पंडित रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार की यह स्मृति उपन्यास अपने किशोरावस्था में लिखा बाराबंकी सिरौलीगौसपुर क्षेत्र अंतर्गत  पीठापुर छोटे गांव से है पंडित रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार की यह स्मृति उपन्यास अपने किशोरावस्था में लिखा था इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन समाज और व्यक्ति के संघर्षों को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें रामू दादा और स्मृति के चरित्र हैं ।जिनके माध्यम से शक्ति न्याय और सामाजिक चेतना के विविध पहलू उजागर होते हैं ।पुस्तक में दिखाया गया है कि संघर्ष के बल पर किस तरह गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव लाने का साहस एक स्त्री के द्वारा किया गया है। यह उपन्यास नवंबर 2025 में प्रकाशित होकर जब पंडित निर्विकार को प्राप्त हुआ ।तब उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा यह मात्र एक पुस्तक ही नहीं है । बल्कि सामाजिक चेतना के सूत्र निहित हैं।
पंडित रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार की यह स्मृति उपन्यास अपने किशोरावस्था में लिखा बाराबंकी सिरौलीगौसपुर क्षेत्र अंतर्गत  पीठापुर छोटे गांव से है पंडित रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार की यह स्मृति उपन्यास अपने किशोरावस्था में लिखा था इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन समाज और व्यक्ति के संघर्षों को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें रामू दादा और स्मृति के चरित्र हैं ।जिनके माध्यम से शक्ति न्याय और सामाजिक चेतना के विविध पहलू उजागर होते हैं ।पुस्तक में दिखाया गया है कि संघर्ष के बल पर किस तरह गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव लाने का साहस एक स्त्री के द्वारा किया गया है। यह उपन्यास नवंबर 2025 में प्रकाशित होकर जब पंडित निर्विकार को प्राप्त हुआ ।तब उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा यह मात्र एक पुस्तक ही नहीं है । बल्कि सामाजिक चेतना के सूत्र निहित हैं।
- पंडित रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार की यह स्मृति उपन्यास अपने किशोरावस्था में लिखा बाराबंकी सिरौलीगौसपुर क्षेत्र अंतर्गत  पीठापुर छोटे गांव से है पंडित रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार की यह स्मृति उपन्यास अपने किशोरावस्था में लिखा था इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन समाज और व्यक्ति के संघर्षों को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें रामू दादा और स्मृति के चरित्र हैं ।जिनके माध्यम से शक्ति न्याय और सामाजिक चेतना के विविध पहलू उजागर होते हैं ।पुस्तक में दिखाया गया है कि संघर्ष के बल पर किस तरह गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव लाने का साहस एक स्त्री के द्वारा किया गया है। यह उपन्यास नवंबर 2025 में प्रकाशित होकर जब पंडित निर्विकार को प्राप्त हुआ ।तब उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा यह मात्र एक पुस्तक ही नहीं है । बल्कि सामाजिक चेतना के सूत्र निहित हैं।1
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