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हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ श्री रामचरित मानस के रजिता महान कवि तुलसीदास जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम
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हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ श्री रामचरित मानस के रजिता महान कवि तुलसीदास जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम
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- भगवान और गुरु के समक्ष भक्ति, पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ करना चाहिए। भगवानअसंख्यात गुणों के भंडार से युक्त है। मंदिरों में अतिशय आज भी होता है लेकिन उन्हीं मंदिरों में जहां भगवान की भक्ति बिना अपेक्षा और भक्ति भाव के साथ की जाती है।नवाचार्य समय सागर महाराज का बड़प्पन देखिए कि उन्हें आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के द्वारा अपना आचार्य पद देने की जानकारी मिल गई थी, लेकिन उन्होंने गुरुदेव के सभी शिष्यों को बुलाकर कहा कि आप सभी मेरे शिष्य नहीं बल्कि गुरुभाई हो, आप सभी की जो इच्छा हो वही होगा। उसके पश्चात आचार्य पद स्वीकार किया। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने कहा कि पंचम काल के समय में जो बड़े बड़े आचार्य होते थे, वैसे आचार्य 21 वीं सदी में आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के रूप में हमें मिले। हम सभी से आरम -शारम के माध्यम से पाप होते हैं।मुनिगण अनजाने में हुए पापों के लिए प्रतिक्रमण तीन बार कर भगवान से क्षमा मांगते हैं। भगवान असंख्यात गुणों के भंडार व खान से युक्त है। हम आपके स्तवन करने के लिए तैयार है। मुझमें शक्ति नहीं है फिर भी अपनी बुद्धि के अनुसार भक्ति कर रहा हूं, कोई त्रुटी हो तो क्षमा करें। भगवान के गुणों की भक्ति व्यवस्थित और विवेक पूर्वक करें। मंदिरों में अतिशय क्यों नहीं हो रहे हैं, क्योंकि हमारी भक्ति में कमी है, पहले जैसी भक्ति कम नजर आती है। पूर्व के श्रावकों एवं आचार्यों जैसी भगवान की भक्ति आज नहीं है। आचार्य पूज्यपाद महाराज संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे।उनकी आंखों की ज्योति चली गई। जिनेंद्र भगवान की भक्ति कर ज्योति जाने के बाद शांति स्तुति लिखी, आठवें पद को लिखते ही उनकी आंखों की ज्योति आ गई।आज लोगों के भाव, क्रिया, द्रव्य उतने शुद्ध नहीं है, बुद्धि, विवेक की कमी है।जो व्यक्ति परीक्षा देता है, उसीकी परीक्षा होती है और पास होता है। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज सुनते बहुत है और बोलते कम है। हम बोलते अधिक है और सुनते कम है। भक्ति का प्रभाव असाध्य रोग समाप्त हो जाता है। भगवान और गुरु के पास भक्ति भावों से करें ।मंदिरों में आज भी अतिशय होते हैं, भक्ति अच्छे भाव से करें। ओम पंचपरमेष्टि का प्रतिमात्मक शब्द है। जिन आगम में लिखा है जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है। श्रावक को साधक, साधु, आर्यिका बनने के भाव होना चाहिए। भावना भव नाशिनी होती है। संसार से राग, द्वेष और मोह छोड़ोगे तो ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। समर्पण भाव से भक्त बनों, तभी भगवान बनोगे।स्वर्ग जाने के लिए दिगंबर दीक्षा नहीं ली, बल्कि मोक्ष जाने के लिए दीक्षा ली है। 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी का जन्म और तप कल्याणक मनाया नगर सहित क्षेत्र के सभी दिगंबर जैन मंदिरों में शनिवार को 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी का जन्म और तप कल्याणक महोत्सव किला मंदिर पर मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज, निष्कंप सागर महाराज ,निष्प्रह सागर महाराज एवं निष्काम सागर महाराज के पावन सानिध्य में मनाया गया। वहीं अरिहंत पुरम अलीपुर जैन मंदिर में मुनिश्री विनंद सागर महाराज ससंघ के सानिध्य में नेमिनाथ भगवान का जन्म और तप कल्याणक महोत्सव मनाया। श्री चंद्रप्रभु मंदिर गंज में भगवान के अभिषेक, शांति धारा के पश्चात भगवान के जन्म कल्याणक महोत्सव पर भक्ति भाव से पूजा- अर्चना की।1