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कोटवा खेल रहे हैं आप लोहिया खेल जानते हैं ।कि नही #bhojpuri #tunng #song #suman vlogs13
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- #सावन_मनभावन शाम का समय है और लगभग आधे घंटे से बरौनी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन खड़ी हैं।मन की व्याकुलता बढ़ रही है।छूकुर छूकुर चलतीं है तो बाहरी वातावरण के पेड़ पौधे दिखते हैं तो थोड़ा मन लगता है। बैंग में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी की "मेरी इक्यावन कविताएं"है पढ़ना शुरू किए तो पूरा पढ़ दिये। आसमान से टिपीर टिपीर मेघ बरस रहें हैं।ना कोई काम ना कोई धंधा! न्यूज़ का कोई लिंक जैसे ही आ रहा है टप्प से उसे पढ़ चुका हूं। वाट्सएप पर उतना विश्वास नहीं करता।सोच रहा हूं शिवपुराण तो नहीं लेकिन एकाध कथा कहानी ही लिखूं कुछ समय कट जाएगा और सद्मार्ग पर चलते हुए नींद आ जाएगी। कथा कहानी अपने आराध्य देव भगवान शिव को ही केंद्रित करके लिख रहे हैं। कामदेव को जीत लेने के बाद देवर्षि नारद के मन में एक बात आ गयी कि "वे तो महादेव के समान हो गए"। संसार में दो हीं लोग तो हैं जिन्होंने कामदेव को जीत लिया है। एक महादेव और दूसरे देवर्षि नारद बस! इसके बाद अहंकार उपजने से कौन रोक सकता है? जहां ऐको अहम् व्दितीयो नास्ती का भाव उत्पन्न हो वहीं अहंकार उत्पन्न हों जाता है। अहंकार हमारे मन में कभी भी आ सकता है। यदि नारद जैसे ऋषि के अंदर जो स्वयं जगत् पिता ब्रह्म जी के पुत्र थे। उनके अंदर अहंकार प्रवेश कर सकता है तो हम सब जैसे सामान्य मनुज में तों कुछ भी कर सकता है। यह एक सहज विकृति है यह हमारे मन में आएगी ही। लेकिन यह हमारा कर्तव्य है कि हम स्वयं को इससे बचा कर रखें। यह जब हमारे मन में प्रवेश करे तो हम शीघ्रता से इसे मन से बाहर निकालें। इसका आसान उपाय है धार्मिक स्थलों का भ्रमण और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन नियमित करते रहे। नारद जी की अपनी गृहस्थी तो थी नहीं, जहां वे अपना उत्साह प्रदर्शित करते। एक सामान्य गृहस्थ जब कोई अच्छा काम कर लेता है तो वह सबसे पहले घर आता और अपनी पत्नी से, माता से, बच्चों से,बहूओ से और अपने भाइयों आदि से अपनी बड़ाई करता है और उसे सन्तोष मिल जाता है। ठीक ऐसे ही किसी हानि के समय में भी होता है। व्यक्ति घर आता है अपने लोगों से कहता हैं और उसे उनकी सहानुभूति प्राप्त होती है। कभी कभी पूरा परिवार मिल कर उस शत्रु जिसने अहित किया होता है उसके विरुद्ध अपशब्द बोल बोल कर अपनी भड़ांस निकाल लेते हैं और उसे तनिक सन्तोष मिल जाता है। परिवार की आवश्यकता ऐसी परिस्थितियों में सर्वाधिक होती है।नारद जी के पास यह सुविधा नहीं थी। उत्साह में फुले नारद जी सीधे पहुंचे महादेव के पास और मुस्कुराते हुए बोलें "प्रभु आपकी कृपा से आपका यह दास भी कामदेव को पराजित करने में सफल रहा। प्रभु अब क्या बताए कामदेव ने तो अपनी सारी शक्तियां ही झोंक दी थी लेकिन हम भी तो आपके भक्त ही ठहरे!लाख युक्ति लगाते रहे लेकिन हम भी टस से मस नहीं हुए। महादेव जी आखिर में ठहरे तो महादेव ही न पल भर में समझ गए कि हमारा भक्त अहंकार में फंस गया है। वे मुस्कुराते हुए बोलें "आप धन्य हों देवर्षि! लेकिन मेरी मानिये तो यह बात किसी से मत कहियेगा और श्रीहरि विष्णु जी से तो भूलकर भी मत कहिएगा।" देवर्षि नारद जी को बात पसन्द नहीं आयी।हम मनुज भी तो यही करते हैं थोड़ी सी उपलब्धि हासिल करते ही पचासों जगह कहते हैं। वास्तव में व्यक्ति जब काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, अहंकार आदि विकृतियों में फंसा हो तो उसे अपने हित की बात पसन्द नहीं आतीं। नारद शिवलोक से चलते बने और ब्रम्हदेव के लोक ब्रम्ह लोक पहुंचे। वहां भी वहीं बातें की और ब्रम्हदेव ने भी उन्हें भगवान शिव वाली ही शिक्षा दी लेकिन नारदजी के मन को संतुष्टि नहीं मिली और नारदजी वहां से भी मन ही मन नाराज़ हो कर चलते बने। नारदजी से सृष्टि के दो महानतम शक्तियों ने श्रीहरि विष्णु जी से बात न कहने का अनुरोध किया था फिर भी नारदजी स्वयं को वह कार्य करने से रोक नहीं सके। जिन भगवान भोलेनाथ और परम पिता ब्रह्मा के दर्शनों के लिए युगों की तपस्या करनी पड़ती है, नारद उनकी बात तक नहीं मानने पर उतारू हो गए। यह घटना बताती है कि अहंकार किस प्रकार से व्यक्ति की बुद्धि हर लेता है। नारद पहुंचे श्रीहरि विष्णु जी के लोक! क्षीरसागर में शेषशैय्या पर लेटे भगवान श्री नारायण और उनके चरण दबाती संसार की पालन करने वाली माता लक्ष्मी। होना तो यह चाहिये था कि उनके दर्शन मात्र से नारद का अहंकार टूट जाता। लेकिन नहीं!उन्हें तो महादेव के समान होने का अहंकार हुआ था न! उतनी बड़ी बात वे कैसे भूल जाते भला? उन्होंने अपनी बात को बढ़ा चढ़ा कर श्रीहरि से कहें। नारायण समझ गए कि हमारा भक्त अहंकार के गिरफ्त में आ गया हैं और इसे मुक्ति दिलाने की आवश्यकता है। हर अभिभावक का भी यही दायित्व होता है कि वो अपने बच्चों और अपने शिष्यों के अंदर उपज चुके दुर्गुणों से मुक्ति दिलाये। इसके लिए यदि उसे माया रचनी पड़े तो वह भी अनुचित नहीं। है न? #क्रमश: (तस्वीर मोतीहारी अरेराज शिव मंदिर का है जहां आज प्रातः कालीन बेला में उनका श्रृंगार किया गया था)1
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