
भारत में जौ की खेती (Jau ki Kheti) पारंपरिक रूप से की जाती रही है। यह एक प्रमुख रबी फसल है जिसे गेहूं के विकल्प के रूप में भी देखा जाता है। जौ का इस्तेमाल मुख्य रूप से पशु चारे और बीयर बनाने में किया जाता है। इसकी खेती कम पानी और कम लागत में भी अच्छी उपज देती है। हम यहां पर आपको जौ की खेती का पूरा तरीका, फायदे, जलवायु, बीज चयन, बुवाई, देखरेख और कटाई की जानकारी विस्तार में बता रहे हैं।
जौ की खेती (Jau ki Kheti) ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। इसकी खेती अक्टूबर से दिसंबर के बीच की जाती है और फसल की कटाई मार्च-अप्रैल में होती है। अधिक बारिश और आर्द्रता वाली जलवायु में यह फसल प्रभावित हो सकती है। जौ की खेती कम बारिश वाली जगहों पर की जाती है, क्योंकि इसकी खेती के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है
जौ की खेती के लिए बलुई दोमट, दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का pH मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेत को भली-भांति जोतकर समतल करना चाहिए। इसकी खेती करने से पहले खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद 2-3 बार देशी हल या रोटावेटर से जुताई करें। आपको खेत को समतल और खरपतवार रहित होना चाहिए।
बेहतर उपज के लिए प्रमाणित और रोग-रहित बीजों का चुनाव करना जरूरी है। कुछ प्रमुख किस्में हैं:
बीज उपचार: बीज को बुवाई से पहले कवकनाशी से उपचारित करें। थायरम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज का इस्तेमाल कर सकते हैं।
आज के ब्यावरा मंडी भाव, नरसिंहगढ़ मंडी भाव, फतेहनगर मंडी भाव, मैनपुरी मंडी भाव, टुंडला मंडी भाव और उत्तर प्रदेश मंडी भाव की ताज़ा कीमतों को शुरू ऐप की मदद से अपने मोबाइल पर आसानी से देख सकते हैं।
जौ की सफल खेती के लिए सही समय पर बुवाई और उपयुक्त विधि का चुनाव बहुत जरूरी है। इससे न केवल फसल की पैदावार बढ़ती है, बल्कि रोगों और कीटों का खतरा भी कम होता है।
बीज की मात्रा: प्रति हेक्टेयर लगभग 100-125 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अगर बुवाई मशीन से की जाए, तो बीज की खपत कम हो जाती है।
किसानों के लिए सुझाव
संतुलित उर्वरक देने से जौ की उपज और गुणवत्ता (Jau ki Kheti) में वृद्धि होती है। जौ की पैदावर को बेहतर करने के लिए आप 40-60 किग्रा/हेक्टेयर नाइट्रोजन, 30 किग्रा/हेक्टेयर फॉस्फोरस और 20 किग्रा/हेक्टेयर पोटाश का इस्तेमाल कर सकते हैं।
खाद देने का समय: आधा नाइट्रोजन, पूरा फॉस्फोरस और पोटाश बुवाई के समय दें। इसके बाद नाइट्रोजन टिलरिंग के समय दें।
जौ की फसल को बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। जौ की खेती के बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद जब फूल आने शुरू हो जाएं, तो फिर दूसरी सिंचाई करें। इसकी तीसरी सिंचाई जौ के दाने बनने के समय करनी चाहिए।
जौ की फसल में खरपतवार नुकसान पहुंचाते हैं। समय पर नियंत्रण जरूरी है। जौ की बुवाई के 20-25 दिन बाद खेत की पहली गुड़ाई करें और दूसरी गुड़ाई 40-45 दिन के बाद करें। यदि रासायनिक नियंत्रण करें, तो Isoproturon 1.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
जब जौ की बालियां पीली होकर सूखने लगें और दाना कठोर हो जाए, तो फसल काट लें। अत्यधिक देरी से फसल गिर सकती है। जौ के फसल की कटाई मार्च-अप्रैल महीने में की जाती है। इसके बाद इसके दानों को निकालने के लिए हाथ रगड़कर या मशीन के जरिए निकाला जाता है।
जौ की खेती (Jau ki Kheti) एक लाभकारी और टिकाऊ विकल्प है, खासकर उन किसानों के लिए जो कम लागत और कम पानी में खेती करना चाहते हैं। सही तकनीकी जानकारी और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाकर किसान अपनी उपज और मुनाफे को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं।
भारत के अलग-अलग राज्यों के मंडी रेट जानने के लिए उत्तर प्रदेश मंडी भाव, हरियाणा मंडी भाव और हिमाचल प्रदेश मंडी भाव की जानकारी ज़रूर देखें।
भारत में जौ की खेती (Jau ki Kheti) पारंपरिक रूप से की जाती रही है। यह एक प्रमुख रबी फसल है जिसे गेहूं के विकल्प के रूप में भी देखा जाता है। जौ का इस्तेमाल मुख्य रूप से पशु चारे और बीयर बनाने में किया जाता है। इसकी खेती कम पानी और कम लागत में […]




