। पर यह बताने समझाने के लिए कहना जरूरी है क्योंकि मैं बच्चों व युवाओं की दुर्गति से अफसोस व्यक्त करता हूं। ऊपर प्रारंभ में लिखें गये बातों की व्याख्या इस तरह 1). जब तक अपना पेट भरा ना हो तब तक दूसरों की मदद व्यर्थ? इसकी व्याख्या:-जब अपना पेट भरा ना हों लेकिन यह पक्का हो कि हमें कुछ समय बाद भोजन मिलने वाला हों तो कई दिनों से भूखे रहने वाले व्यक्ति को अपना भोजन दें देना ईश्वर को पूजने जैसा समाजसेवा। 2). खुद गड्ढे में गिरें हों और दूसरों की मदद करते हों। इसकी व्याख्या:- चलिए माना मैं गड्ढे में गिरा हूं, लेकिन आओं हम मिलजुलकर और गड्ढे खोदकर इस गड्ढे से निकलते हैं। 3). पहले खुद को बना लों धन दौलत से संपन्न कर लों उसके बाद किसी की मदद करों। इसकी व्याख्या:- प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती। वैसे मैं इस बात से सहमत हूं , बिना धन के कुछ भी कर पाना संभव नहीं है पर यदि हर कोई ऐसा सोचें तो दुनिया में जो बचीं कुची अच्छाई भी ना होगी। दिन -प्रतिदिन कितने ही अच्छे खासे लोग सुसाइड कर रहे इसके लिए तेजी से समाजसेवी कार्य करने की आवश्यकता सिर्फ इसीलिए तो बताता निवेदन करता लोगों से पर जो थोड़े बहुत लोग मेरी मदद करने की रूचि रखते वें यह देखते मेरे साथ कितने लोग हैं। तो यह मैं कहूं इसके लिए परिवार वालों का समझकर साथ देना बहुत जरूरी परिवार के बाद बारी आती हैं समाज की पर फैमिली और समाज भी पैसा देखते सच्चे दिल से कहूं कुछ अच्छे सच्चे लोग होते वें ना पैसा देखते ना लोग देखते , देखते है तो सिर्फ टैलेंट और मानवतावादी विचार। वैसे ही अच्छे सच्चे लोग कों संगठित होकर बेहतर वातावरण निर्माण में सहयोग करने का निवेदन करता हूं।.😊.
दुर्ग शहर के शिक्षक नगर के सबसे पुराने तिलक शासकीय प्राथमिक विद्यालय में भी स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में नन्हे मुन्ने विद्यार्थियों को पेन व चाकलेट वितरित कर विवेकानंद जी का जन्मदिन मनाया गया।. इसके अलावा एक आवश्यक बात जो जागरूक परोपकारी नागरिकों से कहना चाहता हूं।. अक्सर मुझे यह सुनने मिलता (1). जब तक अपना पेट भरा ना हो,तब तक दूसरों की मदद व्यर्थ? (2). खुद गड्ढे में हों और दूसरों की मदद करतें. (3). पहले खुद को बना लों धन दौलत से संपन्न कर लों उसके बाद किसी की मदद करों। इस तरह की कई बातें कई वर्षों से कई लोगों से सुनने मिलता मैं इनका आभारी रहता जों मेरे लिए थोड़ी बहुत फिक्र तो किए पर मुझे कैसा लगता ये मैं ही जानता ऐसा लगता कोई मेरे सीने में चाकू से वार कर रहा।जिस परिस्थिति में मैं पैदा हुआ जैसा वातावरण देखा मैं यह नहीं कहता कि मुझसे ज्यादा खराब बाल्यावस्था किसी ने ना देखा हो लेकिन मैं इतना जरूर कहता समय रहते लोग समझें बातों को क्योंकि अच्छे लोग भी हैं दुनिया में सिर्फ संगठित ना होने से उनकी अच्छाईयां छिपीं होती है हंंसराज नवयुवक मंडल द्वारा कोशिश करता ताकि अच्छे लोग संगठित होकर बेहतर वातावरण निर्माण में सक्रिय होएं। जैसा इस लेख के शुरुआत में मैंने जो कहा अक्सर मुझे कुछ बातें सुनने को मिलती तो कई बार मैं बता चुका हूं हर किसी की जिंदगी एक सी नहीं होती मैंने देखा कुछ ना करने की बजाय कुछ करना अच्छा होता और इस संदर्भ में यह भी कहा जाता ज्यादातर लोग मानते दूसरों का अच्छा करने से खुद का बुरा होता तो इसके लिए मैं यह कहूं इसीलिए जो हैं विशेषज्ञों की आवश्यकता होती हैं उदाहरणतः बीमार होते यह पता होता सबको लेकिन कौन सी बीमारी हुई ईलाज में कौन सी दवाईयों का सदुपयोग किया जाएं ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषज्ञों की आवश्यकता होती हैं उसी प्रकार मदद करने व क्षेत्र में बेहतर वातावरण के लिए केवल राजनीतिज्ञ या व्यावसायिक प्रवृत्ति के समाजसेवी, ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर के स्तर के समाजसेवियों की आवश्यकता होती हैं पर दुनिया भर के लोग ऐसे लोगों की मदद करने की बजाय उनके जख्मों में और दुख देते मेरी कोशिश रहती कभी किसी के विरोध में कुछ ना कहूं। पर यह बताने समझाने के लिए कहना जरूरी है क्योंकि मैं बच्चों व युवाओं की दुर्गति से अफसोस व्यक्त करता हूं। ऊपर प्रारंभ में लिखें गये बातों की व्याख्या इस तरह 1). जब तक अपना पेट भरा ना हो तब तक दूसरों की मदद व्यर्थ? इसकी व्याख्या:-जब अपना पेट भरा ना हों लेकिन यह पक्का हो कि हमें कुछ समय बाद भोजन मिलने वाला हों तो कई दिनों से भूखे रहने वाले व्यक्ति को अपना भोजन दें देना ईश्वर को पूजने जैसा समाजसेवा। 2). खुद गड्ढे में गिरें हों और दूसरों की मदद करते हों। इसकी व्याख्या:- चलिए माना मैं गड्ढे में गिरा हूं, लेकिन आओं हम मिलजुलकर और गड्ढे खोदकर इस गड्ढे से निकलते हैं। 3). पहले खुद को बना लों धन दौलत से संपन्न कर लों उसके बाद किसी की मदद करों। इसकी व्याख्या:- प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती। वैसे मैं इस बात से सहमत हूं , बिना धन के कुछ भी कर पाना संभव नहीं है पर यदि हर कोई ऐसा सोचें तो दुनिया में जो बचीं कुची अच्छाई भी ना होगी। दिन -प्रतिदिन कितने ही अच्छे खासे लोग सुसाइड कर रहे इसके लिए तेजी से समाजसेवी कार्य करने की आवश्यकता सिर्फ इसीलिए तो बताता निवेदन करता लोगों से पर जो थोड़े बहुत लोग मेरी मदद करने की रूचि रखते वें यह देखते मेरे साथ कितने लोग हैं। तो यह मैं कहूं इसके लिए परिवार वालों का समझकर साथ देना बहुत जरूरी परिवार के बाद बारी आती हैं समाज की पर फैमिली और समाज भी पैसा देखते सच्चे दिल से कहूं कुछ अच्छे सच्चे लोग होते वें ना पैसा देखते ना लोग देखते , देखते है तो सिर्फ टैलेंट और मानवतावादी विचार। वैसे ही अच्छे सच्चे लोग कों संगठित होकर बेहतर वातावरण निर्माण में सहयोग करने का निवेदन करता हूं।.😊.
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- Post by Gayatri Singh1
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