Shuru
Apke Nagar Ki App…
*मानव धर्म के प्रणेता सदगुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जी की प्रेरणा से एवं परम पूज्या माता श्री अमृता माता जी के पावन जन्मोत्सव के उपलक्ष में 1 अगस्त से 10 अगस्त तक विशेष रुप से मानव उत्थान सेवा समिति के अंतर्गत चलाए जा रहे मिशन एजुकेशन के तहत दिनांक 09/08-2024 को मानव उत्थान सेवा समिति, ग्राम इस्माईलाबाद जिला कुरुक्षेत्र स्टेट हरियाणा के स्थानीय सरकारी प्राथमिक विद्यालय में 36 विद्यार्थियों को स्टेशनरी वितरित की गई
Surender Saini
*मानव धर्म के प्रणेता सदगुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जी की प्रेरणा से एवं परम पूज्या माता श्री अमृता माता जी के पावन जन्मोत्सव के उपलक्ष में 1 अगस्त से 10 अगस्त तक विशेष रुप से मानव उत्थान सेवा समिति के अंतर्गत चलाए जा रहे मिशन एजुकेशन के तहत दिनांक 09/08-2024 को मानव उत्थान सेवा समिति, ग्राम इस्माईलाबाद जिला कुरुक्षेत्र स्टेट हरियाणा के स्थानीय सरकारी प्राथमिक विद्यालय में 36 विद्यार्थियों को स्टेशनरी वितरित की गई
More news from Ismailabad St and nearby areas
- *मानव धर्म के प्रणेता सदगुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जी की प्रेरणा से एवं परम पूज्या माता श्री अमृता माता जी के पावन जन्मोत्सव के उपलक्ष में 1 अगस्त से 10 अगस्त तक विशेष रुप से मानव उत्थान सेवा समिति के अंतर्गत चलाए जा रहे मिशन एजुकेशन के तहत दिनांक 09/08-2024 को मानव उत्थान सेवा समिति, ग्राम इस्माईलाबाद जिला कुरुक्षेत्र स्टेट हरियाणा के स्थानीय सरकारी प्राथमिक विद्यालय में 36 विद्यार्थियों को स्टेशनरी वितरित की गई1
- Post by INDIANEWS 9LIVE1
- एक पत्रकार अगर शहर में रुके विकास को लेकर कोई मूदा उठा रहा है तो उसके साथ गाली गलोच और अभद्र व्यवहर करना बिलकुल ग़लत है हम इस घटना की निंदा करते हैं और शाहबाद प्रशासन को सख्ताईं बरतने की अपील करते हैं1
- "गुरु" से जुड़े कुछ संस्कृत श्लोक कुछ इस प्रकार से है: 1) गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को प्रणाम को मेरा प्रणाम। बचपन से हम सबने ये सुना है। 2) धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः । तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥ अर्थात धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं । 3)गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा। अथ वा विद्यया विद्याचतुर्थो न उपलभ्यते॥ अर्थात विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है॥ 4)दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः शमेन विद्या नगरी जनेन ॥ अर्थात जैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या, और लोग बगैर नगर शोभा नहीं देते, वैसे हि गुरु बिना शिष्य शोभा नहीं देता । 5) पूर्णे तटाके तृषितः सदैव भूतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः । कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥ अर्थात जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद आलसी रहे, वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के पास होते हुए भी प्यासा, घर में अनाज होते हुए भी भूखा, और कल्पवृक्ष के पास रहते हुए भी दरिद्र है । 6) दृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्यः स नयति यदहो स्वहृतामश्मसारम् । न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरगुणयुगे सद्गुरुः स्वीयशिष्ये स्वीयं साम्यं विधते भवति निरुपमस्तेवालौकिकोऽपि ॥ अर्थात तीनों लोक, स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल में ज्ञान देनेवाले गुरु के लिए कोई उपमा नहीं दिखाई देती । गुरु को पारसमणि के जैसा मानते है, तो वह ठीक नहीं है, कारण पारसमणि केवल लोहे को सोना बनाता है, पर स्वयं जैसा नहीं बनाता ! सद्गुरु तो अपने चरणों का आश्रय लेनेवाले शिष्य को अपने जैसा बना देता है; इस लिए गुरुदेव के लिए कोई उपमा नहि है, गुरु तो अलौकिक है । 7) निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥ अर्थात जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं । 8) किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥ अर्थात बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है । 9) नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ । गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत् ॥ अर्थात गुरु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पे बैठना चाहिए । गुरु आते हुए दिखे, तब अपनी मनमानी से नहीं बैठना चाहिए । 10) गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते । अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥ अर्थात ‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है । 11) शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च । नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ॥ अर्थात शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए । jai guru dev1
- विधानसभा इंद्री और थानेसर में कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ताओं ने किया दीपेंद्र सिंह हुड्डा का स्वागत1
- निकाय राज्य मंत्री सुभाष सुधा ने किया नगर परिषद थानेसर का ओचक निरीक्षण.रात, 9 बजे अधिकारियों को किया तलब.आधी रात तक चली जांच.1
- थानेसर में हरियाणा मांगे हिसाब कार्यक्रम में दिखी अशोक अरोड़ा की राजनीतिक ताकत.हजारों लोगों के सहयोग और आशीर्वाद से सुपरहिट हुआ थानेसर का हरियाणा मांगे हिसाब कार्यक्रम.1
- कुरुक्षेत्र : एक्शन मोड में स्थानीय निकाय राज्य मंत्री सुभाष सुधा ने देर सांय थानेसर नगर परिषद कार्यालय में दी दस्तक1