*डा जितेंद्र कुमार तिवारी ने किया लावारिस और अज्ञात लोगों का तर्पण, पिंडदान एवं अन्य कर्मकांड* *मृत आत्माओं की मोक्ष प्राप्ति के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न हुआ अनुष्ठान* "*जिनका कोई नहीं", उन उपेक्षित आत्माओं को मिला धार्मिक सम्मान* झांसी।केंद्रीय अध्यक्ष, जिला जनकल्याण महासमिति, डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया, जिसमें लावारिस और अज्ञात व्यक्तियों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विधिपूर्वक संपन्न किया गया। यह आयोजन उन आत्माओं के लिए समर्पित था, जिनकी मृत्यु के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं हो पाए। ऐसे लोगों के लिए यह कर्मकांड हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हो सके। डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने इस आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, “यह आयोजन उन लावारिस और अज्ञात मृतकों को सम्मान देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए किया गया है। हिंदू धर्म में पिंडदान और तर्पण आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।” उन्होंने बताया कि इस विशेष आयोजन के जरिए उन मृत आत्माओं के प्रति समाज की जिम्मेदारी निभाने का प्रयास किया गया है, जो बिना किसी परिजनों के विदा हो गए। *वैदिक मंत्रोच्चारण और कर्मकांड*:इस विशेष अनुष्ठान में बुंदेलखंड ब्राह्मण विद्धत परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष आचार्य बृजकिशोर हरभजन भार्गव, महानगर धर्माचार्य आचार्य पं हरीओम पाठक, जिला धर्माचार्य महंत विष्णु दत्त स्वामी ,कथा वाचक आचार्य मनोज चतुर्वेदी, आचार्य उमेश भार्गव दुबे, सहित कई विद्वान पुरोहितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया सम्पन्न की गई। कर्मकांड के दौरान गंगाजल, तिल, काले तिल, पुष्प ,जो का आटा, कपड़े, बर्तन और अन्य धार्मिक सामग्री का प्रयोग किया गया। लक्ष्मी ताल के समीप वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए मृत आत्माओं को मोक्ष प्राप्ति के लिए तर्पण अर्पित किया गया। डॉ. तिवारी ने बताया कि यह अनुष्ठान गरुड़ पुराण के निर्देशों के अनुरूप किया गया, जिसमें अज्ञात और लावारिस आत्माओं के लिए पिंडदान का महत्व बताया गया है। *समाज के प्रति योगदान:* डॉ. जितेंन्द्र तिवारी ने इस आयोजन के माध्यम से समाज को एक प्रेरणादायक संदेश देने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति चाहे उसकी मृत्यु किसी भी परिस्थिति में हो, वह अंतिम संस्कार और धार्मिक कर्मकांड के सम्मान का अधिकारी होता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण कदम है।” उन्होंने आगे कहा कि ऐसे आयोजन से समाज में एकता और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।इस आयोजन में विभिन्न सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों का भरपूर समर्थन मिला। बड़ी संख्या में लोग इस पवित्र कर्मकांड में उपस्थित रहे और कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उपस्थित लोगों ने जितेंद्र तिवारी और उनकी टीम द्वारा किए गए इस पुण्य कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। लोगों ने इस पहल को एक प्रेरणादायक और अनुकरणीय कदम बताते हुए कहा कि यह समाज में उपेक्षित आत्माओं के प्रति सम्मान का प्रतीक है। *गरुड़ पुराण में पिंडदान का महत्व*: डॉ. तिवारी ने गरुड़ पुराण के श्लोकों का हवाला देते हुए बताया कि *"स्त्री वा पुरुषो यस्तु कश्चिदिष्टस्य कर्मणः। अनाथप्रेतसंस्कारात्कोटियज्ञफलं लभेत्।।"* इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति किसी अज्ञात, अनाथ या लावारिस मृतक का अंतिम संस्कार और पिंडदान करता है, उसे एक करोड़ यज्ञों के फल के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस श्लोक के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि अज्ञात और लावारिस आत्माओं के लिए पिंडदान करना समाज की जिम्मेदारी और एक धार्मिक कर्तव्य है।डॉ. तिवारी ने इस कार्यक्रम को भविष्य में भी जारी रखने की बात कही। उन्होंने बताया कि जिला जनकल्याण महासमिति इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से समाज में उन आत्माओं के प्रति सम्मान और संवेदना प्रकट करती रहेगी, जिनका किसी परिजन ने अंतिम संस्कार नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि यह आयोजन सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत सकारात्मक संदेश देता है और लोगों को मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है।यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक उल्लेखनीय पहल थी। डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी के इस प्रयास की पूरे शहर में सराहना की जा रही है। इस कार्यक्रम ने समाज में उन आत्माओं को सम्मान देने का कार्य किया, जिनके पास कोई अपना नहीं था। इस प्रकार का आयोजन समाज में एकता और मानवीय मूल्यों को और अधिक सुदृढ़ करने का प्रयास है। इस अवसर पर मुख्य रूप सेआर एन उपाध्याय,सौरभ जेजुरकर, धर्मेंद्र कारलेकर,डा शशांक कोटिया, कपिल मेहरा,गिरजा शंकर मालवीय, राजेश ठकुरानी, मोतीलाल दुबे, संजीव नायक,संजय दुबे,एच एन शर्मा, अमित पांचाल, पंकज झा, नितिन शाक्य, अंजु शर्मा,वर्षा बोहरे,दीपा तिवारी, कविता मिश्रा,राधा नीलम गुप्ता, कुसुम साहू, सुषमा सिंह, ओमप्रकाश,रवीश त्रिपाठी,दीपक सोनी,अजय शर्मा,गुड्डा साहू, नीतेश धानुक, देवेन्द्र कुशवाहा, अमित आनंद, सहित कई लोग मौजूद रहे।
*डा जितेंद्र कुमार तिवारी ने किया लावारिस और अज्ञात लोगों का तर्पण, पिंडदान एवं अन्य कर्मकांड* *मृत आत्माओं की मोक्ष प्राप्ति के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न हुआ अनुष्ठान* "*जिनका कोई नहीं", उन उपेक्षित आत्माओं को मिला धार्मिक सम्मान* झांसी।केंद्रीय अध्यक्ष, जिला जनकल्याण महासमिति, डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया, जिसमें लावारिस और अज्ञात व्यक्तियों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विधिपूर्वक संपन्न किया गया। यह आयोजन उन आत्माओं के लिए समर्पित था, जिनकी मृत्यु के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं हो पाए। ऐसे लोगों के लिए यह कर्मकांड हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हो सके। डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने इस आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, “यह आयोजन उन लावारिस और अज्ञात मृतकों को सम्मान देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए किया गया है। हिंदू धर्म में पिंडदान और तर्पण आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।” उन्होंने बताया कि इस विशेष आयोजन के जरिए उन मृत आत्माओं के प्रति समाज की जिम्मेदारी निभाने का प्रयास किया गया है, जो बिना किसी परिजनों के विदा हो गए। *वैदिक मंत्रोच्चारण और कर्मकांड*:इस विशेष अनुष्ठान में बुंदेलखंड ब्राह्मण विद्धत परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष आचार्य बृजकिशोर हरभजन भार्गव, महानगर धर्माचार्य आचार्य पं हरीओम पाठक, जिला धर्माचार्य महंत विष्णु दत्त स्वामी ,कथा वाचक आचार्य मनोज चतुर्वेदी, आचार्य उमेश भार्गव दुबे, सहित कई विद्वान पुरोहितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया सम्पन्न की गई। कर्मकांड के दौरान गंगाजल, तिल, काले तिल, पुष्प ,जो का आटा, कपड़े, बर्तन और अन्य धार्मिक सामग्री का प्रयोग किया गया। लक्ष्मी ताल के समीप वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए मृत आत्माओं को मोक्ष प्राप्ति के लिए तर्पण अर्पित किया गया। डॉ. तिवारी ने बताया कि यह अनुष्ठान गरुड़ पुराण के निर्देशों के अनुरूप किया गया, जिसमें अज्ञात और लावारिस आत्माओं के लिए पिंडदान का महत्व बताया गया है। *समाज के प्रति योगदान:* डॉ. जितेंन्द्र तिवारी ने इस आयोजन के माध्यम से समाज को एक प्रेरणादायक संदेश देने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति चाहे उसकी मृत्यु किसी भी परिस्थिति में हो, वह अंतिम संस्कार और धार्मिक कर्मकांड के सम्मान का अधिकारी होता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण कदम है।” उन्होंने आगे कहा कि ऐसे आयोजन से समाज में एकता और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।इस आयोजन में विभिन्न सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों का भरपूर समर्थन मिला। बड़ी संख्या में लोग इस पवित्र कर्मकांड में उपस्थित रहे और कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उपस्थित लोगों ने जितेंद्र तिवारी और उनकी टीम द्वारा किए गए इस पुण्य कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। लोगों ने इस पहल को एक प्रेरणादायक और अनुकरणीय कदम बताते हुए कहा कि यह समाज में उपेक्षित आत्माओं के प्रति सम्मान का प्रतीक है। *गरुड़ पुराण में पिंडदान का महत्व*: डॉ. तिवारी ने गरुड़ पुराण के श्लोकों का हवाला देते हुए बताया कि *"स्त्री वा पुरुषो यस्तु कश्चिदिष्टस्य कर्मणः। अनाथप्रेतसंस्कारात्कोटियज्ञफलं लभेत्।।"* इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति किसी अज्ञात, अनाथ या लावारिस मृतक का अंतिम संस्कार और पिंडदान करता है, उसे एक करोड़ यज्ञों के फल के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस श्लोक के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि अज्ञात और लावारिस आत्माओं के लिए पिंडदान करना समाज की जिम्मेदारी और एक धार्मिक कर्तव्य है।डॉ. तिवारी ने इस कार्यक्रम को भविष्य में भी जारी रखने की बात कही। उन्होंने बताया कि जिला जनकल्याण महासमिति इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से समाज में उन आत्माओं के प्रति सम्मान और संवेदना प्रकट करती रहेगी, जिनका किसी परिजन ने अंतिम संस्कार नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि यह आयोजन सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत सकारात्मक संदेश देता है और लोगों को मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है।यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक उल्लेखनीय पहल थी। डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी के इस प्रयास की पूरे शहर में सराहना की जा रही है। इस कार्यक्रम ने समाज में उन आत्माओं को सम्मान देने का कार्य किया, जिनके पास कोई अपना नहीं था। इस प्रकार का आयोजन समाज में एकता और मानवीय मूल्यों को और अधिक सुदृढ़ करने का प्रयास है। इस अवसर पर मुख्य रूप सेआर एन उपाध्याय,सौरभ जेजुरकर, धर्मेंद्र कारलेकर,डा शशांक कोटिया, कपिल मेहरा,गिरजा शंकर मालवीय, राजेश ठकुरानी, मोतीलाल दुबे, संजीव नायक,संजय दुबे,एच एन शर्मा, अमित पांचाल, पंकज झा, नितिन शाक्य, अंजु शर्मा,वर्षा बोहरे,दीपा तिवारी, कविता मिश्रा,राधा नीलम गुप्ता, कुसुम साहू, सुषमा सिंह, ओमप्रकाश,रवीश त्रिपाठी,दीपक सोनी,अजय शर्मा,गुड्डा साहू, नीतेश धानुक, देवेन्द्र कुशवाहा, अमित आनंद, सहित कई लोग मौजूद रहे।
- *डा जितेंद्र कुमार तिवारी ने किया लावारिस और अज्ञात लोगों का तर्पण, पिंडदान एवं अन्य कर्मकांड* *मृत आत्माओं की मोक्ष प्राप्ति के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न हुआ अनुष्ठान* "*जिनका कोई नहीं", उन उपेक्षित आत्माओं को मिला धार्मिक सम्मान* झांसी।केंद्रीय अध्यक्ष, जिला जनकल्याण महासमिति, डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया, जिसमें लावारिस और अज्ञात व्यक्तियों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विधिपूर्वक संपन्न किया गया। यह आयोजन उन आत्माओं के लिए समर्पित था, जिनकी मृत्यु के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं हो पाए। ऐसे लोगों के लिए यह कर्मकांड हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हो सके। डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी ने इस आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, “यह आयोजन उन लावारिस और अज्ञात मृतकों को सम्मान देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए किया गया है। हिंदू धर्म में पिंडदान और तर्पण आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।” उन्होंने बताया कि इस विशेष आयोजन के जरिए उन मृत आत्माओं के प्रति समाज की जिम्मेदारी निभाने का प्रयास किया गया है, जो बिना किसी परिजनों के विदा हो गए। *वैदिक मंत्रोच्चारण और कर्मकांड*:इस विशेष अनुष्ठान में बुंदेलखंड ब्राह्मण विद्धत परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष आचार्य बृजकिशोर हरभजन भार्गव, महानगर धर्माचार्य आचार्य पं हरीओम पाठक, जिला धर्माचार्य महंत विष्णु दत्त स्वामी ,कथा वाचक आचार्य मनोज चतुर्वेदी, आचार्य उमेश भार्गव दुबे, सहित कई विद्वान पुरोहितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया सम्पन्न की गई। कर्मकांड के दौरान गंगाजल, तिल, काले तिल, पुष्प ,जो का आटा, कपड़े, बर्तन और अन्य धार्मिक सामग्री का प्रयोग किया गया। लक्ष्मी ताल के समीप वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए मृत आत्माओं को मोक्ष प्राप्ति के लिए तर्पण अर्पित किया गया। डॉ. तिवारी ने बताया कि यह अनुष्ठान गरुड़ पुराण के निर्देशों के अनुरूप किया गया, जिसमें अज्ञात और लावारिस आत्माओं के लिए पिंडदान का महत्व बताया गया है। *समाज के प्रति योगदान:* डॉ. जितेंन्द्र तिवारी ने इस आयोजन के माध्यम से समाज को एक प्रेरणादायक संदेश देने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति चाहे उसकी मृत्यु किसी भी परिस्थिति में हो, वह अंतिम संस्कार और धार्मिक कर्मकांड के सम्मान का अधिकारी होता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण कदम है।” उन्होंने आगे कहा कि ऐसे आयोजन से समाज में एकता और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।इस आयोजन में विभिन्न सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों का भरपूर समर्थन मिला। बड़ी संख्या में लोग इस पवित्र कर्मकांड में उपस्थित रहे और कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उपस्थित लोगों ने जितेंद्र तिवारी और उनकी टीम द्वारा किए गए इस पुण्य कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। लोगों ने इस पहल को एक प्रेरणादायक और अनुकरणीय कदम बताते हुए कहा कि यह समाज में उपेक्षित आत्माओं के प्रति सम्मान का प्रतीक है। *गरुड़ पुराण में पिंडदान का महत्व*: डॉ. तिवारी ने गरुड़ पुराण के श्लोकों का हवाला देते हुए बताया कि *"स्त्री वा पुरुषो यस्तु कश्चिदिष्टस्य कर्मणः। अनाथप्रेतसंस्कारात्कोटियज्ञफलं लभेत्।।"* इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति किसी अज्ञात, अनाथ या लावारिस मृतक का अंतिम संस्कार और पिंडदान करता है, उसे एक करोड़ यज्ञों के फल के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस श्लोक के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि अज्ञात और लावारिस आत्माओं के लिए पिंडदान करना समाज की जिम्मेदारी और एक धार्मिक कर्तव्य है।डॉ. तिवारी ने इस कार्यक्रम को भविष्य में भी जारी रखने की बात कही। उन्होंने बताया कि जिला जनकल्याण महासमिति इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से समाज में उन आत्माओं के प्रति सम्मान और संवेदना प्रकट करती रहेगी, जिनका किसी परिजन ने अंतिम संस्कार नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि यह आयोजन सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत सकारात्मक संदेश देता है और लोगों को मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करता है।यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक उल्लेखनीय पहल थी। डॉ. जितेंद्र कुमार तिवारी के इस प्रयास की पूरे शहर में सराहना की जा रही है। इस कार्यक्रम ने समाज में उन आत्माओं को सम्मान देने का कार्य किया, जिनके पास कोई अपना नहीं था। इस प्रकार का आयोजन समाज में एकता और मानवीय मूल्यों को और अधिक सुदृढ़ करने का प्रयास है। इस अवसर पर मुख्य रूप सेआर एन उपाध्याय,सौरभ जेजुरकर, धर्मेंद्र कारलेकर,डा शशांक कोटिया, कपिल मेहरा,गिरजा शंकर मालवीय, राजेश ठकुरानी, मोतीलाल दुबे, संजीव नायक,संजय दुबे,एच एन शर्मा, अमित पांचाल, पंकज झा, नितिन शाक्य, अंजु शर्मा,वर्षा बोहरे,दीपा तिवारी, कविता मिश्रा,राधा नीलम गुप्ता, कुसुम साहू, सुषमा सिंह, ओमप्रकाश,रवीश त्रिपाठी,दीपक सोनी,अजय शर्मा,गुड्डा साहू, नीतेश धानुक, देवेन्द्र कुशवाहा, अमित आनंद, सहित कई लोग मौजूद रहे।1
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