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बजरंग चौक दुर्गोत्सव समिति कसडोल आपका हार्दिक स्वागत करता है... अखिल ब्रम्हांड की त्रिमहाशक्तियों का दर्शन करने अवश्य पधारे... आग्रह है प्रतिदिन शाम 7:30 बजे आरती में अवश्य समय निकाल पहुंचे...
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बजरंग चौक दुर्गोत्सव समिति कसडोल आपका हार्दिक स्वागत करता है... अखिल ब्रम्हांड की त्रिमहाशक्तियों का दर्शन करने अवश्य पधारे... आग्रह है प्रतिदिन शाम 7:30 बजे आरती में अवश्य समय निकाल पहुंचे...
- RDRamsajiwan dhruwBaloda Bazar, Chhattisgarh🙏2 hrs ago
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- बजरंग चौक दुर्गोत्सव समिति कसडोल आपका हार्दिक स्वागत करता है... अखिल ब्रम्हांड की त्रिमहाशक्तियों का दर्शन करने अवश्य पधारे... आग्रह है प्रतिदिन शाम 7:30 बजे आरती में अवश्य समय निकाल पहुंचे...1
- 🔸पशुओं को अपने स्वार्थवश मारकर खाने वाले व्यक्तियों के विषय में परमेश्वर कबीर जी ने कहा है: कबीर-माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि। ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।। कबीर-माँस खांय ते ढेड़ सब, मद पीवैं सो नीच। कुलकी दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।। 🔸 कबीर-माँस माँस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय। आँखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय।। कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय। मुखमें आमिख मेलि के, नरक परंगे जाय।। इन वाणियों में कबीर साहेब ने समझाया है कि माँस चाहे गाय, हिरनी, मुर्गी आदि किसी प्राणी का हो, जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक के भागी हैं। यह माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है। 🔸 कबीर-पापी पूजा बैठि कै, भखै माँस मद दोइ। तिनकी दीक्षा मुक्ति नहीं, कोटि नरक फल होइ।। अर्थात जो गुरुजन माँस भक्षण करते हैं तथा शराब पीते हैं उनसे नाम दीक्षा प्राप्त करने वालों की मुक्ति नहीं होती अपितु वे महा नरक के भागी होंगे। 🔸कबीर-काजी का बेटा मुआ, उर में सालै पीर। वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।। इस वाणी में अल्लाह कबीर जी कहते हैं जब काजी के पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो काजी को कितना कष्ट होता है। पूर्ण ब्रह्म सर्व का पिता है तो उसके प्राणियों को मारने वाले से वह अल्लाह कैसे खुश हो सकता है। 🔸कबीर परमेश्वर ने पशुओं की निर्मम हत्या करने वालों को एक उदाहरण से समझाया कि कबीर-बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल। जो बकरी को खात है, तिनका कौन हवाल।। अर्थात बकरी जो आपने मार डाली वह तो घास-फूंस, पत्ते आदि खाकर पेट भर रही थी। इस काल लोक में ऐसे शाकाहारी पशु की भी हत्या हो गई तो जो बकरी का माँस खाते हैं उनका तो अधिक बुरा हाल होगा। 🔸 कबीर-जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय। निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।। परमात्मा कहते हैं जो व्यक्ति जीव हिंसा करते हैं (चाहे गाय, सूअर, बकरी, मुर्गी आदि किसी भी प्राणी को स्वार्थवश मारते हैं) वे महापापी हैं, (भले ही जिन्होंने पूर्ण संत से पूर्ण परमात्मा का उपदेश भी प्राप्त है) वे कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते। 🔸कबीर-पीर सबन को एक सी, मूरख जानैं नाहिं। अपना गला कटाय कै, क्यों न बसो भिश्त के माहिं।। अर्थात दर्द सर्व को एक जैसा ही होता है। अनजान नहीं जानते। यदि बकरे आदि का गला काट कर (हलाल करके) उसे स्वर्ग भेज देते हो तो काजी तथा मुल्ला अपना गला छेदन करके (हलाल करके) स्वर्ग प्राप्ति क्यों नहीं करते? 🔸 कबीर-मुरगी मुल्लासों कहै, जबह करत है मोहिं। साहब लेखा माँगसी, संकट परि है तोहिं।। भावार्थ: जिस समय बकरी को मुल्ला मारता है तो वह बेजुबान प्राणी आँखों में आंसू भर कर म्यां-म्यां करके समझाना चाहता है कि हे मुल्ला मुझे मार कर पाप का भागी मत बन। जब परमेश्वर के न्याय अनुसार लेखा किया जाएगा उस समय तुझे बहुत संकट का सामना करना पड़ेगा। 🔸 गल काटे सो कुफर कसाई कहै मन्सूर काजी से, निवाला कूफर का मत खा। अनल हक्क नाम बर हक है, यही कलमा सुनाता जा।। अर्थात् भक्त मंशूर जी ने काजी से कहा कि जीव हिंसा (गाय-बकरा आदि को मारना) करना त्याग दे यानि माँस का (निवाला) ग्रास मत खा। यह (कूफर) पाप का है। अनल हक नाम वास्तव में (हक) सत्य है। यही (कलमा) मंत्र बोलता रह। 🔸कबीर-कबिरा तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर। जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।। इस वाणी में कबीर परमेश्वर ने समझाया है कि हे काजी, मुल्लाओं आप पीर (गुरु) भी कहलाते हो। पीर तो वह होता है जो दूसरे के दुःख को समझे उसे, संकट में गिरने से बचाए। किसी को कष्ट न पहुँचाए। जो दूसरे के दुःख में दुःखी नहीं होता वह तो काफिर (नीच) बेपीर (निर्दयी) है। वह पीर (गुरु) के योग्य नहीं है। 🔸गल काटे सो कुफर कसाई हम सभी मानते हैं कि संसार में जितने भी जीव जन्तु या मनुष्य शरीरधारी प्राणी हैं वे सभी एक परमात्मा के बच्चे हैं तो जरा स्वयं विचार करें कि क्या एक पिता अपने बच्चों की हत्या करने वालों से खुश होगा? बिल्कुल नहीं हो सकता बल्कि वह दु:खी होगा, जिसका दंड भी हमें प्रदान करेगा। अर्थात जीव हत्या करना महापाप है। 🔸 गल काटे सो कुफर कसाई विचार करें क्या कोई पिता अपने पुत्र की हत्या करने वालों से खुश होगा? नहीं ना। इसी तरह पूर्ण ब्रह्म इस संसार में मौजूद सभी जीवों का पिता है तो फिर उसके जीवों का गला काटने वालों से वह कैसे खुश हो सकता है? इसलिए ऐसे पाप कर्मों (कुफ़र) से बचें। 🔸 गल काटे सो कुफर कसाई दोनों धर्मों को समझाते हुए सूक्ष्मवेद में कहा गया है कि हिन्दू परमेश्वर के जीवों का गला धीरे-धीरे काटते हैं और मुस्लिम झटके से काटते हैं और इस कार्य को पुण्य बताते हैं लेकिन ये दोनों ही पाप (कुफ़र) कर रहे हैं जिसके लिए इन कसाइयों को नरक में डाला जाएगा। बात करते हैं पुण्य की, करते हैं घोर अधर्म। दोनों दीन नरक में पड़हीं, कुछ तो करो शर्म।। 🔸 गल काटे सो कुफर कसाई अपने जीभ के स्वाद के लिए परमात्मा के बच्चों का गला काटना कुफ़र (पाप) है, जिसके लिए ऐसे कसाई व्यक्ति को भगवान नरक में डालेगा। कबीर-मुसलमान मारै करद सो, हिंदू मारे तरवार। कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यम के द्वार।।1
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