
जब बात ऐसी फसलों की होती है जो स्वाद, सेहत और कमाई – तीनों में फ़ायदेमंद हों, तब टैपिओका और कसावा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इसे टैपिओका सब्ज़ी पौधा या कसावा की जड़ कहा जाता है। यह एक ऐसी जड़ वाली सब्ज़ी है जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है। भारत में इसकी खेती खासकर दक्षिण भारत, जैसे केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में की जाती है, लेकिन अब धीरे-धीरे उत्तर भारत के किसान भी इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
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टैपिओका, जिसे कसावा भी कहा जाता है, एक झाड़ी जैसा पौधा है जिसका वैज्ञानिक नाम Manihot esculenta है। यह गर्म और नमी वाले इलाकों में उगता है, खासकर दक्षिण भारत में। इसकी सफेद मोटी जड़ें शकरकंद जैसी होती हैं, जिनसे स्टार्च निकलता है जिसे टैपिओका कहा जाता है। यही स्टार्च साबूदाना, टैपिओका पाउडर और कई खाने की चीज़ों में इस्तेमाल होता है।
भारत में साबूदाना व्रत में बहुत ही आम चीज़ है- साबूदाने की खिचड़ी, वड़ा, या खीर लगभग हर घर में बनाई जाती है। चावल और मक्का के बाद, कसावा को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बोहाइड्रेट स्रोत माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम उपजाऊ ज़मीन में भी आसानी से उग जाता है और सूखा सहने की ताकत भी रखता है। यही वजह है कि जहाँ दूसरी फसलें उगाना मुश्किल होता है। ऐसे में ये सूखे या पथरीली जमीन वाले इलाके में, कसावा एक बड़ी उम्मीद बनकर उभरता है।
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टैपिओका की खेती करने के दौरान इन बातों का ज़रूर ध्यान रखें:
कसावा (tapioca vegetable plant in Hindi) की फसल को 20 से 29 डिग्री सेल्सियस तापमान और लगभग 1000 से 2500 मिमी बारिश की ज़रूरत होती है। यह फसल रेतीली, दोमट या लाल मिट्टी में अच्छी तरह उगती है। सबसे अच्छी बात ये है कि यह कम उपजाऊ ज़मीन में भी अच्छा उत्पादन देती है। बस इतना ध्यान रखना जरूरी है कि मिट्टी में पानी नहीं रुकना चाहिए।
कसावा (cassava in hindi name) की खेती बीज से नहीं; बल्कि तने की कटिंग से की जाती है। करीब 15 सेंटीमीटर लंबी कटिंग को बरसात शुरू होने से पहले सीधा मिट्टी में लगा दिया जाता है। हर पौधे के बीच में करीब 90×90 सेमी की दूरी रखना अच्छा होता है, जिससे उन्हें फैलने और बढ़ने की पूरी जगह मिले।
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इस पौधे को बहुत ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन कुछ छोटी-छोटी बातें ध्यान में रखनी चाहिए; जैसे कि-
इससे फसल की क्वालिटी और प्रोडक्शन दोनों बढ़ते हैं।
टैपिओका की फसल लगभग 6 से 12 महीने में तैयार हो जाती है। इसका समय थोड़ा बहुत मौसम और किस्म पर भी निर्भर करता है। जब फसल तैयार हो जाए, तो जड़ों को धीरे-धीरे खोदकर बाहर निकालना चाहिए, क्योंकि ये काफी नाज़ुक होती हैं और जल्दी टूट जाती हैं।
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टैपिओका सब्ज़ी पौधा और कसावा सिर्फ़ खेतों तक ही सीमित नहीं हैं; इनके कई ऐसे उपयोग हैं जो आम जिंदगी से लेकर बड़े उद्योगों तक फैले हुए हैं। चलिए जानते हैं इनके कुछ मुख्य उपयोग:
कसावा की जड़ें खाने में टेस्टी होती हैं और कई रूपों में इस्तेमाल होती हैं:
टैपिओका कई उद्योगों में भी काम आता है; जैसे कि-
कई जगहों पर कसावा की जड़ें और पत्तियां भी पशुओं के चारे के रूप में दी जाती हैं, खासकर उन इलाकों में जहां हरे चारे की कमी होती है। इसमें भरपूर ऊर्जा और पोषक तत्व होते हैं, जो पशुओं के लिए फायदेमंद होते हैं।
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हालाँकि कसावा की जड़ें सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं, लेकिन इन्हें सही तरीके से पकाना बेहद ज़रूरी होता है। दरअसल, कसावा और टैपिओका पौधे की जड़ों और पत्तियों में एक प्राकृतिक तत्व पाया जाता है जिसे साइनोजेनिक ग्लाइकोसाइड कहते हैं। अगर इसे कच्चा खा लिया जाए, तो ये शरीर में जहरीले असर छोड़ सकता है। खासकर कड़वी किस्म की कसावा में इस तत्व की मात्रा ज़्यादा होती है। इसलिए हमेशा कसावा की जड़ों को अच्छी तरह छीलें, फिर इन्हें साफ पानी से धोकर और अच्छे से उबालकर या पका कर ही खाएं
खासकर अगर आप कसावा पहली बार खा रहे हैं या खुद उगाई हुई फसल को इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह प्रक्रिया ज़रूरी है।
जब बात ऐसी फसलों की होती है जो स्वाद, सेहत और कमाई – तीनों में फ़ायदेमंद हों, तब टैपिओका और कसावा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इसे टैपिओका सब्ज़ी पौधा या कसावा की जड़ कहा जाता है। यह एक ऐसी जड़ वाली सब्ज़ी है जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी बेहद […]



