नशा मुक्त भारत—संस्कारों की उस पाठशाला की ओर एक कदम समाज का भविष्य स्कूलों की चारदीवारी में पनपता है। बच्चे केवल पाठ्यपुस्तक से नहीं, बल्कि आसपास दिखने वाले आचरण, प्रेरणा और वातावरण से सीखते हैं। ऐसे समय में जब नशा नई पीढ़ी के लिए एक मूक खतरे की तरह फैल रहा है, गाडरवारा तहसील के विद्यालयों में आयोजित नशा मुक्त भारत अभियान एक महत्वपूर्ण पहल बनकर उभरा है। ओम शांति प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सहयोगी संस्थान राजयोग एंड रिसर्च फाउंडेशन का मेडिकल विंग जब कुंभकरण की झांकी, प्रेरक वीडियो और आध्यात्मिक संदेशों के साथ न्यू एरा, न्यू एज, आदित्य पब्लिक स्कूल और पी.जी. कॉलेज पहुंचा, तो यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था—यह बच्चों के हृदय में बोया गया जागरूकता का बीज था। कुंभकरण की झांकी ने एक महत्वपूर्ण संकेत दिया—नशा मनुष्य को भीतर से सोता हुआ बना देता है। इच्छाशक्ति समाप्त होती है, लक्ष्य धुंधले हो जाते हैं, और जीवन दिशाहीन। आदरणीय प्रीति दीदी द्वारा कराई गई प्रतिज्ञाएँ उस नींद से जागने का आह्वान थीं—कि स्वयं भी नशे से दूर रहें और परिवार व समाज को भी नशामुक्त बनाने का संकल्प लें।पी.एस. कौरव, प्राचार्य—पी.जी. कॉलेज—ने अपने उद्बोधन में इसी चिंता को स्वर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि युवा पीढ़ी को अगर सुरक्षित भविष्य देना है तो उन्हें अभी से सही दिशा में प्रेरित करना होगा। शिक्षा तभी सार्थक है जब वह जीवन को बचाने और संवारने का कार्य करे। आज आवश्यकता केवल अभियानों की नहीं, बल्कि निरंतर प्रेरणा की है—स्कूलों में, घरों में, समाज में। नशे के खिलाफ लड़ाई केवल कानून या अस्पतालों की नहीं है; यह हर परिवार, हर शिक्षक, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि यह जागरूकता बच्चों के मन में थोड़ी भी हलचल पैदा करती है, तो यह अभियान सफल माना जाएगा। क्योंकि परिवर्तन हमेशा छोटे कदमों से शुरू होता है—और गाडरवारा से उठाया गया यह कदम आने वाले समय में कई जीवन बचा सकता है।
नशा मुक्त भारत—संस्कारों की उस पाठशाला की ओर एक कदम समाज का भविष्य स्कूलों की चारदीवारी में पनपता है। बच्चे केवल पाठ्यपुस्तक से नहीं, बल्कि आसपास दिखने वाले आचरण, प्रेरणा और वातावरण से सीखते हैं। ऐसे समय में जब नशा नई पीढ़ी के लिए एक मूक खतरे की तरह फैल रहा है, गाडरवारा तहसील के विद्यालयों में आयोजित नशा मुक्त भारत अभियान एक महत्वपूर्ण पहल बनकर उभरा है। ओम शांति प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सहयोगी संस्थान राजयोग
एंड रिसर्च फाउंडेशन का मेडिकल विंग जब कुंभकरण की झांकी, प्रेरक वीडियो और आध्यात्मिक संदेशों के साथ न्यू एरा, न्यू एज, आदित्य पब्लिक स्कूल और पी.जी. कॉलेज पहुंचा, तो यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था—यह बच्चों के हृदय में बोया गया जागरूकता का बीज था। कुंभकरण की झांकी ने एक महत्वपूर्ण संकेत दिया—नशा मनुष्य को भीतर से सोता हुआ बना देता है। इच्छाशक्ति समाप्त होती है, लक्ष्य धुंधले हो जाते हैं, और जीवन दिशाहीन। आदरणीय प्रीति दीदी द्वारा
कराई गई प्रतिज्ञाएँ उस नींद से जागने का आह्वान थीं—कि स्वयं भी नशे से दूर रहें और परिवार व समाज को भी नशामुक्त बनाने का संकल्प लें।पी.एस. कौरव, प्राचार्य—पी.जी. कॉलेज—ने अपने उद्बोधन में इसी चिंता को स्वर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि युवा पीढ़ी को अगर सुरक्षित भविष्य देना है तो उन्हें अभी से सही दिशा में प्रेरित करना होगा। शिक्षा तभी सार्थक है जब वह जीवन को बचाने और संवारने का कार्य करे। आज आवश्यकता केवल
अभियानों की नहीं, बल्कि निरंतर प्रेरणा की है—स्कूलों में, घरों में, समाज में। नशे के खिलाफ लड़ाई केवल कानून या अस्पतालों की नहीं है; यह हर परिवार, हर शिक्षक, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि यह जागरूकता बच्चों के मन में थोड़ी भी हलचल पैदा करती है, तो यह अभियान सफल माना जाएगा। क्योंकि परिवर्तन हमेशा छोटे कदमों से शुरू होता है—और गाडरवारा से उठाया गया यह कदम आने वाले समय में कई जीवन बचा सकता है।
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- नशा मुक्त भारत—संस्कारों की उस पाठशाला की ओर एक कदम समाज का भविष्य स्कूलों की चारदीवारी में पनपता है। बच्चे केवल पाठ्यपुस्तक से नहीं, बल्कि आसपास दिखने वाले आचरण, प्रेरणा और वातावरण से सीखते हैं। ऐसे समय में जब नशा नई पीढ़ी के लिए एक मूक खतरे की तरह फैल रहा है, गाडरवारा तहसील के विद्यालयों में आयोजित नशा मुक्त भारत अभियान एक महत्वपूर्ण पहल बनकर उभरा है। ओम शांति प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सहयोगी संस्थान राजयोग एंड रिसर्च फाउंडेशन का मेडिकल विंग जब कुंभकरण की झांकी, प्रेरक वीडियो और आध्यात्मिक संदेशों के साथ न्यू एरा, न्यू एज, आदित्य पब्लिक स्कूल और पी.जी. कॉलेज पहुंचा, तो यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था—यह बच्चों के हृदय में बोया गया जागरूकता का बीज था। कुंभकरण की झांकी ने एक महत्वपूर्ण संकेत दिया—नशा मनुष्य को भीतर से सोता हुआ बना देता है। इच्छाशक्ति समाप्त होती है, लक्ष्य धुंधले हो जाते हैं, और जीवन दिशाहीन। आदरणीय प्रीति दीदी द्वारा कराई गई प्रतिज्ञाएँ उस नींद से जागने का आह्वान थीं—कि स्वयं भी नशे से दूर रहें और परिवार व समाज को भी नशामुक्त बनाने का संकल्प लें।पी.एस. कौरव, प्राचार्य—पी.जी. कॉलेज—ने अपने उद्बोधन में इसी चिंता को स्वर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि युवा पीढ़ी को अगर सुरक्षित भविष्य देना है तो उन्हें अभी से सही दिशा में प्रेरित करना होगा। शिक्षा तभी सार्थक है जब वह जीवन को बचाने और संवारने का कार्य करे। आज आवश्यकता केवल अभियानों की नहीं, बल्कि निरंतर प्रेरणा की है—स्कूलों में, घरों में, समाज में। नशे के खिलाफ लड़ाई केवल कानून या अस्पतालों की नहीं है; यह हर परिवार, हर शिक्षक, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि यह जागरूकता बच्चों के मन में थोड़ी भी हलचल पैदा करती है, तो यह अभियान सफल माना जाएगा। क्योंकि परिवर्तन हमेशा छोटे कदमों से शुरू होता है—और गाडरवारा से उठाया गया यह कदम आने वाले समय में कई जीवन बचा सकता है।4
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