
भारत में खेती का तरीका धीरे-धीरे बदल रहा है। किसान अब सिर्फ़ गेहूँ, धान या मक्का जैसे पारंपरिक फसलों तक सीमित नहीं हैं ; बल्कि अब वे फलदार पौधों की खेती की ओर भी रुख कर रहे हैं। इन्हीं में से एक है- आलूबुखारे की खेती (Plum cultivation in Hindi). इस फल की बढ़ती मांग और कम देखभाल की जरूरत इसे छोटे और बड़े किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प बना रही है। तो चलिए इस ब्लॉग के ज़रिए आपको आलूबुखारा की खेती (Plum Cultivation in Hindi) के सभी पहलुओं के बारे में डिटेल में बताते हैं!
Plum (प्लम) को हिंदी में आलूबुखारा और अलूचा नाम से जाना जाता है। यह एक मुलायम छिलके वाला, रसदार और खट्टा-मीठा फल है। यह फल पहाड़ी और उप-पहाड़ी इलाकों में काफ़ी लोकप्रिय है। इसका उपयोग जैम, जेली, स्क्वैश, ड्राई फ्रूट्स और मिठाइयों में होता है। यह फल स्वादिष्ट होने के साथ-साथ विटामिन ए, सी, के और खनिजों जैसे पोटैशियम और कैल्शियम से भरपूर होता है। आलूबुखारा स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अच्छी कीमत पर बिकता है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
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काला अमृतसरी, सतलुज पर्पल, सांता रोजा, ग्रीनगेज, मेथले और अमेरिकन प्लम, आलूबुखारा की कुछ प्रमुख किस्में हैं।
भारत में हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में आलूबुखारे की खेती (Plum Cultivation in Hindi) बड़े पैमाने पर की जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत के कर्नाटक व तमिलनाडु के कुछ पहाड़ी इलाकों में भी इसे उगाया जाता है। आलूबुखारे के लिए ठंडी जलवायु और हल्की नमी ज़रूरी होती है। दिन का तापमान लगभग 20 से 30 डिग्री सेल्सियस और रात में हल्की ठंड इसकी पैदावार बढ़ाती है। अधिक गरमी और बारिश होने पर इस फसल को नुकसान हो सकता है।
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आलूबुखारा की खेती (Plum Cultivation in Hindi) में मिट्टी की क्वालिटी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी, जिसमें पीएच मान 5.5 से 7.5 हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसकी जड़ों को स्वस्थ रखने के लिए अच्छा जल निकास ज़रूरी होता है।
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आलूबुखारा (प्लम) की फसल को किसान सीधे मंडियों में फल बेच सकते हैं। आप इसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, लोकल बाज़ार, सुपरमार्केट और प्रोसेसिंग यूनिट को बेच सकते हैं। एक हेक्टेयर से करीब 8-10 टन फल मिल सकता है, जिससे 2-3 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है, बशर्तें देखभाल अच्छी हो।
आलूबुखारा की खेती (Plum Cultivation in Hindi) एक कम लागत और उच्च मुनाफे वाली फसल है। सही तकनीकों, जैसे उपयुक्त किस्म चयन, जैविक खेती, और कीट प्रबंधन, से किसान अच्छी फसल और आय प्राप्त कर सकते हैं। यह फसल न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है; बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती है। दरअसल, इसके पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और मिट्टी के कटाव को रोकते हैं।
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