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शांतिकुंज हरिद्वार से गायत्री परिवार की रथ यात्रा का सालमगढ नगर में भव्य प्रवेश ग्राम पंचायत सालमगढ मे जिसे राष्ट्र जागरण ज्योति कलश रथ यात्रा परम् वन्दनीय माताजी भगवती देवी शर्मा की जन्म शताब्दी और अखंड दीपक की शताब्दी वर्ष के मौके पर निकाली गई है। इसका उद्देश्य गुरुदेव की साधना, तप, पुण्य प्रकाश और गायत्री महामंत्र की महाशक्ति के अंश को घर-घर पहुंचाना है। अतः समस्त धर्म प्रेमी महानुभावों द्वारा सालमगढ़ वीर तेजाजी महाराज चौराहे पर स्वागत किया व सभी और सभी ने अपने-अपने घरो के सामने कुंकुम, अक्षत और पुष्प से पुजन कर धर्म लाभ लिया तत्पश्चात सांय 7:30 श्रीचारभुजा मंदिर पर दीप मे यज्ञ किया गया जिसमें बडी संख्या में भक्त मोजूद रहे व भगवती विद्या मंदिर संस्थापक दिनेशचंद्र शर्मा व भैरुलाल लोहार
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शांतिकुंज हरिद्वार से गायत्री परिवार की रथ यात्रा का सालमगढ नगर में भव्य प्रवेश ग्राम पंचायत सालमगढ मे जिसे राष्ट्र जागरण ज्योति कलश रथ यात्रा परम् वन्दनीय माताजी भगवती देवी शर्मा की जन्म शताब्दी और अखंड दीपक की शताब्दी वर्ष के मौके पर निकाली गई है। इसका उद्देश्य गुरुदेव की साधना, तप, पुण्य प्रकाश और गायत्री महामंत्र की महाशक्ति के अंश को घर-घर पहुंचाना है। अतः समस्त धर्म प्रेमी महानुभावों द्वारा सालमगढ़ वीर तेजाजी महाराज चौराहे पर स्वागत किया व सभी और सभी ने अपने-अपने घरो के सामने कुंकुम, अक्षत और पुष्प से पुजन कर धर्म लाभ लिया तत्पश्चात सांय 7:30 श्रीचारभुजा मंदिर पर दीप मे यज्ञ किया गया जिसमें बडी संख्या में भक्त मोजूद रहे व भगवती विद्या मंदिर संस्थापक दिनेशचंद्र शर्मा व भैरुलाल लोहार
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- संवाददाता - संतोष व्यास डूंगरपुर। भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा (बीपीएमएम) प्रदेश प्रचारक मुकेश कलासुआ के नेतृत्व में अरावली बचाओ आंदोलन को लेकर बीपीएमएम कार्यकर्ता मंगलवार को जिला मुख्यालय पर कलेक्ट्रेट गेट पर एकत्रित हुए तथा अरावली बचाओ आंदोलन का समर्थन करते हुए धरना देते हुए जमकर नारेबाजी की। वहीं, अतिरिक्त जिला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में बताया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 20 नवंबर 2025 को पारित अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा पर पुनर्विचार की मांग की गई है। इस परिभाषा के अनुसार केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली का हिस्सा माना जाएगा, जिससे पर्वतमाला की लगभग 90 प्रतिशत पहाड़ियाँ कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी। ज्ञापन में चेताया गया कि यह तकनीकी हेरफेर अवैध खनन, वनों के विनाश और भू माफिया को खुली छूट देने के समान है। अरावली पर्वतमाला भूजल रिचार्ज, जल संरक्षण और मरुस्थलीकरण रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह जैव-विविधता और वन्यजीवों का प्रमुख आवास भी है। आदिवासी क्षेत्रों में यह जल, जंगल और जमीन का जीवनाधार रही है और स्थानीय समुदाय सदियों से इसकी रक्षा करता आया है। अधिकारियों ने कहा कि नई परिभाषा लागू होने से जलस्त्रोत सूखने, पर्यावरणीय असंतुलन और किसानों एवं पशुपालकों पर प्रतिकूल प्रभाव बढ़ेगा। ज्ञापन में केन्द्र सरकार से आग्रह किया गया कि ऊँचाई आधारित तकनीकी दृष्टिकोण के बजाय भूवैज्ञानिक, पारिस्थितिक और ऐतिहासिक मानदंड अपनाए जाएँ। इसके साथ ही समस्त अरावली क्षेत्र को संरक्षित पारिस्थितिकी क्षेत्र मानते हुए खनन गतिविधियों पर रोक और कठोर निगरानी सुनिश्चित की जाए। भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा ने स्पष्ट किया कि यह केवल पर्यावरण का मामला नहीं, बल्कि जनहित, आजीविका और भविष्य की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। ज्ञापन में चेतावनी दी गई है कि यदि आवश्यक कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करना पड़ेगा। ज्ञापन में जोर देकर कहा गया कि अरावली पर्वतमाला को बचाना राष्ट्रीय और सांस्कृतिक दायित्व है, क्योंकि यह केवल भूगोल नहीं बल्कि जीवन, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।1
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