**आदिवासी दिवस परंपरागत विधियों से मनाया गया, गोंडी नृत्य व श्री बुढ़ा देव की पूजा के साथ** संवाददाता - विजय शंकर तिवारी **केशली हथबंद (09 अगस्त)**: आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बड़े ही धूमधाम से उत्सव मनाया गया। इस अवसर पर आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपनी परंपराओं और संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन किया। समारोह की शुरुआत श्री बुढ़ा देव जी की पूजा अर्चना से हुई, जिसमें उन्हें विधिवत सुमिरन कर फूल-माला अर्पित की गई और मिठाई बांटकर सभी ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं। समारोह में बच्चों और बड़ों ने मिलकर मांदर, झांझ और मंजीरे की मधुर ध्वनियों पर गोंडी नृत्य प्रस्तुत किया। नन्ही-नन्ही बालिकाओं ने अपनी नृत्य प्रस्तुति से समारोह में चार चांद लगा दिए। सभी ने एक-दूसरे से गले मिलकर आदिवासी दिवस की बधाई दी और सामूहिक रूप से उत्सव का आनंद उठाया। कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों ने एकता और भाईचारे का संदेश दिया और आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की प्रतिबद्धता व्यक्त की। आदिवासी दिवस को मनाने का उद्देश्य न केवल अपनी परंपराओं को जीवित रखना है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध धरोहर से परिचित कराना भी है। कार्यक्रम के समापन पर जय सेवा, जय जोहार और जय बुढ़ा देव के नारों के साथ सभी ने अपनी आस्था को सशक्त किया। ग्रामीणों ने इस मौके पर आपसी सद्भावना को बढ़ावा देते हुए समाज के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का संकल्प लिया।
**आदिवासी दिवस परंपरागत विधियों से मनाया गया, गोंडी नृत्य व श्री बुढ़ा देव की पूजा के साथ** संवाददाता - विजय शंकर तिवारी **केशली हथबंद (09 अगस्त)**: आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बड़े ही धूमधाम से उत्सव मनाया गया। इस अवसर पर आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपनी परंपराओं और संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन किया। समारोह की शुरुआत श्री बुढ़ा देव जी की पूजा अर्चना से हुई, जिसमें उन्हें विधिवत सुमिरन कर फूल-माला अर्पित की गई और मिठाई बांटकर सभी ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं। समारोह में बच्चों और बड़ों ने मिलकर मांदर, झांझ और मंजीरे की मधुर ध्वनियों पर गोंडी नृत्य प्रस्तुत किया। नन्ही-नन्ही बालिकाओं ने अपनी नृत्य प्रस्तुति से समारोह में चार चांद लगा दिए। सभी ने एक-दूसरे से गले मिलकर आदिवासी दिवस की बधाई दी और सामूहिक रूप से उत्सव का आनंद उठाया। कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों ने एकता और भाईचारे का संदेश दिया और आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की प्रतिबद्धता व्यक्त की। आदिवासी दिवस को मनाने का उद्देश्य न केवल अपनी परंपराओं को जीवित रखना है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध धरोहर से परिचित कराना भी है। कार्यक्रम के समापन पर जय सेवा, जय जोहार और जय बुढ़ा देव के नारों के साथ सभी ने अपनी आस्था को सशक्त किया। ग्रामीणों ने इस मौके पर आपसी सद्भावना को बढ़ावा देते हुए समाज के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का संकल्प लिया।
- कहानी राहुल की, जिन्होंने एक फर्जी ईमेल के चलते अपनी मेहनत की कमाई खो दी।1
- **आदिवासी दिवस परंपरागत विधियों से मनाया गया, गोंडी नृत्य व श्री बुढ़ा देव की पूजा के साथ** संवाददाता - विजय शंकर तिवारी **केशली हथबंद (09 अगस्त)**: आदिवासी दिवस के अवसर पर स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बड़े ही धूमधाम से उत्सव मनाया गया। इस अवसर पर आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपनी परंपराओं और संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन किया। समारोह की शुरुआत श्री बुढ़ा देव जी की पूजा अर्चना से हुई, जिसमें उन्हें विधिवत सुमिरन कर फूल-माला अर्पित की गई और मिठाई बांटकर सभी ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं। समारोह में बच्चों और बड़ों ने मिलकर मांदर, झांझ और मंजीरे की मधुर ध्वनियों पर गोंडी नृत्य प्रस्तुत किया। नन्ही-नन्ही बालिकाओं ने अपनी नृत्य प्रस्तुति से समारोह में चार चांद लगा दिए। सभी ने एक-दूसरे से गले मिलकर आदिवासी दिवस की बधाई दी और सामूहिक रूप से उत्सव का आनंद उठाया। कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों ने एकता और भाईचारे का संदेश दिया और आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की प्रतिबद्धता व्यक्त की। आदिवासी दिवस को मनाने का उद्देश्य न केवल अपनी परंपराओं को जीवित रखना है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध धरोहर से परिचित कराना भी है। कार्यक्रम के समापन पर जय सेवा, जय जोहार और जय बुढ़ा देव के नारों के साथ सभी ने अपनी आस्था को सशक्त किया। ग्रामीणों ने इस मौके पर आपसी सद्भावना को बढ़ावा देते हुए समाज के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का संकल्प लिया।1
- Post by Naval Kumar Varma1
- Post by Pavan Baghel2
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- अजीता पाण्डेय बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं और एक नर्सिंग स्टूडेंट भी हैं। साथ ही, पिछले चार साल से नर्सिंग ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। अजीता बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही प्रकृति और जानवरों के प्रति एक अलग अनुभव होता था। वह पिछले सात-आठ सालों से सड़कों पर रहने वाले गाय, कुत्ता, बिल्ली, गिलहरी, चूहा, पक्षी, और बंदर जैसे जानवरों की सेवा करती आ रही हैं। सड़क दुर्घटना के मामलों में वह इन जानवरों को अपने घर लाकर उनकी सेवा करती हैं।1