Sididar Kheti: पहाड़ों में ऐसे करें सीढ़ीनुमा खेती, भरपूर मात्रा में उंगेगीं फसलें
updated at: Mon Jul 28 2025 कमलेश रंजन 

भारत एक कृषि प्रधान देश है, और देश के अनेक हिस्सों में भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कृषि की पद्धतियां अलग-अलग होती हैं। उन्हीं में से एक है सीढ़ीदार खेती (Sididar Kheti), जिसे पहाड़ी और ढलान वाले इलाकों में अपनाया जाता है। यह परंपरागत खेती पद्धति सदियों से इस्तेमाल में लाई जा रही है और आज भी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और अन्य पहाड़ी राज्यों के किसानों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
सीढ़ीदार खेती क्या होती है?
सीढ़ीदार खेती (Sididar Kheti) एक खास प्रकार की खेती है, जो पहाड़ी और ढलान वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसमें पर्वतीय ढलानों को काटकर सीढ़ीनुमा समतल खेत बनाए जाते हैं ताकि जल का बहाव रोका जा सके और मिट्टी का कटाव न हो। यह खेती का ऐसा तरीका है जिसमें पहाड़ी ढलान पर अलग-अलग स्तरों पर खेत बनाए जाते हैं, जो सीढ़ियों की तरह दिखाई देते हैं। हर स्तर पर मिट्टी को रोककर उसमें फसल उगाई जाती है। इस प्रक्रिया से न केवल पानी की बर्बादी रुकती है, बल्कि मृदा अपरदन भी कम होता है।
सीढ़ीदार खेती के प्रकार
सीढ़ीदार खेती (Sididar Kheti) के कई प्रकार होते हैं, जो क्षेत्र विशेष की परिस्थिति, जलवायु और संसाधनों के अनुसार किए जाते हैं:
- समतल खेती: ढलान को पूरी तरह समतल बना दिया जाता है और समतल पर खेती की जाती है। इसमें जल संग्रहण ज्यादा होता है।
- ढलवा बेंच प्रकार: इसमें सीढ़ियां थोड़ी ढलान के साथ बनाई जाती हैं, जिससे अतिरिक्त पानी बहकर निकल सके।
- दीवार जैसी सीढ़ियां: जहां ढलान बहुत अधिक होती है, वहां पत्थर या मिट्टी की दीवारें बनाकर खेत तैयार किए जाते हैं।
- रेखीय सीढ़ी खेती: यह ढलान की समान ऊंचाई वाली रेखाओं पर की जाती है, जिससे पानी का बहाव नियंत्रित होता है।
- पारंपरिक सीढ़ीनुमा: आम तौर पर दिखने वाली सीढ़ियों जैसी खेती जिसमें हर स्टेप पर एक फसल उगाई जाती है।
सीढ़ीदार खेती के फायदे
- मृदा संरक्षण: इस खेती (Sididar Kheti) की संरचना पानी के बहाव को धीमा करती है, जिससे मिट्टी का कटाव रुकता है और भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।
- जल संचयन में सहायक: सीढ़ियों पर पानी रुकने से वर्षा जल का संचयन होता है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है और फसलें नमी में अच्छी तरह बढ़ती हैं।
- बेहतर उपज: स्थिर मिट्टी और पर्याप्त नमी के कारण पौधों की जड़ें मज़बूत होती हैं, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
- ढलानों का उपयोग: पहाड़ी और ढलान वाली अनुपयोगी ज़मीन को खेती योग्य बनाकर किसानों को अतिरिक्त लाभ कमाने का अवसर मिलता है।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: यह पद्धति प्राकृतिक पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाए बिना खेती करने का अवसर देती है, जिससे पर्यावरण संतुलित रहता है।
सीढ़ीदार खेती के नुकसान
- उच्च लागत और श्रम की आवश्यकता: सीढ़ीदार खेतों (Sididar Kheti) का निर्माण करना बहुत महंगा और श्रम-प्रधान होता है। खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में मजदूरी और संसाधनों की लागत अधिक होती है।
- मिट्टी के कटाव का खतरा: यदि टेरेस ठीक से बनाए न जाएं या बारिश ज्यादा हो जाए तो मिट्टी का कटाव हो सकता है, जिससे उपजाऊ मिट्टी बह जाती है।
- पानी प्रबंधन में कठिनाई: ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पानी लाना कठिन होता है। पानी का समान वितरण करना भी एक बड़ी चुनौती होती है।
- मशीनों का सीमित उपयोग: सीढ़ीदार खेतों (Sididar Kheti) में बड़े कृषि यंत्रों का उपयोग करना संभव नहीं होता, जिससे पूरी प्रक्रिया में अधिक समय और मेहनत लगती है।
- भूस्खलन की संभावना: अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में भारी वर्षा के समय भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, जिससे फसलों और किसानों की सुरक्षा पर असर पड़ता है।
सीढ़ीदार खेती कैसे की जाती है?
इस खेती (Sididar Kheti) को करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:
- ढलान का चयन: पहाड़ी या ढलानदार भूमि का चयन किया जाता है, जहां पर पानी बहाव अधिक होता है।
- टेरेसिंग का निर्माण: ढलान को समतल टुकड़ों में काटकर सीढ़ीनुमा खेत बनाए जाते हैं, जिन्हें टेरेस कहा जाता है।
- मेड़बंदी की जाती है: हर टेरेस के किनारों पर मिट्टी या पत्थर की मेड़ें बनाकर पानी और मिट्टी के कटाव को रोका जाता है।
- जल निकासी व्यवस्था: अतिरिक्त वर्षा जल को नियंत्रित ढंग से निकालने के लिए नालियों और चैनलों का निर्माण किया जाता है।
- फसल चयन और बुआई: स्थान की जलवायु और मिट्टी के अनुसार फसलों का चयन कर समतल टेरेस पर बुआई की जाती है।
- सिंचाई और रखरखाव: पानी को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए पंप या नहर का प्रयोग कर नियमित सिंचाई की जाती है।
- प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग: पहाड़ी क्षेत्रों में जैविक खाद और गोबर खाद का उपयोग कर उपज बढ़ाई जाती है।
- मिट्टी संरक्षण: ग्रीन मैन्योर और ढकाव फसलें उगाकर मिट्टी को कटाव से बचाया जाता है।
- सीढ़ियों की मरम्मत: हर सीजन के बाद ढहे हुए किनारों और बह चुकी मिट्टी की मरम्मत की जाती है।
- स्थानीय तकनीकों का उपयोग: पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को मिलाकर खेती को टिकाऊ और उत्पादक बनाया जाता है।
सीढ़ीदार खेती में आने वाली समस्याएं
- निर्माण में अधिक श्रम और लागत: इस खेती (Sididar Kheti) का सबसे पहला और बड़ा खर्च सीढ़ी बनाने में लगता है। पहाड़ी क्षेत्रों में मशीनों की पहुंच सीमित होती है, इसलिए श्रमबल पर निर्भरता बढ़ जाती है। इससे निर्माण और रखरखाव की लागत काफी ज्यादा हो जाती है, जो छोटे किसानों के लिए बोझ साबित हो सकता है।
- भूस्खलन और मेड़ों का टूटना: भारी बारिश या भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं से सीढ़ियों की मेड़ें टूट सकती हैं। इससे न केवल मिट्टी और पानी का कटाव होता है, बल्कि पूरी फसल भी नष्ट हो सकती है। अक्सर बारिश के मौसम में सीढ़ीदार खेत (Sididar Kheti) की मरम्मत की जरूरत होती है।
- सिंचाई की कठिनाई: ऊंचे क्षेत्रों में पानी का स्रोत नीचे होता है। पानी ऊपर लाने के लिए खासकर सिंचाई व्यवस्था या पंप की जरूरत होती है, जो हर किसान के बस की बात नहीं होती। इससे सूखे समय में फसलें प्रभावित होती हैं।
- उत्पादन में विविधता की कमी: छोटे टेरेस पर खेती करने की वजह से फसल क्षेत्र सीमित होता है। इससे मिश्रित खेती या विविध फसलें उगाना कठिन हो जाता है और किसानों की आमदनी पर असर पड़ता है।
- तकनीकी जानकारी की कमी: पहाड़ी इलाकों के किसान अक्सर पारंपरिक तरीकों से खेती करते हैं। इस खेती की नई तकनीकों और संरक्षण उपायों की जानकारी की कमी के कारण उपज में गिरावट आ सकती है।
किसानों के लिए सुझाव
सीढ़ीदार खेती (Sididar Kheti) को बेहतर बनाने के लिए किसानों को कुछ जरूरी चीजों को जरूर जानना चाहिए, इससे खेती करने में काफी मदद मिलती है।
- स्थानीय सामग्री का प्रयोग करें: पत्थर, मिट्टी और जैविक खाद का इस्तेमाल स्थानीय स्रोतों से करें, ताकि लागत कम हो। स
- सिंचाई की स्मार्ट व्यवस्था बनाएं: ड्रिप सिंचाई या वर्षा जल संचयन तकनीक अपनाएं,
इससे खेती के दौरान पानी की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
- मिश्रित खेती करें: एक ही सीढ़ी पर दो या तीन तरह की फसलें उगाकर जोखिम कम कर और लाभ बढ़ाएं।
- समय-समय पर मरम्मत जरूरी: खेत की दीवारों की निगरानी और समय पर मरम्मत करेंसकते हैं, ताकि एक फसल के ही नुकसान से बचा जा सके।
- सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं: पर्वतीय क्षेत्रों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं जैसे मिट्टी और जल संरक्षण योजना, पर्यावरण मित्र खेती योजना आदि का लाभ लें।
निष्कर्ष
सीढ़ीदार खेती (Sididar Kheti) न केवल एक पारंपरिक कृषि पद्धति है, बल्कि यह एक ऐसा समाधान है, जो पहाड़ी और ढलान वाले इलाकों में खेती को संभव और लाभकारी बनाता है। हालांकि इसमें कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन अगर सही योजना, तकनीक और सरकारी सहायता के साथ इसे अपनाया जाए, तो यह किसानों की आय बढ़ाने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का सशक्त माध्यम बन सकती है। सीढ़ीदार खेती प्रकृति के अनुकूल एक विवेकपूर्ण तरीका है, जिससे खेती को टिकाऊ और लाभदायक बनाया जा सकता है। अगर आप पहाड़ी इलाके में रहते हैं, तो खेती के इस तरीके को अपनाकर न केवल भूमि का सही इस्तेमाल कर सकते हैं, बल्कि अच्छी उपज और कम लागत के साथ स्थायी कृषि की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।